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दल-बदलकर लाए गए नेताओं के टिकट पर मुहर लगना बाकी

 à¤®à¤§à¥à¤¯ प्रदेश में 15 साल की भाजपा सरकार की एंटी इंकम्बेंसी और टिकट नहीं मिलने की आशंका से नेता कांग्रेस की तरफ दौड़ लगा रहे हैं। दूसरे दल के नेता भी कांग्रेस की तरफ रुख कर रहे हैं। हालांकि इन नेताओं के आने से उन क्षेत्रों से टिकट की दावेदारी कर रहे कांग्रेस नेताओं में नाराजगी भी देखी जा रही है। आधा दर्जन से ज्यादा पूर्व विधायक और विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा चुके नेताओं के तो टिकट लगभग फाइनल माने जा रहे हैं।

प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ के आने के बाद जिन गैर कांग्रेसी पूर्व विधायकों ने उनसे संपर्क किया था, उनमें रतलाम से निर्दलीय विधायक रहे पारस सकलेचा और भाजपा के पूर्व विधायक व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा के भाई गिरिजाशंकर शर्मा थे। सकलेचा ने दिल्ली में कांग्रेस की सदस्यता ली थी। वे रतलाम शहर से विधायक रहे थे और उनका विधानसभा चुनाव में रतलाम से प्रत्याशी बनना लगभग तय माना जा रहा है।नाथ से पहले दौर में मुलाकात करने वाले गिरिजाशंकर शर्मा ने अभी कांग्रेस की सदस्यता नहीं ली है, लेकिन वे आने वाले सप्ताह में कभी भी पार्टी ज्वाइन कर सकते हैं। सूत्र बताते हैं कि उनकी हाईकमान से लगातार बातचीत चल रही है। वे सोहागपुर से चुनाव मैदान में उतरने को तैयार हैं और अपने भाई डॉ. सीतासरन शर्मा के अलावा होशंगाबाद की दूसरी किसी सीट से भी पार्टी के आदेश पर प्रत्याशी बन सकते हैं।

विधानसभा चुनाव 2013 में कटनी की विजयराघौगढ़ सीट से संजय पाठक के सामने पद्मा शुक्ला थीं और इस बार भी लगभग इन्हीं दोनों के बीच मुख्य मुकाबला होने की संभावना है। मगर इस बार दोनों के दलों में अदला-बदली है।

संजय पाठक कांग्रेस के बजाय भाजपा और पद्मा शुक्ला भाजपा के बजाय कांग्रेस की संभावित प्रत्याशी दिखाई दे रही हैं। पद्मा शुक्ला को कांग्रेस ज्वाइन कराने के पीछे मुख्य भूमिका राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा की रही है। 2013 में पद्मा 929 वोटों से हार गई थीं। हालांकि इस सीट पर दावेदारी जताने वाले कुछ प्रमुख नेताओं की पद्मा की कांग्रेस में एंट्री पर नाराजगी है।कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने वाले दो पूर्व विधायकों शेखर चौधरी और सुनील मिश्रा ने भी पार्टी ज्वाइन की है। शेखर चौधरी गोटेगांव से हैं। सूत्र बताते हैं कि उन्हें टिकट का आश्वासन दिया गया है। ऐसे में गोटेगांव से पूर्व मंत्री नर्मदा प्रसाद प्रजापति के टिकट पर संकट आ सकता है।

वहीं, कटनी के मुडवारा से आने वाले सुनील मिश्रा के लिए टिकट में ज्यादा परेशानी नहीं होगी, क्योंकि इस सीट से पार्टी 2013 में करीब 47 हजार वोट से हारी थी। रीवा जिला पंचायत के अध्यक्ष अभय मिश्रा ने कमलनाथ के आने के बाद पार्टी ज्वाइन की थी।

चौदहवीं विधानसभा के अंतिम सत्र में उनकी पत्नी विधायक नीलम मिश्रा ने सदन के भीतर पति के खिलाफ पुलिस कार्रवाई को लेकर जिस तरह सरकार के खिलाफ धरना दिया था, उससे सरकार कठघरे में खड़ी हो गई थी। इसके कुछ दिन बाद ही अभय मिश्रा ने कांग्रेस की सदस्यता ले ली थी।उन्हें रीवा जिले के सेमरिया से कांग्रेस प्रत्याशी माना जा रहा है। इस सीट पर बसपा का प्रभाव है और 2013 में वह दूसरे नंबर पर रही थी। इसी तरह खातेगांव से सपा से चुनाव लड़ने वाले अर्जुन आर्य को भी बुधनी में मुख्यमंत्री के सामने खड़ा करने की रणनीति बनाई जा रही है। आर्य को भी हाल ही में पार्टी ज्वाइन कराई गई है।

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