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दिग्गज नेताओं की सियासत के सूत्र संभाल रहे पुत्री या पुत्र

भोपाल। à¤®à¤§à¥à¤¯ प्रदेश में भाजपा हो या कांग्रेस, राजनीति में सफल नेताओं के पीछे पुत्री-पुत्र की सक्रिय भूमिका रही है। निर्वाचन क्षेत्र में सियासत के सारे सूत्र ये ही संभाल रहे हैं। इनका लोहा संगठन भी मान चुका है, तभी तो दोनों दलों ने कुछ को चुनावी रण में उतारा तो कुछ संगठन में ऊंचे ओहदे पर पहुंचे। कुछ आज विधायक हैं तो कुछ टिकट की दौड़ में शामिल हैं।

विंध्य, बुंदेलखंड और मालवा-निमाड़, सभी जगह ऐसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है, जिनके चुनाव क्षेत्र की कमान इनके पुत्र या पुत्री संभालते हैं। इसमें भाजपा और कांग्रेस के ऐसे नेता शामिल हैं, जो राज्य या फिर केंद्र की सियासत करते हैं। कुछ पार्टी में ऊंचे पदों पर होने की वजह से दूसरी जिम्मेदारियों के चलते क्षेत्र को वक्त नहीं दे पाते हैं तो कुछ प्रदेश में मंत्री हैं, इसलिए व्यस्त रहते हैं। प्रदेशभर में दौरे और विभाग के कामकाज के चलते इन्होंने अपने क्षेत्र को पुत्र या पुत्री के हवाले कर दिया है।जानकारों की मानें तो बेटा या बेटी के हवाले क्षेत्र करने की दो मुख्य वजह हैं। पहली- आगे चलकर निर्वाचन क्षेत्र पर स्वाभाविक दावा बनेगा, जो भविष्य के लिए मददगार साबित होगा। दूसरी- राज्य और केंद्र स्तर की राजनीति करने के लिए समय चाहिए होता है, इसके लिए निर्वाचन क्षेत्र की चिंता से मुक्त होना जरूरी है। जब कोई अपना पूरी जिम्मेदारी संभाल लेता है तो मन में कोई शंका नहीं रह जाती है। हालांकि इसका अंदरूनी तौर पर विरोध भी होता है, क्योंकि दूसरे कार्यकर्ताओं को मौका नहीं मिल पाता।

कार्तिकेय सिंह चौहान

 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर भाजपा को चौथी बार प्रदेश में सत्ता के सिंहासन तक पहुंचाने का दारोमदार है। ऐसे में चुनाव के समय बुदनी (निर्वाचन क्षेत्र) में ज्यादा समय देना संभव नहीं होगा, इसलिए पुत्र कार्तिकेय ने कमान संभाल ली है। वे काफी समय से बुदनी विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय हैं। स्थानीय नेताओं से तालमेल बैठाकर लगातार बैठक और अन्य कार्यक्रम कर रहे हैं।

 

आकाश विजयवर्गीय

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को पार्टी ने पश्चिम बंगाल का प्रभार देकर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। ज्यादातर समय वहीं गुजरता है। ऐसे में निर्वाचन क्षेत्र डॉ. आंबेडकर नगर (महू) की पूरी जिम्मेदारी बेटे आकाश संभालते हैं। क्षेत्रीय विकास के कामों से लेकर स्थानीय समीकरण देखना भी उन्हें के जिम्मे हैं। इनके चुनाव लड़ने की चर्चा है।

अभिषेक भार्गव

 

सात बार लगातार चुनाव जीत चुके पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव के विधानसभा क्षेत्र रेहली की पूरी जिम्मेदारी इन्हीं के पास है। 2013 के चुनाव में भार्गव आचार संहिता लागू होने के बाद एक दिन भी प्रचार के लिए क्षेत्र में नहीं गए। चुनाव के पूरे सूत्र अभिषेक के हाथों में रहे। भारतीय जनता युवा मोर्चा में प्रदेश उपाध्यक्ष रह चुके हैं। इनके चुनाव लड़ने को लेकर चर्चा है।

 

सिद्धार्थ मलैया

 

वित्तमंत्री जयंत मलैया के पुत्र। दमोह में सक्रिय। सामाजिक और सार्वजनिक कामों में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी। स्थानीय स्तर पर सत्ता और संगठन की जमावट करने की जिम्मेदारी। एक तरह पिता का पूरा काम क्षेत्र में देखते हैं। चुनाव लड़ने को लेकर चर्चा में हैं।

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