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सपा-बसपा की 'फ्रेंडली फाइट

 à¤®à¤§à¥à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को गठबंधन के नाम पर बसपा और सपा ने धता बताकर चौंका दिया। दोनों ही दल के प्रमुखों ने इसके लिए कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराया। चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है, इस बीच सपा व बसपा के बीच अंदरूनी तालमेल की बातें होने लगी हैं। खुल्लम-खुल्ला गठबंधन के बजाए दोनों ही दलों ने 'फ्रेंडली फाइट" का रास्ता निकाला है।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव इस बारे में स्पष्ट संकेत दे चुके हैं। कांग्रेस के साथ गठबंधन के मुद्दे पर दोनों ही दलों ने लोकसभा चुनाव 2019 के लिए विकल्प खुले छोड़ दिए हैं। प्रदेश में भाजपा को चौथी बार सत्ता में आने से रोकने के लिए छह महीने से कांग्रेस के साथ सपा-बसपा के गठबंधन की चर्चा चल रही थी, लेकिन ऐन वक्त पर दोनों ने ही अलग राह पकड़ ली। विधानसभा चुनाव में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए समाजवादी पार्टी ने अब बसपा के सामने दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया है। दोनों ने ही अंदरूनी तौर पर एक-दूसरे के हितों का ख्याल रखने पर रजामंदी कर ली है।बसपा प्रभारी रामअचल राजभर भी इस मुद्दे पर बसपा सुप्रीमो का हवाला देकर खुलकर नहीं बोले, लेकिन सपा के साथ 'फेंडली फाइट" से इनकार भी नहीं किया। सपा ने अपनी चुनावी यात्रा में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) को साथ में रखा है। यही वजह है कि खजुराहो की बैठक में गोंगपा के प्रदेश प्रभारी श्याम मरकाम भी मौजूद थे।बसपा के साथ 'फ्रेंडली फाइट" में दोनों ही दल सभी 230 सीटों पर नहीं लड़ेंगे। सपा का सारा प्रयास यह है कि विधानसभा में उसका खाता खुले, साथ ही बाकी सीटों पर मतों का प्रतिशत बढ़ जाए, जिससे क्षेत्रीय दल से उठकर उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने में मदद मिले।मप्र में कांग्रेस के साथ सपा-बसपा का गठबंधन न हो पाने से भाजपा फायदे में रहेगी। बसपा मप्र में पिछले दस साल में पिछड़ गई, उसे 2013 के चुनाव में 4 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। जबकि 1993 और 1998 में उसके 11-11 विधायक जीतकर आए थे। 2003 में विधायकों की संख्या मात्र 2 ही थी। 2008 में उसे 8.72 फीसदी वोट और 7 सीटें मिलीं जबकि 19 सीटें ऐसी थीं, जहां उसे दूसरा स्थान मिला। अब इस चुनाव में बसपा ज्यादा से ज्यादा विधायक जिताने के लिए सारा जोर लगा रही है।वर्ष 2013 के चुनाव में सपा का सबसे कमजोर प्रदर्शन रहा था। उसे मात्र 11 हजार 329 मत ही मिले जबकि 2008 में उसे 4 लाख 88 हजार 894 मत मिले थे। 2003 में 3.71 फीसदी और कुल 9 लाख 45 हजार 958 मत मिले थे। यह उसका अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा था। इसलिए मप्र में तेजी से खिसक रहे जनाधार को लेकर सपा चिंतित भी है।

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