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दूर हुई रीना की उदासी

रीना व रवि अपने दाम्पत्य जीवन से खुश थे। मगर जब रवि हर सुबह मजदूरी के
लिये निकलते तो रीना उदास हो जाती। इसकी वजह थी हाड़तोड़ मेहनत के बावजूद रवि
की कमाई कम होना। रीना रवि से ज्यादा पढ़ी-लिखी थीं। घर का नेतृत्व भी उन्हीं के जिम्मे
था। वह सोचा करती कि काश कोई ऐसा सम्मानजनक काम-धंधा मिल जाए, जिससे रवि
को मेहनत भी कम करनी पड़े और घर की आमदनी भी बढ़े। रीना की यह हसरत अब पूरी
हो गई है।
तृप्ति नगर नदीपार टाल मुरार निवासी रीना बाथम बताती हैं कि मैंने अपनी बेटी
दिव्यांशी का दाखिला एक निजी स्कूल में कराया है। वह पहली कक्षा में पढ़ती है। जाहिर
सी बात है निजी स्कूलों की फीस और खर्चे थोड़े ज्यादा होते हैं। जब तक बिटिया स्कूल में
नहीं जाती थी, तब तक हमें आर्थिक दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा। पर अब वह स्कूल
से आती तो कोई न कोई बाल सुलभ फरमाइश लेकर आती। घर की आमदनी सीमित होने
से हम उसकी इच्छाऐं बमुश्किल पूरी कर पा रहे थे। ऐसे विपरीत हालात में राष्ट्रीय शहरी
आजीविका मिशन (एनयूएलएम) ने मेरे परिवार को संबल दिया है।
रीना कहती हैं कि नगर निगम द्वारा लगाए गए एक शिविर के माध्यम से मुझे पता
चला कि एनयूएलएम और उससे जुड़ी मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत जरूरतमंदों
को स्वरोजगार के लिए आर्थिक मदद मिलती है। मैंने भी इस योजना के तहत ई-रिक्शा के
लिये आवेदन भर दिया। जल्द ही इंडियन ओवरसीज बैंक के माध्यम से एक लाख 96 हजार
रूपए का लोन मंजूर हो गया। इसमें 20 प्रतिशत अनुदान राशि शामिल थी।
प्रदेश सरकार की पहल पर ग्वालियर में आयोजित हुए शहरी हितग्राही सम्मेलन में
प्रदेश की नगरीय विकास एवं आवास मंत्री श्रीमती माया सिंह ने जब रीना को ई-रिक्शा
की चाबी सौंपी तो उनकी खुशी देखते ही बनी। रीना एवं उनके पति ने एक दूसरे को ई-
रिक्शा की चाबी सौंपकर आपस में खुशियां बाँटी। रीना बताती हैं कि मुझे व मेरे पति दोनों
को ऑटो रिक्शा चलाना आता है। अब कभी मैं खुद तो कभी वो रिक्शा चलायेंगे। जाहिर है
घर की आमदनी भी बढ़ेगी।

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