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जनधन खाताधारकों पर कार्रवाई से कहीं बिगड़ न जाए बीजेपी का 'खेल', नेताओं में डर

नोटबंदी के बाद कालाधन रखने वालों ने जनधन खातों को ढाल बनाकर अपनी रकम सफेद करना शुरू कर दिया है। आयकर विभाग ऐसे खाताधारकों पर भी सख्‍त कार्रवाई करने की योजना बना रहा है। चूंकि ये खाते गरीबों के हैं इसलिए भाजपा नेताओं का एक बड़ा वर्ग सख्‍ती को लेकर दुविधा में है।पार्टी के भीतर इस बात पर मंथन हो रहा है कि जनधन खाताधारकों पर कार्रवाई हुई तो उसकी छवि गरीब विरोधी बन जाएगी। जिससे यूपी व पंजाब विधानसभा चुनाव में उसे नुकसान हो सकता है।
भाजपा के कुछ नेताओं का मानना है कि विपक्ष इसे हथियार बना लेगा। सवाल उठेगा कि मोदी सरकार विजय माल्‍या से न रकम वसूल पा रही है और न ही उसे इंग्‍लैंड से वापस भारत ला पा रही है, जबकि गरीबों को न सिर्फ लाइन में लगा रही है बल्‍कि उसे नोटिस भेजकर टॉर्चर भी कर रही है। बता दें कि जनधन के लगभग 25 करोड़ खाते खोले गए थे। जिनमें से करीब 8 करोड़ खातों में नोटबंदी से पहले या तो जीरो बैलेंस था या फिर उसमें 500-1000 रुपये ही थे।
इन खातों में अधिकतम 50 हजार रुपये जमा करने का प्रावधान है लेकिन कालेधन वालों ने इनमें 50 हजार तक जमा करवाकर बड़े पैमाने पर अपना धन सफेद करने की कोशिश शुरू कर दी है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने सरकार को जो रिपोर्ट सौंपी है उसके मुताबिक पिछले 13 दिन में जनधन खातों में 21 हजार करोड़ रुपये से अधिक जमा हुए हैं। पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि आयकर विभाग इतनी बड़ी संख्या में नोटिस भी भेज दे तो ग्रामीण इलाकों में लोगों का गुस्सा फूट पड़ेगा। हालांकि कोई नेता इस मसले पर खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं है।
समाजवादी पार्टी की प्रवक्‍ता जूही सिंह का कहना है कि जनधन खाताधारकों पर कार्रवाई का उनकी पार्टी विरोध करेगी। क्‍योंकि पहले मोदी जी ने कहा था कि कालधन आएगा तो सबके खाते में 15-15 लाख रुपये डाले जाएंगे। अब अगर गरीबों के खाते में 50-50 हजार रुपये भी पड़ गए हैं तो उन पर कार्रवाई क्‍यों करने जा रहे हो। कार्रवाई करनी है तो विजय माल्‍या पर करके दिखाओ।
वरिष्‍ठ पत्रकार आलोक भदौरिया कहते हैं कि वैसे तो सरकार के पास जनधन के इतने खातों पर कार्रवाई करने का तंत्र नहीं है, लेकिन यदि कुछ हुआ तो यह भाजपा को बड़ा नुकसान देगा। क्‍योंकि यही वोट देने वाले लोग हैं। दरअसल, अब जो सरकार कर रही है उसे इमरजेंसी लागू करके ही किया जा सकता है। लगता है कि सरकार ने लोगों के जीने का अधिकार छीन लिया है। लोग अपने कमाए पैसे को निकालने के लिए पुलिस की लाठियां खा रहे हैं। सरकार का यह रवैया डेमोक्रेसी के लिए अच्‍छा नहीं माना जा सकता। कैश इकोनॉमी को रातोंरात नहीं बंद कर सकते। भारत को इंडिया मानने की गलती मत कीजिए।

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