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मेरे दोस्त किस्सा ये क्या हो गया, सुना है कि तू बेवफा हो गया...

दोस्ती के एहसास को बड़ी खूबसूरती से बयां करने वाली फ़िल्म 'दोस्ताना' की याद आज भी ज़ेहन में ताज़ा है। दोस्ती का भाव और अमिताभ बच्चन का शानदार अभिनय  इस फ़िल्म के क़रीब रखता है। 1980 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म में दोस्ती के जज़्बातों को बयां करता ये एक गीत है जो बेहद पसंद है। । यह गीत à¤®à¥‹à¤¹à¤®à¥à¤®à¤¦ रफी की आवाज़ में गीत के पहले बोल ही दिल को भा जाते हैं। अमिताभ एक महफिल में शत्रुघन सिन्हा और जीनत अमान की मौजूदगी में इस गीत को गाते हैं। पहली लाइन में कहते हैं कि दोस्त तुम्हारी बेवफाई एक किस्सा हो गई है। जिससे मैं आहत हूं। जब आदमी ख़ुद से ज़्यादा दूसरे पर भरोसा रखता है और अगर वही धोखा दे तो ज़िंदगी सिर्फ़ ज़हर बन जाती है। अमिताभ इसी धोखे का शिकार होकर यह गीत गाते हैं। 

दुख के समय और ताक़तवर बनने की प्रेरणा देता है। आनंद बक्षी ने इस गीत की रचना की है। मोहम्मद रफी ने हमेशा की तरह इस गीत में अपनी मधुर आवाज़ दी है। संगीत से इसे लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की अमर जोड़ी ने सजाया है। 

'मेरे दोस्त किस्सा ये क्या हो गया
सुना है के तू बेवफ़ा हो गया'

कहते हैं कि दोस्ती आदमी को बेहद ताकतवर बना देती है। जब आपके पास आपकी भावनाओं और जज़्बातों तों को समझने वाला कोई इंसान होता है तो वह दुनिया में आपके लिए सबसे बड़ा तोहफा होता है। ऐसा इंसान या ऐसा दोस्त आपको हर दिन एक बेहतर 'इंसान' बनने के लिए एक नया जज़्बात देता है। साहस देता है। दोस्त और दोस्ती दो ऐसे खूबसूरत शब्द होते हैं जो समूची दुनिया को खुशनुमा बना देते हैं। मां-पिता, पति-पत्नी के संबंधों का समाज सबसे बड़ा आधार होता है। लेकिन दोस्ती के रिश्ते की बुनियाद समाज नहीं बल्कि महज विश्वास होती है। बस विश्वास और सच्चे एहसास की मदद से दो अनजान व्यक्ति दोस्ती के नाम पर एक हो सकते हैं। दोस्ताना फ़िल्म में इसी दोस्ती को बहुत ही संजीगदी से पेश किया गया है। अमिताभ बच्चन के भाव प्रणय अभिनय और शत्रुघन सिन्हा के दमदार अभिनय की वहज से यह फ़िल्म काफी हिट हुई थी। à¤«à¤¼à¤¿à¤²à¥à¤® में दो दोस्त आपस में एक दूसरे के पूरक होते हुए बेहतर जीवन जीते हैं। फ़िल्म इसके साथ शुरू होती है। इसमें दोनों दोस्तों का प्रोफेशन अलग-अलग होता है। लेकिन वह प्रोफेशन अलग होने के बाद भी एक दूसरे से आगे आने की कोशिश करते हैं। ऐसी प्रतिद्वंदिता जीवन में करीबियों के बीच होनी भी चाहिए। यह जीवन को और प्रतियोगी बनाती है। इसमें इंसान आखिरकार निखरकर सामने आता है। लेकिन आप जब आगे बढ़ने के लिए दोस्ती को भूल जाएं, उसकी गरिमा का ख़्याल नहीं रखें, अपने क्षुद्र अहं के आगे दोस्ती के जज़्बात को तार-तार करते हुए बिखेर दें... तब सच्चे दिल वाले दोस्त के लिए जीवन जहर हो जाता है। फ़िल्म में इस गीत का फिल्मांकन इसी पृष्ठभूमि में होता है। फ़िल्म में शत्रुघन सिन्हा अपने दोस्त अमिताभ से श्रेष्ठ होने के लिए दोस्ती की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं। उसे धोखा देते हैं। उससे छल प्रपंच करते हैं। इससे अमिताभ बेहद आहत होकर यह गाना गाते हैं। दो बेहद अज़ीज़ दोस्तों के बीच दुश्मनी पनप जाती है।

अमिताभ कहते हैं कि मुझे तुझ पर अपने से ज्यादा भरोसा था। पर तेरी बेवफाई ने मुझे कमजोर कर दिया है। मैं संभल नहीं पा रहा हूं। दुआ देने वाला कभी बद्दुआ नहीं देता। तू मुझे दगा दे यह मैं मान ही नहीं सकता। ये किसी हाल में मुमकिन नहीं है। दरअसल यह अमिताभ नहीं बल्कि उनके अंदर दोस्ती का जो निश्छल भाव है, वह छलक रहा है। 

'दुवा बद-दुवा दे ये मुमकिन नहीं
मुझे तू दगा दे ये मुमकिन नहीं
ख़ुदा जाने क्या माजरा हो गया
सुना है के तू बेवफ़ा हो गया ...'

अगर मांग ले तू ओ जान-ए-जिगर
तुझे जान दे दू मैं ये जान कर
के हक़ दोस्ती का अदा हो गया
सुना है के तू बेवफ़ा हो गया ..

'क़यामत से कम यार ये ग़म नहीं
के तू और मैं रह गए हम नहीं
मेरा यार मुझ से जुदा हो गया
सुना के तू बेवफ़ा हो गया .

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