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आख़िर किस वजह से शनि और सूर्य में नहीं बनती?

हिंदू धर्म के ग्रथों आदि में हर देवी-देवता से संबंधित कई कथाएं पढ़ने को मिलती है। इतना ही नहीं इसमें देवी-देवता के साथ-साथ समस्त ग्रहों के गुरू यानि देवों के बारे में बहुत सी कथाएं वर्णित है, जिसके द्वारा हम उनके बारे में जान सकते हैं। तो आइए आज बात करते हैं कि शनि देव की। हममें से बहुत से लोगों ने इनके बारे में काफी कहानियां सुनी हैं, लेकिन आज हम आपके लिए एक एेसा विषय लेकर आएं हैं जिसके बारे में शायद ही किसी को पता होगा। à¤¹à¤¿à¤‚दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार शनि देव बहुत ही क्रूर ग्रह देवता माना गया है। हर कोई इनकी नज़र से बचना चाहता है क्योंकि इनकी दृष्टि को भी विनाशकारी कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र में शनि देव का उल्लेख दंडाधिकारी के रूप में मिलता है। अर्थात जो कोई भी अन्याय या किसी भी प्रकार का गलत काम करता है, शनि देव उसे सज़ा ज़रूर देते हैं। à¤‡à¤¸ संबंध को लेकर एक कथा प्रचलित है। इसके अनुसार शनि देव का जन्म महर्षि कश्यप के अभिभावकत्व में हुआ था। शनि के जन्म के लिए कश्यप यज्ञ कराया गया था। सूर्य देव की पत्नी छाया शिव जी की पूजा करती थीं। एक बार छाया ने भूखे-प्यासे रहकर शिव जी की कठोर तपस्या की, उस समय शनि उनके गर्भ में ही थे। एेसा कहा जाता है कि भूख, प्यास, धूप आदि को सहने की वजह से गर्भ में ही शनि का रंग काला पड़ गया और जन्म के समय भी शनि का रंग काला ही रहा।सूर्य देव ने जब अपने बेटे का काला रंग देखा तो उन्होंने अपनी पत्नी छाया पर संदेह किया। उन्होंने छाया को अपमानित करते हुए कहा कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता। यह सुनकर शनि को बहुत ही क्रोध आया। शनि ने ऐसी क्रोध भरी नज़रों से सूर्य को देखा तो उनका रंग भी काला पड़ गया। साथ ही सूर्य देव के घोड़ों की चाल रुक गई। कहते हैं इसके बाद शिव जी ने सूर्य देव को उनकी गलती का एहसास दिलाया था। जिसके बाद सूर्य देव ने अपने पुत्र शनि से क्षमा याचना की तब उन्हें उनका असली रूप वापिस मिल सका। माना जाता है कि यही कारण है जिस वजह से शनि और सूर्य देव के बीच का रिश्ता आज तक खराब चला आ रहा है।

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