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सीरिया में शर्मसार हो रही मानवता, बच्‍चों के हालात देख, कांप जाएगी रूह..!

एक अख़बार में युनिसेफ की एक रिपोर्ट पढ़ रही थी। इस रिपोर्ट में लिखे आंकड़ों पर यक़ीन नहीं हो रहा था। एक बार को लगा कि जैसे मैं ईकाई-दहाई के जोड़ को ठीक से पढ़ नहीं पा रही हूं। इस रिपोर्ट के मुताबिक सीरिया के क़रीब 5 लाख बच्चे जंग-ए-मैदान में अपना बचपन गुज़ारने को मजबूर हैं। एक तरफ आतंकी संगठन IS और दूसरी तरफ गृहयुद्ध। इसमें भी इस दूसरी वजह (गृहयुद्ध) ने पहली वजह (IS) को फलने-फूलने का मौक़ा दिया।

पिछले कुछ दिनों से सीरिया का शहर अलेप्पो ज़्यादा ही चर्चा में है। शहर पर कब्ज़े की निर्णायक लड़ाई में किसी दिन बच्चों के अस्पताल पर तो किसी दिन स्कूल पर हमले की तस्वीर सामने आ रही थी। टीवी स्क्रीन्स पर गोला, बारूद, आग, धूल के गुबार हक़ीकत के कम और हॉलीवुड फ़िल्मों के सीन्स के ज़्यादा क़रीब लग रहे हैं। वैसे अब तो ख़ून से सने बच्चों की इतनी तस्वीरें सामने आ चुकी हैं कि दुनिया ने भी रियेक्ट करना छोड़ दिया है, हालांकि वर्चुअल वर्ल्ड (सोशल मीडिया) में संवेदना और दिलासों की कोई कमी नहीं।

दरअसल, वहां हालात हर दिन बद से बदहाल होते दिख रहे हैं। ख़ौफज़दा ये बच्चे घर से बाहर निकलने में डर रहे हैं, ऐसे में कुछ जगहों पर ज़मीन के नीचे बच्चों के खेलने और पढ़ने के लिए टनलनुमा तहखानों को बनाया गया है। बशर-अल-असद और विद्रोहियों के बीच जंग ने बच्चों से खुला आसमान छिन कर उनके सपनों को ज़मीन में दफ़न कर दिया। बच्चों के इस हाल ने हैमलीन (जर्मनी) के बांसुरीवाले की वो कहानी याद दिला दी,  जिसमें शहर के मेयर ने खूंखार चूहों से शहर को आज़ाद कराने के लिए बांसुरीवाले से डील की और बाद में धोखा करने की कोशिश की, जिसका बदला बांसुरीवाले ने अपनी तान पर बच्चों को ही मदहोश कर शहर के बाहर गुफ़ा में क़ैद कर दिया।

हालांकि हर कहानी की तरह अंत सुखद हुआ और बच्चे वापस अपने शहर में लौट आए। हो सकता है इस कहानी और सीरिया के हालात में कोई समानता न हो,  पर जाने क्यों मुझे मेयर में बशर-अल-असद, बांसुरीवाले में रूस, अमेरिका के नेतृत्व वाली सेना, खूंखार चूहों में IS और बच्चों में सीरिया के मासूमों की झलक नज़र आ रही है। हो सकता है इनके बीच कोई डील न हुई हो, लेकिन बशर-अल-असद की हसद (ईर्ष्‍या) इतनी बढ़ गई कि उसे अपने मुल्क़ के मासूम दिखाई नहीं दे रहे।

क्या उसे आयलन क़ुर्दी की मौत नहीं झकझोरती, न ही उसे ओमरान दक्नीश का दर्द दिखाई देता, न ही उसे सात साल की मासूम बाना आबेद का 'आख़िरी संदेश' मिला होगा। हवाई हमलों में धूल से नहाई इस बच्ची की तस्वीर देख भले ही दुनिया की आंखे डबडबा गईं हो, पर सियासत जिनका मज़हब हो उनके लिए मासूमों के दर्द क्या और दास्तां क्या? दुनिया से कट चुके सीरिया के इस हिस्से से बाना पल-पल का दर्द बयां कर रही है जिसपर दुनिया भर की नज़र जा रही है, लेकिन जिसकी जानी चाहिए वही बेख़बर है।

कुछ दिन पहले बाना को जेके रॉलिंग्स ने हैरी पॉटर की ई-किताब भेजी थी। बाना ने प्यारभरा शुक्रिया ट्विटर पर शेयर किया। मासूम मुस्कुराट वाली बाना ताज़ा हमले में बाल-बाल बची, लेकिन अब भी दहशतज़दा है। जिन हालात में सीरिया के बच्चे रह रहे हैं, उन्हें देखकर तो यही दिल कर रहा है कि क़ाश कोई बांसुरीवाल आता और अमन-चैन की ऐसी तान छेड़ता, जिसे सुनकर यहां का दर्द, ग़म उसके पीछे हो लेते और इन मासूमों को एक बार फिर से अपना महफूज़ आसमां और बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल(बच्चों के खेलने का मैदान)मिल जाता।

  

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