शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥€à¤ जिनके दरà¥à¤¶à¤¨ मातà¥à¤° से पूरी होती है हर मनोकामना
शकà¥à¤¤à¤¿ की आराधना का परà¥à¤µ नवरातà¥à¤° बà¥à¤§à¤µà¤¾à¤° से शà¥à¤°à¥‚ हो रहा है। अगले 9 दिन à¤à¤•à¥à¤¤ माता की आराधना करेंगे। मंदिर में à¤à¥€ आसà¥à¤¥à¤¾ का सैलाब नजर आà¤à¤—ा। यहां हम आपको उन शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥€à¤ ों के बारे में बताà¤à¤‚गे, जिनके दरà¥à¤¶à¤¨ मातà¥à¤° से सà¤à¥€ पाप दूर हो जाते हैं।
चिंतपूरà¥à¤£à¥€ मंदिर
चिंतपूरà¥à¤£à¥€ धाम हिमाचल पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के जिला ऊना में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। यह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ 51 शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥€à¤ ों में से à¤à¤• है। यहां पर माता सती के चरण गिरे थे। जब मां सती ने पिता के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ किठगठशिव के अपमान से कà¥à¤ªà¤¿à¤¤ होकर अपने पिता राजा दकà¥à¤· के यजà¥à¤ž कà¥à¤‚ड में कूदकर अपने पà¥à¤°à¤¾à¤£ तà¥à¤¯à¤¾à¤— दिठथे, तब कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ शिव उनकी देह को लेकर पूरी सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में घूमे। शिव का कà¥à¤°à¥‹à¤§ शांत करने के लिठà¤à¤—वान विषà¥à¤£à¥ ने अपने चकà¥à¤° से माता सती के शरीर के टà¥à¤•à¤¡à¤¼à¥‡-टà¥à¤•à¤¡à¤¼à¥‡ कर दिà¤à¥¤ शरीर के यह टà¥à¤•à¤¡à¤¼à¥‡ धरती पर जहां-जहां गिरे वह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥€à¤ कहलाया। चिंतपूरà¥à¤£à¥€ माता अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ चिंता को पूरà¥à¤£ करने वाली देवी चिंतपूरà¥à¤£à¥€ देवी का यह मंदिर काफी पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ है। à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ में माता के चरणों का सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ करने को लेकर अगाध शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ है।
चिंतपूरà¥à¤£à¥€ देवी का मंदिर हिमाचल पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के सोलह सिंगी शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ की पहाड़ी पर छपरोह गांव में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। अब यह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ चिंतपूरà¥à¤£à¥€ के नाम से ही जाना जाता है। कहा जाता है चिंतपूरà¥à¤£à¥€ देवी की खोज à¤à¤•à¥à¤¤ माई दास ने की थी। माई दास पटियाला रियासत के अठरनामी गांव के निवासी थे। वे मां के अननà¥à¤¯ à¤à¤•à¥à¤¤ थे। उनकी चिंता का निवारण माता ने सपने में आकर किया था। चिंतपूरà¥à¤£à¥€ देवी का à¤à¤• बार दरà¥à¤¶à¤¨ मातà¥à¤° करने से सà¤à¥€ चिंताओं से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ मिलती है इसे छिनà¥à¤¨à¤®à¤¸à¥à¤¤à¤¿à¤•à¤¾ देवी à¤à¥€ कहते हैं। शà¥à¤°à¥€ मारà¥à¤•à¤‚डेय पà¥à¤°à¤¾à¤£ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° जब मां चंडी ने राकà¥à¤·à¤¸à¥‹à¤‚ का संहार करके विजय पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ की तो माता की सहायक योगिनियांअजया और विजया की रà¥à¤§à¤¿à¤° पिपासा को शांत करने के लिठअपना मसà¥à¤¤à¤• काटकर, अपने रकà¥à¤¤ से उनकी पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ बà¥à¤à¤¾à¤ˆ इसलिठमाता का नाम छिनà¥à¤¨à¤®à¤¸à¥à¤¤à¤¿à¤•à¤¾ देवी पड़ गया।
बजà¥à¤°à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤°à¥€ देवी मंदिर कांगड़ा
