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4337: बीजेपी को सिर्फ इतने वोट चाहिए थे लगातार चौथी बार MP में सत्ता में आने के लिए

4,337  वो आंकड़ा है जिसने बीजेपी को गहरा आघात दिया है. मध्य प्रदेश में सीट वार जीत के अंतर का विश्लेषण किया जाए तो सामने आता है कि सिर्फ 4,337 वोट बीजेपी को और मिल जाते तो शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मध्य प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब हो जाते.  

चुनाव आयोग की ओर से उपलब्ध कराए गए मतगणना के आखिरी आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश की 10 सीटों पर फोटो-फिनिश की स्थिति रही, जहां जीत का अंतर 1,000 वोट से भी कम रहा.

बीजेपी को इन 10 सीटों पर सिर्फ 3 पर ही कामयाबी मिली. बाकी 7 सीटें कांग्रेस के खाते में गईं. बीजेपी ने जो सीटें 1000 वोट से कम अंतर से कांग्रेस के सामने खोईं, उन सभी सीटों पर NOTA को गए वोट बीजेपी और कांग्रेस के बीच वोटों के अंतर से ज़्यादा थे.  

बीजेपी को मुंह पर आघात लगाने वाली ये गणना इस प्रकार है- अगर सिर्फ 4,337 अतिरिक्त वोट बीजेपी को मिल जाते तो पार्टी ये 7 सीट जीत जाती. फिर बीजेपी की कुल सीटों का आकंड़ा 108 से बढ़ कर 115 हो जाता. और कांग्रेस की सीटें 114 से घटकर 107 हो जातीं.

बहुत कम अंतर वाली कुल सीटों में से कांग्रेस का 70% सीटें जीतना साबित करता है कि हिन्दी बेल्ट की इस निर्णायक जंग में किस्मत राहुल गांधी की पार्टी पर मेहरबान थी.

जीत-हार के 1000 वोट से कम अंतर वाली सीटों में से ग्वालियर साउथ की सीट पर वोटों का अंतर सबसे कम रहा. यहां कांग्रेस के प्रवीण पाठक ने बीजेपी के नारायण सिंह कुशवाह को महज़ 121 वोट से हराया.

मालवा क्षेत्र के मंदसौर जिले की सुवासरा सीट पर कांग्रेस और बीजेपी उम्मीदवारों के बीच वोटों का अंतर सिर्फ 350 का रहा.  

जबलपुर नॉर्थ, बियाओरा, दमोह, राजनगर, राजपुर (S.T.सुरक्षित) सीटों पर कांग्रेस की बीजेपी पर लीड 500 से 1000 वोट के बीच रही. जब जीत-हार का अंतर इतना कम हो तो ये भाग्य ही है जो किसी के दिन संवार देता है और किसी के बिगाड़ देता है. लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त को तो स्वीकार करना ही होता है.

दूसरी तरफ अगर 1863 वोटर जिन्होंने कांग्रेस को वोट किया, अगर उन्होंने किसी दूसरी पार्टी को वोट दिया होता तो कांग्रेस की सीटों के आंकड़े में 3 सीटों की कमी आ सकती थी.

हार-जीत के इस कम अंतर को राज्य में कुल पड़े वोटों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. 28 नवंबर को मतदान के दिन मध्य प्रदेश में कुल 3 करोड़ 77 लाख वोटरों ने वोट दिया. वोट प्रतिशत की बात की जाए तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर दिखाई दी.

बीजेपी को 41% और कांग्रेस को 40.9% वोट मिले. हक़ीक़त में बीजेपी को राज्य में कांग्रेस से 47,824 वोट मिले.

हार-जीत के 1,000 वोट से कम अंतर वाली 10 सीटों को लेकर ही खास रहा हो, ऐसा नहीं. मध्य प्रदेश में ऐसी 18 सीटें रहीं जहां जीत का अंतर 2,000 वोट से कम रहा. इसी तरह 30 सीटों पर जीत का अंतर 3,000 से कम रहा. वहीं 45 सीटें ऐसी रहीं जहां जीत का अंतर 5,000 से कम रहा.

जीत का इतना कम अंतर नगर पालिका और पंचायत के चुनावों में अक्सर देखा जाता रहा है लेकिन मध्य प्रदेश जैसे राज्य के विधानसभा चुनाव के लिए ये सामान्य नहीं है वो भी जहां विधानसभा सीटों का क्षेत्र बड़ा है और जहां वोटर भी ज्यादा हैं. इस अंतर का विश्लेषण किया जाए तो मध्य प्रदेश की कुल सीटों में से 20% सीटों पर बहुत ही कांटे का मुकाबला हुआ.

 à¤¬à¥€à¤œà¥‡à¤ªà¥€ नेतृत्व को विश्वास था कि मजबूत सांगठनिक ढांचा पार्टी को कांग्रेस से कांटे की लड़ाई में पार पाने में मदद करेगा.
गुजरात में पार्टी इस संदर्भ में कड़े मुकाबले वाली सीटों को अपने पक्ष में मोड़ने में कामयाब रही थी. उसी का नतीजा था कि गुजरात में पार्टी ऐतिहासिक छठे कार्यकाल के लिए सत्ता में वापस आ सकी.

लेकिन ये मध्य प्रदेश में नहीं हुआ. जहां जीत का अंतर 1,000 वोट से कम वाली सीटों में से कांग्रेस 70% सीटें जीतने में कामयाब रही.

वो पार्टी जो वोटरों को पोलिंग बूथ तक लाने में खुद की महारत मानती थी, उसी बीजेपी को मध्य प्रदेश में महज 4,337 वोटों से बाजी गंवानी पड़ी. ये कांटा बीजेपी के शीर्ष नेताओं के दिलों में लंबे समय तक चुभता रहेगा.

 

 

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