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33 साल में बिना सुंदरलाल पटवा भाजपा का यह पहला चुनाव

मध्य प्रदेश में भाजपा के पितृ पुरुषों में शुमार रहे प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के न होने की कमी इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा को रायसेन जिले में जमकर खलने वाली है। 33 साल में ऐसा पहली बार होगा जब भाजपा बिना 'पटवा मैनेजमेंट" के चुनाव मैदान में होगी। ऐसे में जिले में कमल खिलाए रखने का पूरा दारोमदार उनके राजनीतिक शिष्य और सूबे के मुखिया शिवराज पर ही होगा।

यूं तो भाजपा की राजनीति में रायसेन जिला हमेशा से प्रभावी रहा है और अभी भी सरकार में तीन मंत्री जिले से ही हैं, लेकिन इस बार कमजोर संगठन और गुटबाजी के बीच चुनाव लड़ना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। वर्ष 1985 में जब सुंदरलाल पटवा को प्रदेश में सुरक्षित सीट की तलाश थी, तब वे सीहोर से भोजपुर आए थे।

यहां से चुनाव लड़कर लगातार 1998 तक वे जीत हासिल करते रहें। इसी सीट से विधायक रहते मुख्यमंत्री भी बने, बाद में दिग्विजय सरकार में वे नेता प्रतिपक्ष भी यहीं से रहे। 2003 के चुनाव में जब पहली बार उन्होंने अपने भतीजे सुरेंद्र पटवा को चुनाव लड़ाया तो पुरविया पट्टी (चूंकि सामने कांग्रेस से पुरविया समाज के राजेश पटेल थे) सुरेंद्र की हार का कारण बन गई। वे महज 1500 वोटों से चुनाव हार गए।

सुंदरलाल पटवा के लिए यह चुनावी हार राजनीतिक जीवन की बड़ी हार बन गई थी। बताते हैं फिर उन्होंने अपने गुणा-गणित सेट कर नए परिसीमन में इस पुरविया पट्टी को ही भोजपुर से हटवाकर उदयपुरा विधानसभा क्षेत्र में जुड़वा दिया। तब से अब तक सुरेंद्र पटवा 2 बार यहां से लगातार चुनाव जीत चुके हैं और अभी सरकार में पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री भी हैं।

अब प्रत्यक्ष रूप से सुंदरलाल पटवा के सामने नहीं होने से विरोधियों के स्वर मुखर हो गए हैं यहां तक कि चुनाव लड़ने भाजपा से ही कई नेता सामने आ रहे हैं। जिले की चारों विधानसभा सीटों पर भाजपा की हालत पतली नजर आ रही है अभी तो इन हालातों से निपटने तीनों मंत्री एक दूसरे की मदद करने खुले मन से हाथ बढ़ाने से भी नहीं चूक रहे हैं।

जो पटवा ने कहा वही मान्य हुआ

लगभग साढ़े तीन दशक तक जिले की भाजपा में सुंदरलाल पटवा की तूती बोलती रही। जब उन्होंने जो कहा वही अंतिम और मान्य रहा। 2005 में अपने शिष्य शिवराज के मुख्यमंत्री बनते ही पटवा फिर ताकतवर हो गए थे। भाजपा के ही विरोधियों सहित कांग्रेस की रणनीति को फेल करने वाले पटवा के निधन के बाद भाजपा जिले में पूरी तरह बिखर गई है।

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