Homeवायरल न्यूज़,
हादसे के बाद सीने के बाहर धड़क रहा था दिल, लेकिन डॉक्टरों के हौसले से मौत को दे दी मात

रायपुर। à¤¸à¥œà¤• हादसे में अगर किसी इंसान का हार्ट और एक लंग्स (फेफड़ा) छाती के बाहर आ जाए इसके बाद भी वह आज जिंदा हो तो इसे कुदरत का करिश्मा नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे, 18 साल के बादल धीवर के साथ ऐसा ही हुआ। यह करिश्मा किया धरती के भगवान अर्थात चिकित्सकों ने।

करीब चार घंटे तक चले इस आपरेशन के दौरान जान बचाने वालों में कई अहम किरदार हैं मगर सभी चकित, क्योंकि ऐसे मामलों में जान जानी तय मानी जाती है। अगर सर्जरी हो भी गई तो संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा होता है।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित सरकारी भीमराव आंबेडकर अस्पताल के एडवांस कॉर्डियक इंस्टीट्यूट (एसीआई) के डॉक्टरों ने सर्जरी के बाद कहा भी कि जब उसे अस्पताल लाया गया था, उसकी खुली छाती में मिट्टी और पानी भरा था। बहरहाल, अंतत: सब ठीक हुआ और आज वो शानदार जीवन गुजार रहे हैं।

घटना रायपुर से करीब 35 किलोमीटर दूर आरंग क्षेत्र के खरोरा की है। 27 अगस्त को बादल मछलियां बेचकर अपने जीजा के साथ बाइक से घर लौट रहा था। बादल पीछे बैठा था, बरसात हो रही थी। इसी दौरान तेज रफ्तार बाइक ब्रेक लगने से असंतुलित हुई और बादल सड़क किनारे लगे खंभे पर जा गिरा। खंभे के एक हिस्से ने उसकी छाती में गड्ढा कर दिया। वह बेहोश हो चुका था ...जब होश आया तब 48 घंटे बीत चुके थे, उसका आपरेशन हो चुका था, और मौत उसे छूकर निकल गई थी।

 

ऐसे बनती चली गई मदद की कड़ी

दुर्घटना तीसरे पहर 4.30 बजे हुई थी। वहीं मौजूद एक पान बेचने वाले ने 100 नंबर पर फोन कर पुलिस को जानकारी दी। पुलिस मौके पर पहुंची और बादल को खरोरा तक लाया गया। वहां उसे 108 एंबुलेंस सेवा के हवाले कर दिया गया। एंबुलेंस के स्टॉफ ने रक्तचाप व नाड़ी की जांच की, जो तेजी से गिर रही थी। बादल को ऑक्सीजन सपोर्ट दिया और तुरंत पहुंचाया गया डॉ. भीमराव आंबेडकर अस्पताल। तब तक शाम के 6.45 बज चुके थे।

 

आंबेडकर अस्पताल में सीएमओ डाॅ. रोहित दुबे ने बादल को सीधे ट्रामा यूनिट में रेफर किया। ट्रामा यूनिट इंचार्ज को अलर्ट किया गया और कॉर्डियक सर्जन डॉ केके साहू को इमरजेंसी कॉल कर घर से बुलाया गया। डॉ. साहू ने घर से निकलते-निकलते ही ओटी स्टाफ को तुरंत मौके पर जुट जाने के निर्देश दिए।

पूरी तैयारी के बाद रात नौ बजे आपरेशन शुरू किया गया। इस दौरान पीजी रेजीडेंट डॉ. रमेश, एनेस्थिसियोलॉजिस्ट डा. मुकेश, सिस्टर इंचार्ज कैथरीना करकेटा, नर्सिंग स्टाफ राजेंद्र साहू मौजूद थे। आपरेशन के दौरान कई ऐसे उपकरणों की जरूरत पड़नी थी जिनकी तत्काल व्यवस्था मुमकिन न थी। ऐसे में दूसरे पेशेंट के लिए मंगाए गए उपकरणों का इस्तेमाल किया गया जिसका आपरेशन 28 अगस्त को होना तय था।

 

यह दशा थी शरीर की

- हार्ट व फेफड़ा छाती के बाहर थे जिन्हें उनके मूल स्थान पर किया गया।

 

- शरीर के भीतर भर चुकी मिट्टी व पानी को मशीन से खींचा गया।

- स्टनर्म : छाती की मुख्य हड्डी जो दो भागों में टूट चुकी थी, उसे स्टील के वॉयर से जोड़ा गया।

 

- रिप फ्रेक्चर : चार में से दो गायब हो गए थे। इन्हें स्टील की प्लेट से जोड़ा गया।

- डायफ्राम : इसको सीधे रिपेयर किया गया।

 

- चमड़ी: हार्ट के पास की 'आठ गुणे दो" सेंटीमीटर की चमड़ी कटकर गायब हो चुकी थी। आसपास की चमड़ी को खींचकर सिला गया।

चमत्कार ही है

 

मरीज का हार्ट और लंग्स छाती के बाहर धड़क रहे थे। ऐसे केस में मरीज अस्पताल तक जीवित पहुंच गया, यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। मैंने इतनी सर्जरी की है लेकिन ऐसा केस कभी सामने नहीं आया। हमनें अपना काम किया, बाकी ऊपरवाले की मेहरबानी। शुक्रिया उनका, जिन्होंने उसे अस्पताल पहुंचाया। ऐसे मामले मेडिकल साइंस में दुर्लभतम होते हैं।

 

- डॉ. केके साहू विभागाध्यक्ष, कॉर्डियक थोरोसिक सर्जरी, एसीआई

Share This News :