कांगड़ा का बजà¥à¤°à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤°à¥€ देवी शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥€à¤ जिसे नगरकोट धाम à¤à¥€ कहा जाता है, à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ हैं, जहां पहà¥à¤‚च कर à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ का हर दà¥à¤– तकलीफ मां की à¤à¤• à¤à¤²à¤•à¤à¤° देखने से दूर हो जाती है। 51 शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥€à¤ ों में से यह मां का वह शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥€à¤ है जहां मां सती का दाहिना वकà¥à¤· गिरा था। माता के इस धाम में मां की पिंडियां à¤à¥€ तीन ही हैं। मंदिर के गरà¥à¤à¤—ृह में पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित पहली और मà¥à¤–à¥à¤¯ पिंडी मां बजà¥à¤°à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤°à¥€ की है। दूसरी मां à¤à¤¦à¥à¤°à¤•à¤¾à¤²à¥€ और तीसरी और सबसे छोटी पिंडी मां à¤à¤•à¤¾à¤¦à¤¶à¥€ की है। मां के इस शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥€à¤ में ही उनके परम à¤à¤•à¥à¤¤ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥ ने अपना शीश अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ किया था। इसलिठमां के वे à¤à¤•à¥à¤¤ जो धà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥ के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ à¤à¥€ हैं वह पीले रंग के वसà¥à¤¤à¥à¤° धारण कर मंदिर में आते हैं और मां का दरà¥à¤¶à¤¨ पूजन कर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को धनà¥à¤¯ करते हैं।
मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि जो à¤à¥€ à¤à¤•à¥à¤¤ मन में सचà¥à¤šà¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ लेकर मां के इस दरबार में पहà¥à¤‚चता है उसकी कोई à¤à¥€ मनोकामना अधूरी नहीं रहती। चाहे मनचाहे जीवनसाथी की कामना हो या फिर संतान पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ की लालसा। मां अपने हर à¤à¤•à¥à¤¤ की मà¥à¤°à¤¾à¤¦ पूरी करती हैं। मां के इस दरबार में पांच बार आरती का विधान है, जिसका गवाह बनने की खà¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¶ हर à¤à¤•à¥à¤¤ के मन में होती है। मंदिर परिसर में ही à¤à¤—वान à¤à¥ˆà¤°à¤µ का à¤à¥€ मंदिर है। इस मंदिर में महिलाओं का जाना पूरà¥à¤£ रूप से वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ है। यहां विराजे à¤à¤—वान à¤à¥ˆà¤°à¤µ की मूरà¥à¤¤à¤¿ बड़ी ही खास है। कहते हैं जब à¤à¥€ कांगड़ा पर कोई मà¥à¤¸à¥€à¤¬à¤¤ आने वाली होती है तो इस मूरà¥à¤¤à¤¿ की आंखों से आंसू और शरीर से पसीना निकलने लगता है। यहां पास में ही बनेर नदी के किनारे पवितà¥à¤° बाण गंगा à¤à¥€ है। जहां सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ का विशेष महतà¥à¤µ है।
जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾à¤®à¥à¤–ी मंदिर, यहां होते हैं साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾ के दरà¥à¤¶à¤¨
जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾à¤®à¥à¤–ी मंदिर को जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾à¤œà¥€ के रूप में à¤à¥€ जाना जाता है। यह जिला कांगड़ा में कांगड़ा शहर के दकà¥à¤·à¤¿à¤£ में 30 किलोमीटर की दूरी पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। यह मंदिर हिंदू देवी जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾à¤®à¥à¤–ी को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ है। इनके मà¥à¤– से अगà¥à¤¨à¤¿ का पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ होता है। इस मंदिर में अगà¥à¤¨à¤¿ की अलग-अलग छह लपटें हैं जो अलग अलग देवियों को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ हैं जैसे महाकाली अनà¥à¤¨à¤ªà¥‚रना, चंडी, हिंगलाज, बिंधà¥à¤¯à¤¬à¤¾à¤¸à¤¨à¥€, महालकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€, अमà¥à¤¬à¤¿à¤•à¤¾ और अंजी देवी। पौराणिक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° यह मंदिर सती के कारण बना था।
