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आसुरी प्रवृत्तियों पर नियंत्रण का उत्सव - नवरात्र

वैदिक ऋषियों ने प्रकृति को मातृ-शक्ति की संज्ञा दी और प्रकृति और पुरुष के रूप में सृजन शक्ति को पूजनीय बनाया है। पुरुष स्वरूप शिव है और प्रकृति स्वरूप शक्ति। शिव और शक्ति के सम्मिलन से ही जीवन का सृजन होता है। नवरात्र मां दुर्गा की आराधना का पर्व है।

मां दुर्गा के 9 स्वरूप हैं : पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चौथा कुष्मांडा, पांचवां स्कंदमाता, छटा कात्यायनी, सातवां कालरात्रि, आठवां महागौरी और नौवां सिद्धिदात्री।

शिव के अलावा केवल दुर्गा ही एक ऐसी देवी हैं, जो त्रिनेत्र धारिणी हैं। उनका बायां नेत्र चंद्रमा का प्रतीक है, जो हमारे भीतर स्थित लालसा, मोह और कामना को व्यक्त करता है। उनका दायां नेत्र सूर्य का प्रतीक है, जो हमारे भीतर स्थित तेज, कर्म क्षमता और शक्ति का सूचक है और उनके मध्य भाग में स्थित उनका तीसरा नेत्र अग्नि का प्रतीक है, जो ज्ञान, विवेक और बुद्धि का सूचक है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, असुरों के राजा महिषासुर को यह वरदान प्राप्त था कि कोई भी मानव, देव या असुर उसको पराजित नहीं कर सकता। यह वरदान देते समय सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने उससे पूछा कि क्या मानव, देव या असुर की इस सूची में स्त्री को भी शामिल कर लिया जाए, ताकि कोई स्त्री भी उसे पराजित नहीं कर पाए? क्षह सुनकर उसका अहंकार जाग उटा, उसे लगा कि किसी स्त्री को पराजित करना भला कौन-सा कठिन काम होगा, इसलिए उसने इस वर को ठुकरा दिया।

दुर्गा का शाब्दिक अर्थ है, दुर्ग या किला। एक ऐसी सुरक्षित जगह, जिसे जीतना या काबू में करना बेहद मुश्किल हो, इसे हमारी रक्षा के लिए घर की स्त्री निर्मित करती है। दुर्गा इस विशाल सृष्टि की जननी हैं और सभी जीवों का पालन-पोषण करती हैं, घर की देवी यही भूमिका अपने परिवार के लिए निभाती है।

इस कहानी में हम दुर्गा को ज्ञान, बुद्धि और विवेक के रूप में देखते हैं, जो सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक बंधनों से परे हैं, वे सामूहिक शक्ति का प्रतीक हैं, महिषासुर अज्ञान, अहंकार और हमारी लालसाओं का प्रतिनिधित्व करता है। उसके मायावी होने और निरंतर रूप बदलने का आशय है हमारा अनियमित व्यवहार और हमारी विनाशकारी भावनाएं।

जैसे हमारी बुद्धि लगातार भोग की एक लालसा से दूसरी लालसा की ओर आकर्षित होती है और उनके पीछे भागती है। असुर का अत्यधिक क्रोध हमारी वही वृत्ति है, जो बिना कुछ सोचे-समझे अपनी लालसाओं की राह में आने वाली हर चीज को ध्लस्त करना चाहती है। यह आज के समाज में व्याप्त कलुष को भी प्रदर्शित करता है।

भलानी प्रकृति हैं और शिव पुरुष हैं, यह हिंदू धर्म की आधारभूत अवधारणा है। दोनों बराबर के साझीदार हैं और इस सृष्टि को रचने और चलाने में। मगर पुरुष का अहंकार पशुपतिनाथ को पशु बनाए रखता है।

नवरात्र के नौ दिनों में हर दिन अलग स्वरूप का पूजन किया जाता है। देवी का पूजन और आराधना की पद्धति शिव की आराधना और पूजा से जरा अलग है। यह अंतर नवरात्र के देवी-पूजन में याद रखने की जरूरत है।

 à¤¨à¤µà¤°à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¿ में दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

- जागरण, भजन, हवन आदि भी करें।

- नौ दिनों में जमीन पर ही सोएं, ब्रह्मचर्य का पालन करें।

- कुमारी पूजन जरूर करें।

- दुर्गा की पूजा में लाल रंग के फूलों का उपयोग करें

- बेला, कनेर, केवड़ा, चमेली, पलाश, अशोक, केसर और कदंब के फूलों से भी पूजा की जा सकती है।

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