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आज करो नरक बाहर, घर आएंगी मां लक्ष्मी

दिवाली से एक दिन यानी आज नरक चतुर्दशी का पर्व वस्तुत: लक्ष्मी के स्वागत का पर्व है। इसको नरक चतुर्दशी के साथ ही छोटी दिवाली और रूप चतुर्दशी भी कहते हैं। इस दिन घर के नरक यानी गंदगी को दूर किया जाता है। जहां सुंदर और स्वच्छ प्रवास होता है, वहां लक्ष्मी जी अपने कुल के साथ आगमन करती हैं। उनके साथ, श्री नारायण, गणपति, शंकर जी, समस्त देवियां, कुबेर, नक्षत्र और नवग्रह होते हैं। यही लक्ष्मी कुल सुख और समृद्धि का प्रतीक है।इससे दो कथाएं जुड़ी हैं। एक कथा नरकासुर की है। नरकासुर का अंत वासुदेव नंदन भगवान श्रीकृष्ण ने किया था। शिवपुराण में इसी नरकासुर का अंत कार्तिकेय जी ने किया था। दोनों ही कथाओं में नरकासुर ने ब्रह्मा जी से कभी मृत्यु न होने का वरदान मांग लिया था। दूसरी कथा रंती देव नामक राजा से जुड़ी है। रंती ने कभी पाप नहीं किया, लेकिन यमराज आ गए। यमराज बोले, एक बार तुमने एक धर्मात्मा को अपने द्वार से लौटा दिया था। कालांतर में, रंती ने एक साल की मोहलत लेकर अपने जीवन को पापमुक्त किया।

देवी लक्ष्मी धन की प्रतीक हैं। धन का अर्थ केवल पैसा नहीं होता। तन-मन की स्वच्छता और स्वस्थता भी धन का ही कारक हैं। धन और धान्य की देवी लक्ष्मी जी को स्वच्छता अतिप्रिय है। धन के नौ प्रकार बताए गए हैं। प्रकृति, पर्यावरण, गोधन, धातु, तन, मन, आरोग्यता, सुख, शांति समृद्धि भी धन कहे गए हैं।.

लंबी उम्र के लिए नरक चतुर्दशी के दिन घर के बाहर यम का दीपक जलाने की परंपरा है। नरक चतुर्दशी की रात जब घर के सभी सदस्य आ जाते हैं तो गृह स्वामी यम के नाम का दीपक जलाता है। 

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