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नोटबंदीः जमीनी हकीकत भांपने में चूकी सरकार, रोज सामने आ रहा है कन्फ्यूजन!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर की रात 8 बजे जब 500 और एक हजार के नोट बंद कर उनकी जगह नए 500 और 2000 के नोट जारी करने का ऐलान किया तो न सिर्फ जनता बल्कि विरोधी दलों ने भी इसे हाथोंहाथ लिया। इसे आजादी के बाद काले धन के खिलाफ उठाया गया सबसे बड़ा और प्रभावी कदम बताया गया। जनता इसलिए भी परेशान नहीं थी क्योंकि प्रधानमंत्री ने दो दिन बैंक और एटीएम बंद रहने का ऐलान किया था और उसके बाद सबकुछ पहले की तरह हो जाना था लेकिन पिछले 10 दिन से देशभर में जो अव्यवस्था फैली है उससे यही लगता है कि मोदी सरकार ने अपने इस ऐतिहासिक कदम को उठाने से पहले पर्याप्त होमवर्क नहीं किया था।

सरकार ने 500 का नया नोट बैंकों तक पहुंचाने में ही पांच दिन लगा दिए। 2000 का नोट आया भी तो वो एटीएम में फिट नहीं बैठा जिससे नकदी का संकट पैदा हुआ। इसके अलावा हर रोज सरकार की ओर से नोटबंदी को लेकर जिस तरह नए-नए नियम बनाए जा रहे हैं, उससे भी साफ हो गया है कि सरकार से जमीनी हकीकत का आकलन करने में भारी चूक हुई।

रुपये बदलवाने की लिमिटः केंद्र सरकार ने पहले ऐलान किया कि कोई भी व्यक्ति जिसका कोई बैंक अकाउंट नहीं है वो भी 4000 रुपये तक के पुराने नोट अपनी कोई भी एक आईडी देकर किसी भी बैंक या पोस्ट ऑफिस से बदलवा सकता है। चार दिन बाद सरकार ने लोगों को राहत देते हुए इसकी सीमा बढ़ाकर साढ़े चार हजार कर दी। लोगों को इससे थोड़ी राहत मिली लेकिन अगले ही दिन सरकार ने साफ कर दिया कि जो लोग एक बार पैसा बदलवाने आ गए उन्हें फिर से इसकी सुविधा नहीं मिलेगी और ऐसे लोगों की पहचान के लिए उनकी उंगली पर स्याही लगाई जाएगी। जैसे कि यही काफी नहीं था।

गुरुवार को सरकार ने ऐलान किया है कि कल से एक व्यक्ति 4500 नहीं सिर्फ 2000 रुपये बदलवा सकेगा। यानी रुपये बदलवाने की सरकार की पॉलिसी पिछले 9 दिन में चार बाद बदली और उसका कन्फ्यूजन उजागर हो गया।

पैसा निकासी की लिमिटः नौ नवंबर को सरकार ने ऐलान किया कि कोई भी व्यक्ति अपने अकाउंट से एक बार में 10 हजार और हफ्ते में अधिकतम 20 हजार रुपये निकाल पाएगा। यानी 20 हजार रुपये निकलवाने के लिए एक ही व्यक्ति को हफ्ते में दो बार बैंक के बाहर लाइन लगाना जरूरी हो गया। चार दिन बार सरकार को अपनी गलती का अहसास हुआ कि उसकी पॉलिसी से तो बैंकों के बाहर और भीड़ बढ़ेगी तब उसने बदलाव करते हुए नियम बनाया कि कोई भी व्यक्ति अपने अकाउंट से हफ्ते में 24 हजार रुपये तक निकाल सकेगा और ये रकम वो एक बार में ही चाहे तो निकाल सकेगा।

शादी का संकटः नोटबंदी के बाद अपनी पहली व्यवस्था में सरकार ने हर व्यक्ति को लाइन में खड़ा करने को मजबूर कर दिया। लेकिन ऐसा करते वक्त वो ये भूल गई कि ये शादी का सीजन है। वित्त मंत्री अरुण जेटली के सामने पत्रकारों ने जब ये समस्या रखी तो उन्होंने भी कोई राहत देने से इनकार करते हुए शादी वाले घरों को चेक, कार्ड से पेमेंट करने की अव्यावहारिक सलाह दे डाली। देर से ही सही लेकिन सरकार को अपनी गलती का अहसास हुआ और अब ये नियम बनाया गया है कि शादी वाले घरों में कोई एक व्यक्ति केवाईसी के जरिए अपने अकाउंट से ढाई लाख रुपये तक एकमुश्त निकाल सकेगा। जाहिर है जो काम पहले दिन से किया जा सकता था, उसे समझने और करने में सरकार ने 9 अहम दिन गंवा दिए।

