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केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताई राफेल विमान की कीमत, कहा- खरीद में नियमों का पालन किया

नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने सीलबंद लिफाफे में राफेल विमान की कीमत की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी है. 31 अक्टूबर को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने ये जानकारी मांगी थी. मामले की अगली सुनवाई बुधवार 14 नवंबर को होनी है.


राफेल मामले पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को होने वाली सुनवाई से पहले सरकार ने याचिकाकर्ताओं को विमान सौदे की निर्णय प्रक्रिया की जानकारी दी है. विमान के भारत में निर्माण के लिए फ्रेंच कंपनी की तरफ से भारतीय पार्टनर कंपनी चुने जाने की प्रक्रिया के बारे में भी सरकार ने याचिकाकर्ताओं को बताया है. ये जानकारी मुहैया करवाने का आदेश कोर्ट ने सरकार को दिया था.


याचिकाकर्ताओं को सौंपी गई करीब 14 पन्ने की जानकारी में सरकार ने कहा है कि उसने रक्षा खरीद पर पिछली सरकार की तरफ से 2013 में तय प्रक्रिया का पूरी तरह पालन किया है.

 

सरकार ने बताया है :-


कारगिल युद्ध के बाद 2002 में नया डिफेंस प्रोक्योरमेंट प्रोसीजर बना. इसका मकसद रक्षा खरीद में तेज़ी लाना था.

2002 से 2013 तक प्रक्रिया में कई बार ज़रूरी बदलाव हुए. बड़े सौदों में विदेशी सरकार से समझौते यानी इंटर गवर्नमेंट एग्रीमेंट (IGA) का प्रावधान किया गया.

देश मे रक्षा निर्माण को बढ़ावा देने के लिये भारतीय कंपनी को विदेशी कंपनी का ऑफसेट पार्टनर बनाने का भी नियम जोड़ा गया. ये कंपनी सरकारी भी हो सकती है और निजी भी.

भारत सरकार पहले भी रूस और अमेरिका की सरकार के साथ रक्षा समझौता कर चुकी है.

2011 में भारत और फ्रांस के बीच राफेल खरीद पर बात शुरू हुई. 2012 में 126 विमानों का समझौता हुआ. फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन को 18 विमान पूरी तरह तैयार कर देने थे. 108 विमानों का निर्माण भारत में होना था.

ऑफसेट पार्टनर के तौर पर चुनी गई सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड दसॉल्ट की शर्तों के मुताबिक काम करने में सक्षम नहीं थी. वो जितने लोगों और समय का इस्तेमाल करना चाहती थी, वो दसॉल्ट से 2.7 गुना ज्यादा था.

इस वजह से 3 साल तक मामला लटका रहा. इस बीच भारत के प्रतिद्वंद्वी पड़ोसी देशों ने 400 से ज़्यादा आधुनिक विमान अपने बेड़े में शामिल कर लिए
आखिरकार 2015 में समझौते को रद्द करना पड़ा. भारत अपनी रक्षा जरूरत के हिसाब से काफी पिछड़ता चला जा रहा था. इसलिए, प्रक्रिया को दोबारा शुरू किया गया. अप्रैल 2015 में भारत और फ्रांस की सरकार ने 36 राफेल की खरीद के लिए समझौता किया.

निर्णय प्रक्रिया में केंद्रीय रक्षा मंत्री की अध्यक्षता वाली डिफेंस एक्विजिशन काउंसिल (DAC) से लेकर तमाम तकनीकी और वित्तीय कमिटियों की भूमिका रही.

सरकारों के बीच हुए समझौते के बाद विशेषज्ञ कमिटियों ने फ्रांस के अधिकारियों और कंपनी के साथ 74 बैठकें कीं. 2016 में खरीद को पूरी मंजूरी मिली. कैबिनेट कमिटी ने सिक्योरिटी (CCS) की मंजूरी ली गई.

नया समझौता पिछले समझौते से बेहतर है. उसमें 18 तैयार विमान मिल रहे थे. इसमें 36 मिल रहे हैं.

ऑफसेट पार्टनर के चुनाव में भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं है. दसॉल्ट ने अपनी तरफ से पार्टनर चुना है. सरकार का काम ये देखना है कि चुनी गई कंपनी 2013 के नियमों में ऑफसेट पार्टनर के लिए रखी गयी शर्तों को पूरा करती है या नहीं.

भारतीय कंपनी और फ्रेंच कंपनी के बीच जो समझौता हुआ है, उस पर अमल अक्टूबर 2019 से शुरू होगा. अभी भी दोनों कंपनियों के बीच कुछ ज़रूरी प्रक्रियाओं का पूरा होना बाकी है. सरकार को दसॉल्ट से इस बारे में पूरी जानकारी नहीं मिली है.


कोर्ट को बताई कीमत
31 अक्टूबर को कोर्ट ने आदेश लिखवाते वक्त दर्ज किया था कि हर याचिका में विमान की कीमत को लेकर संदेह जताया गया है. इसलिए सरकार इसकी जानकारी सीलबंद लिफाफे में दे. तब एटॉर्नी जनरल ने ये जानकारी देने में असमर्थता जताई थी. लेकिन, अब सरकार ने सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को विमानों की कीमत की जानकारी दे दी है. एक सरकारी वकील ने एबीपी न्यूज़ को बताया कि सरकार का मानना है कि मामले को देख रहे जजों को इस तरह की जानकारी देने में कोई हर्ज़ नहीं. ये जानकारी सिर्फ इसलिए दी गयी है ताकि जज इस ज़रूरी पहलू को लेकर संतुष्ट हो सकें.

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