बताया जाता है कि देवी सती की यहां जीठगिरी थी। इस मंदिर में अगà¥à¤¨à¤¿ की लपटें à¤à¤• परà¥à¤µà¤¤ से निकलती हैं। अकबर को अपने शासन के समय जब इस मंदिर के बारे में पता चला था तो उसने आग की लपेटों की ऊपर à¤à¤• नहर बनाकर पानी छोड़ दिया था, फिर à¤à¥€ यह लपेटें नहीं बà¥à¤à¥€ थी। उसके बाद अकबर ने इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ लोहे के बड़े ढकà¥à¤•à¤¨ (तवा) से बà¥à¤à¤¾à¤¨à¥‡ का à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया था लेकिन यह उसे फाड़कर à¤à¥€ बाहर आ गई थी। उसके बाद अकबर यहां नंगे पांव आया था और मां से माफी मांगते हà¥à¤ यहां सोने का छतà¥à¤° अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ किया था।
चामà¥à¤‚डा नंदीकेशà¥à¤µà¤° धाम
चामà¥à¤‚डा देवी मंदिर à¤à¥€ हिमाचल पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के जिला कांगड़ा में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। जिला मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर बनेर नदी के किनारे सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ यह मंदिर 700 साल पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ है। इस विशाल मंदिर का विशेष धारà¥à¤®à¤¿à¤• महतà¥à¤µ है यह à¤à¤• सिदà¥à¤§à¤ªà¥€à¤ है।
यह मंदिर हिंदू देवी चामà¥à¤‚डा जिनका दूसरा नाम देवी दà¥à¤°à¥à¤—ा à¤à¥€ है, को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ है। इस मंदिर का वातावरण बड़ा ही शांत है जिस कारण यहां आने वाला वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ असीम शांति की अनà¥à¤à¥‚ति करता है। माता का नाम चामà¥à¤‚ड़ा पडऩे के पीछे à¤à¤• कथा पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ है कि मां ने यहां चंड और मà¥à¤‚ड नामक दो असà¥à¤°à¥‹à¤‚ का संहार किया था। उन दोनों असà¥à¤°à¥‹ को मारने के कारण माता का नाम चामà¥à¤‚डा देवी पड़ गया। यहां साथ ही में à¤à¤• गà¥à¤«à¤¾ के अंदर à¤à¤—वान शिव à¤à¥€ नंदीकेशà¥à¤µà¤° के नाम से विराजमान हैं। à¤à¤¸à¥‡ में इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ को चामà¥à¤‚डा नंदीकेशवर धाम à¤à¥€ कहा जाता है।
मां नयना देवी, बिलासपà¥à¤°
नयना देवी माता का मंदिर हिमाचल पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के जिला बिलासपà¥à¤° में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर माता सती के दोनों नेतà¥à¤° गिरे थे। नयना देवी का मंदिर à¤à¥€ पà¥à¤°à¤®à¥à¤– शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥€à¤ ों में से à¤à¤• है। हिमाचल पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ यह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पंजाब राजà¥à¤¯ की सीमा के समीप है।
मंदिर में माता à¤à¤—वती नयना देवी के दरà¥à¤¶à¤¨ पिंडी के रूप में होते हैं। नवरातà¥à¤° में यहां विशाल मेला लगता है। लाखों à¤à¤•à¥à¤¤ यहां आकर मां के दरà¥à¤¶à¤¨ करते हैं व अपनी मनोकामना पूरà¥à¤£ करते हैं। इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ तक आनंदपà¥à¤° साहिब और ऊना से à¤à¥€ आसानी से पहà¥à¤‚चा जा सकता है।