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जिसके लिए बागी बने थे पानसिंह तोमर, अब वही जमीन बेटों में दुश्मनी की वजह

इतिहास घुमावदार भी है. कई बार वह खुद को दोहराकर वहीं पहुंच जाता है, जो उसकी शुरुआत थी. अब पानसिंह तोमर को ही ले लीजिए. चंबल के एक मामूली गांव से निकला फौजी एथलीट, जिसे हालात ने बागी बना दिया था. जिस वजह से पानसिंह ने अपने कुनबे के साथ चंबल के बीहड़ की राह पकड़ी, अब वही जमीन उनके अपने बच्चों के बीच दुश्मनी की वजह है. बंदूक उठाते वक्त बागी पानसिंह ने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी.

सालों पहले 13 घंटे तक चले लंबे एनकाउंटर में पानसिंह की गैंग के कई लोग मारे गए थे. इस मुठभेड़ में बलवंत के पिता की भी मौत हो गई थी. किसी तरह बच निकलने वाले बलवंत पानसिंह के बाद करीब ढाई साल तक चंबल के बीहड़ों में अपनी गैंग चलाते रहे. बाद में उन्होंने समर्पण कर दिया और अब एक साधारण जिंदगी गुजारते हैं. एनकाउंटर के वक्त पानसिंह के साथ ही रहे उनके भतीजे और बीहड़ के पूर्व डकैत बलवंत सिंह तोमर ने बताया, "अब पानसिंह के बेटे के साथ हमारे संबंध अच्छे नहीं हैं."

इटावा में दूसरे "के. आसिफ चंबल फिल्म फेस्टिवल" में तिग्मांशु धूलिया की फिल्म "पानसिंह तोमर" भी दिखाई गई. इसी दौरान बलवंत ने आज तक से खास बातचीत में कहा, "फिल्म में पानसिंह का जो बेटा दिखाया गया है वो अब झांसी के पास बबीना में रहता है. उनका गांव में आना जाना है पर वैसा नहीं. अब गांव आकर करेंगे भी क्या. गांव में नौ नौ दस दस कत्ल हुए."

बलवंत का दावा है कि तिग्मांशु की फिल्म की कहानी के तमाम इनपुट उन्होंने ही दिए. 'चंबल में बागी रहते हैं' जैसे फिल्म के कई मशहूर संवादों के पीछे भी वह थे.

फिल्म बनाने के लिए तिग्मांशु या उनकी टीम ने पानसिंह के बेटे से भी संपर्क किया था? बलवंत ने कहा, "अब ये जानकारी हमको नहीं है. परिवार है, लेकिन कई चीजों में विवाद हो जाता है तो हमारे बीच जमीन संबंधी कुछ विवाद हैं."

"जमीन बंटवारे को लेकर विवाद अभी चल ही रहा है. इसलिए आपस में मेल जोल नहीं है. हालांकि उनका गांव में आना जाना है." बलवंत खुद भी अपने गांव नहीं रहते. बातचीत में उनके पुराने जख्म भी हरे हो गए और उन्होंने तिग्मांशु पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया.

 

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