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जो अमर सिंह की नजरों में चढ़ा, समझो वो समाजवादी पार्टी से गया!

उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में मचा घमासान रविवार को उस वक्त और तेज हो गया जब राज्यसभा में सपा की अगुवाई कर रहे रामगोपाल यादव को पार्टी से ही बर्खास्त कर दिया गया. रामगोपाल सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के निर्देशों पर हटाए गए. पार्टी की ओर से यह कदम शिवपाल यादव सहित चार मंत्रियों की अखिलेश कैबिनेट से छुट्टी किए जाने के बाद उठाया गया.

सपा कुनबे में इस घमासान की शुरुआत करीब 5 महीने पहले अमर सिंह की दोबारा एंट्री होने के बाद से हो गई थी. 6 साल पहले अमर सिंह को सपा से निकाल दिया गया था. अखिलेश के विरोध के बावजूद उन्हें पार्टी में लाया गया. राज्यसभा भी भेज दिया गया. यहां तक कि पार्टी महासचिव भी बना दिया. इससे अखिलेश खफा हैं. रामगोपाल यादव अखिलेश समर्थक हैं. शिवपाल उन्हें शुरू से पार्टी विरोधी मानते आए हैं.

ऐसा पहली बार नहीं है जब अमर सिंह का कद बढ़ते हीसमाजवादी पार्टी में उनके विरोधियों के पर कतरने लगे हैं. इस लिस्ट में रामगोपाल यादव के अलावा बेनी प्रसाद वर्मा, राज बब्बर और आजम खान शुमार हैं. 2007 के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले समाजवादी पार्टी से नाता तोड़ने वाले बेनी प्रसाद वर्मा का मुलायम से चार दशकों का याराना था. कुर्मी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले बेनी प्रसाद वर्मा की ओबीसी वोटरों में खास पकड़ है.

मुलायम सिंह यादव और बेनी प्रसाद वर्मा की गहरी दोस्ती होने के बाद भी बेनी वर्मा के साथ वही हुआ जो सपा के दूसरे सीनियर नेताओं के साथ हुआ. जैसे-जैसे पार्टी में अमर सिंह का कद बढ़ा, बेनी उपेक्षितों की कतार में चले गए. बेनी प्रसाद वर्मा अपने बेटे के लिए साल 2007 में टिकट चाहते थे. लेकिन अमर सिंह की वजह से बेनी प्रसाद वर्मा के बेटे राकेश वर्मा को टिकट नहीं मिल पाई.

सपा ने बहराइच सीट से वकार अहमद शाह को टिकट दिया जो सपा की सरकार में श्रम मंत्री रह चुके थे. बेनी ने शाह को टिकट दिए जाने का खुला विरोध किया. क्योंकि बेनी के मुताबिक शाह उनके एक कट्टर समर्थक राम भूलन वर्मा की हत्या में शामिल थे. बेनी इससे पहले भी इसी मुद्दे को लेकर वकार अहमद शाह को मंत्रिमंडल से हटाए जाने की मांग कर चुके थे.

इसी वजह से नाराज बेनी प्रसाद वर्मा ने समाजवादी पार्टी छोड़ दी और समाजवादी क्रांति दल बनाया. इसके बाद साल 2008 में वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे. इस साल बेनी की सपा में दोबारा एंट्री हुई और उन्हें राज्यसभा भेजा गया.

अभि‍नेता से राजनेता बने राज बब्बर का सियासी करियर वैसे तो 1989 में जनता दल के साथ शुरू हुआ था लेकिन 1994 में उन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया. तीन बार संसद सदस्य के तौर पर भी चुने गए. 1994 से 1999 के बीच राज्यसभा सदस्य भी रहे. 2004 में वो फिर लोकसभा सदस्य के तौर पर चुने गए. लेकिन 2006 में अनुशासनहीनता के आरोपों में उन्हें समाजवादी पार्टी से निकाल दिया गया. राज बब्बर समाजवादी पार्टी में पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अमर सिंह के खिलाफ मोर्चा लेने की हिम्मत दिखाई. उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अमर सिंह के लिए 'दलाल' शब्द का इस्तेमाल किया था.

अखिलेश सरकार में काबीना मंत्री आजम खान को समाजवादी पार्टी से करीब डेढ़ साल तक वनवास झेलना पड़ा है. इस समूचे प्रकरण की वजह अमर सिंह ही रहे हैं. अमर सिंह के मोह की वजह से समाजवादी पार्टी ने अपने जिन नेताओं को खोया था, उनमें आजम सबसे अहम थे. 2009 में 15वें लोकसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी ने रामपुर सीट से अमर सिंह की करीबी जयाप्रदा को टिकट दिया. रामपुर सदर से 7 बार के विधायक आजम का कहना था कि जयाप्रदा का रामपुर से कोई सरोकार नहीं है ऐसे में उन्हें टिकट क्यों दिया गया. लेकिन अमर सिंह के दबदबे के आगे उनकी नहीं सुनी गई थी. आजम खान पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए 24 मई 2009 को समाजवादी पार्टी से छह साल के लिए निकाल दिया गया. हालांकि 4 दिसंबर 2010 को सपा ने आजम की बर्खास्तगी रद्द कर दी और पार्टी में फिर से शामिल कर लिए गए.

हालांकि समाजवादी पार्टी से ऐसे नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने वाले अमर सिंह भी खुद नहीं बच पाए. अखि‍लेश की पत्नी डिंपल यादव 2009 में फिरोजाबाद सीट पर हो रहे उपचुनाव में सपा के बागी राज बब्बर के खि‍लाफ उतरीं. यह डिंपल का सियासत की दुनिया में पहला कदम था लेकिन बताया जाता है कि अमर सिंह की सियासी साजिश के चलते डिंपल चुनाव हार गईं. अमर सिंह को फरवरी 2010 में पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

छह साल तक सपा से बाहर रहने के बाद अमर सिंह की इसी साल पार्टी में दोबारा वापसी हुई है. अब वो फिर से अपना वही दबदबा हासिल करने को बेकरार हैं जो पिछले कार्यकाल में उन्होंने एन्जॉय किया था. अमर सिंह के विरोधी रामगोपाल की सपा से विदाई इसकी बानगी है.

 

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