कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ शà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤§, पढ़ें ये कथा
à¤à¤• कथा अनà¥à¤¸à¤¾à¤° सूरà¥à¤¯à¤ªà¥à¤¤à¥à¤° करà¥à¤£ मृतà¥à¤¯à¥ उपरांत सà¥à¤µà¤°à¥à¤—लोक पहà¥à¤‚चे तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¥‹à¤œà¤¨ में सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ (सोना) खाने को दिया गया। करà¥à¤£ ने देवराज इंदà¥à¤° से पूछा मैं सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ कैसे खा सकता हूं। मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ à¤à¥‹à¤œà¤¨ में अनà¥à¤¯ देवातà¥à¤®à¤¾à¤“ं की तरह à¤à¥‹à¤œà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥ दिया जाà¤à¥¤ इस पर इंदà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤µ बोले कि हे महावीर आपने अपने सारे जीवन में सिरà¥à¤« सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ का ही दान किया कà¤à¥€ अनà¥à¤¨ दान किया ही नहीं, इसलिठजो आपने दान दिया वही आपको फलसà¥à¤µà¤°à¥‚प मिलेगा à¤à¥€à¥¤
करà¥à¤£ ने विनमà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µ à¤à¤—वान से कहा, पà¥à¤°à¤à¥ जो हà¥à¤†, वह उसकी अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ थी, अब इसका कà¥à¤¯à¤¾ उपाय है, जिससे उसको à¤à¥€ à¤à¥‹à¤œà¤¨ मिल सके। इसके बाद इंदà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤µ ने करà¥à¤£ को 15 दिनों के लिठपृथà¥à¤µà¥€ पर à¤à¥‡à¤œà¤¾à¥¤ पृथà¥à¤µà¥€ पर आकर करà¥à¤£ ने गाय, बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£, साधà¥-संतो और दरिदà¥à¤° नारायण की सेवा की और उनको अनà¥à¤¨ दान किया। उसके बाद वे वापस सà¥à¤µà¤°à¥à¤— चले गà¤à¥¤
धारà¥à¤®à¤¿à¤• मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ 15 दिनों को पितृपकà¥à¤· कहा जाता है। à¤à¤¸à¤¾ माना जाता है कि इन 15 दिनों के लिठसमसà¥à¤¤ पितृ और अतृपà¥à¤¤ आतà¥à¤®à¤¾à¤à¤‚ अपने कà¥à¤² से तरà¥à¤ªà¤£ और शांति की आशा ले कर धरती पर आती हैं। इसके अलावा इन दिनों में जो à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ अपने पितरों के नाम से तरà¥à¤ªà¤£, यजà¥à¤ž, दान आदि करता है, उससे पितृदेव पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करते हैं।
इसके अलावा जिन पितरों को उनके परिवार वाले à¤à¥‚ल गठउनके नाम से तरà¥à¤ªà¤£ नहीं करते तो पितृ उनसे नाराज होकर शà¥à¤°à¤¾à¤ª à¤à¥€ दे देते हैं। अतः हर सनातनी का दायितà¥à¤µ है कि अपने पितरों की शांति हेतॠकारà¥à¤¯ करें कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि मृतà¥à¤¯à¥ उनके शरीर की हà¥à¤ˆ है आतà¥à¤®à¤¾ की नहीं। जब तक उनका पà¥à¤¨à¤ƒ जनà¥à¤® नहीं होता वो अपने पूरà¥à¤µ कà¥à¤² परिवार से à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• रूप से जà¥à¥œà¥‡ रहते हैं और उमà¥à¤®à¥€à¤¦ रखते हैं कि परिवार उनका खà¥à¤¯à¤¾à¤² रखेगा।