टोल टैक्स और ईंधन का संकटः सरकार ने जब नोटबंदी का ऐलान किया तो लोगों को फौरी राहत देते हुए 11 नवंबर तक पेट्रोल पंप पर 500 और हजार के पुराने नोट मान्य होने की पॉलिसी बनाई। लेकिन ऐसा करते वक्त वो भूल गई कि जो हजारों ट्रक इस समय सड़क पर हैं उनके ड्राइवर अपने गंतव्य तक पहुंचने के बीच ईंधन, टोल टैक्स का भुगतान कैसे करेंगे क्योंकि उनके पास तो पुरानी ही करेंसी होगी। बाद में सरकार को इस बारे में भी नया ऐलान करना पड़ा और 14 नवंबर तक देशभर में टोल टैक्स फ्री कर दिए गए तथा पेट्रोल पंप पर पुरानी करेंसी मान्य कर दी गई। यहां भी सरकार से जमीनी हकीकत भांपने में चूक हुई।

मुंबई में स्कूल बसों की एसोसिएशन ने बस सेवा जारी रखने से हाथ खड़े कर दिए। अंततः सरकार को भूल का अहसास हुआ और नया आदेश दिया गया कि फ्री टोल टैक्स और पेट्रोप पंप पर पुरानी करेंसी की व्यवस्था 14 की बजाय 24 नवंबर तक जारी रहेगी।

खेती किसानी की चिंताः सरकार के नोटबंदी के ऐलान का तकरीबन हर तबके ने स्वागत किया लेकिन इस व्यवस्था को जिस तरीके से लागू किया, उसने लोगों के लिए अच्छी-खासी मुसीबत खड़ी कर दी। किसानों के पास खाद-बीज खरीदने तक के पैसे नहीं रहे। सरकार ने अब किसानों को एक हजार रुपये की राहत और देते हुए हफ्ते में पैसा निकासी की उनकी लिमिट 25 हजार रुपये कर दी है।

इसके अलावा किसान क्रेडिट कार्ड से भी 25 हजार रुपये निकाले जा सकते हैं। किसानों को लोन चुकाने के लिए और 15 दिन की मोहलत दी गई है। कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने न्यूज18इंडिया डॉट कॉम से बातचीत में कहा कि इस पूरी प्रक्रिया पर अमल बहुत ही गलत ढंग से हुआ है। नोट बदलवाने की सीमा को साढ़े चार की सीमा को घटाकर 2 हजार रुपये कर दिया गया है जिसका मतलब यही है कि करेंसी नहीं है। 24 हजार हफ्ता तो किसान पहले ही निकाल रहे थे अब 25 हजार की सीमा की गई है। एक हजार बढ़ाने से क्या हो जाएगा? उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश की 60 फीसदी मंडियां बंद हैं। पंजाब, चंडीगढ़ में किसान प्याज लेकर आए हैं कोई खरीदने वाला नहीं है। वहां की सारी इकॉनमी कैश बेस्ड है। छोटा हो या बड़ा किसान उसका सारा ऑपरेशन कैश बेस्ड है। ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि आपका पैसा है और आपको ही नहीं मिल रहा है। गांव की इकॉनमी ध्वस्त है।

बुजुर्गों-दिव्यांगों को राहतः नोटबंदी के सरकार के फैसले से सबसे ज्यादा दिक्कत अकेले रहने वाले बुजुर्गों और दिव्यांगों को हुई। बैंकों के बाहर लगी भारी भीड़ में वे खड़े नहीं हो सकते थे और खर्चा चलाने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। सरकार ने पूरे पांच दिन बाद उनकी सुध ली और बैंकों के बाहर उनके लिए अलग लाइन की व्यवस्था करने के आदेश जारी किए। हालांकि ज्यादातर बैंकों में इसका पालन नहीं हो रहा है और इसकी वजह है बैंकों के बाहर लगी भारी भीड़ और बैंकों के पास पर्याप्त संसाधनों का अभाव। खुद प्रधानमंत्री की मां भी सरकार के इस ऐलान के बाद ही नोट बदलने जा सकीं।

छूट का दुरुपयोगः सरकार ने जब नोटबंदी का ऐलान किया तो यात्रियों, सफर पर निकले लोगों की राहत के लिए उसने व्यवस्था दी कि रेलवे के काउंटरों पर टिकट की बुकिंग, रिजर्वेशन आदि के लिए पुराने नोटों का इस्तेमाल किया जा सकेगा लेकिन काले धन के कुबेरों ने इस छूट को मौके के तौर पर लिया। उन्होंने एक बार में एक-एक लाख रुपये के टिकट बुक करवा लिए। हालांकि समय रहते सरकार का ध्यान इस ओर गया और रेलवे ने 10 हजार से ज्यादा के रिफंड बैंक अकाउंट में करने का नियम बनाकर काले धन के कुबेरों के मंसूबे विफल कर दिए।

मंदिरों-सुनारों-बिल्डरों पर शिकंजाः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबंदी के ऐलान के तुरंत बाद काले धन के कुबेर स

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