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पंडित राम प्रसाद बिस्मिल स्थली को 10 साल बाद मिली उम्रकैद से मुक्ति

अमर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की शहीद स्थली को उम्र कैद से शुक्रवार को मुक्ति मिल गई। शहीद स्थली तक के रास्ते में चुनवाई गई दीवार को शुक्रवार से जेल प्रशासन ने तोड़वाना शुरू कर दिया है। इसी सप्ताह से अब बिना जेल के अंदर गए शहीद स्थली पर आम लोग दर्शन कर सकेंगे।

काकोरी कांड के इस महानायक को करीब दस माह पहले उम्रकैद दे दी गई थी। जेल के मुख्य गेट से अंदर जाने के बाद आम जन उनका दर्शन कर पाते। आप के अखबार हिन्दुस्तान ने इसे प्रमुखता से उठाया था। जिसके बाद एडीजी जेल ने गोरखपुर जेल का दौरा कर निरीक्षण करने के बाद आमजन के दर्शनार्थ खोलने का आश्वासन दिया था। बीते नवम्बर महीने में प्रभारी डीआईजी जेल ने भी निरीक्षण कर इसका प्रस्ताव शासन को भेजा था। जिसके बाद पं. बिस्मिल को मुक्त करने की योजना पर काम शुरू हो गया था और इसी क्रम में शुक्रवार से शहीद स्थली पर जाने के लिए दीवार तोड़कर गेट बनवाने का काम जेल प्रशासन ने शुरू कर दिया है। जेलर प्रेम सागर शुक्ला ने कहा कि शुक्रवार से दीवार तोड़ने का काम शुरू हो गया है। एक दो दिन में गेट का निर्माण करा लिया जाएगा।

इस तरह से होगा काम 
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का शहीद स्थल, शहीद स्मारक, शहीद उद्यान और बिस्मिल कोठरी को आमजन के लिए खोला जाएगा। इसके लिए जेल की मुख्य दीवार पर एक ग्रिल गेट और शटर गेट लगवाई जाएगी। एंट्री के बाद आगे एल सेव में बिस्मिल कोठरी तक जाने का रास्ता बनेगा। यह रास्ता भी पूरी तरह से कवर होगा। इसके अलावा पंडित बिस्मिल के व्यक्तित्व, कृतित्व और गौरवगाथा के प्रचार-प्रसार के लिए दीवारों पर अंकन कराया जाएगा। साथ ही इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले के माध्यम से भी शहीद के बारे में आमजन जानकारी ले सकेंगे। सुरक्षा के लिए गेट पर ही आमने और सामने कवर के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे। इसका कंटोल रूम वरिष्ठ जेल अधीक्षक के चैंम्बर में होगा। इसके अलावा भी सौंदर्यीकरण के लिए लाइटें और अन्य चीजें यहां लगाई जाएंगी। 

 à¤¦à¤¸ माह पूर्व कैद कर दी गयी थी शहीद स्थली 
 à¤¤à¤•à¤°à¥€à¤¬à¤¨ दस माह पूर्व पंडित राम प्रसाद बिस्मिल शहीद स्थली पर लगे गेट को बंद कराकर वहां सीमेंटेड दीवार चलवा दी गई थी। समाजसेवी संगठनों और आमजन ने इसे खोलने की जिला प्रशासन से गुहार लगवाई। एडीजी जेल चंद्र प्रकाश ने मौके पर जाकर जांच की और अपनी रिपोर्ट शासन को भेज दी। जिसके बाद से इस काम में तेजी आ गई।

यहीं दी गई थी काकोरी कांड के महानायक को फांसी 
19 दिसंबर 1927 को काकोरी कांड के महानायक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल की कोठरी में फांसी के फंदे पर लटकाया गया था। " वो फांसीघर आज भी मौजूद है। लकड़ी का फ्रेम और लीवर भी सुरक्षित है।

काकोरी में लूट लिया था खजाना
शाहजहांपुर के रहने वाले मुरलीधर दूबे के बेटे पंडित राम प्रसाद बिस्मिल 9 अगस्त 1925 को चंद्रशेखर आजाद सहित अपने नौ साथियों के साथ 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर पर शाहजहांपुर में सवार हुए। काकोरी में चेन पुलिंग की और क्रांतिकारियों ने खजाने को लूट लिया। क्रांतिकारियों को अंग्रेजों से लड़ने के लिए हथियारों की जरूरत थी। उनके पास इतना धन नहीं था कि वे हथियार खरीद सकें। इसलिए ब्रिटिश सरकार की तिजोरी लूट ली। घटनास्थल से मिली एक चादर के आधार पर घटना में शामिल क्रांतिकारियों की शिनाख्त हो गई।

राजद्रोह के आरोप में सुनाई फांसी
इनमें से चार को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ राजद्रोह के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल, असफाकउल्लाह खान को फैजाबाद, रोशन सिंह को नैनी सेंट्रल जेल और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को गोंडा जेल में एक दिन और एक ही समय पर फांसी देने का फैसला किया गया। बाद में इसमें बदलाव किया गया और असफाकउल्लाह के साथ ही राजेंद्र प्रसाद लाहिड़ी को दो दिन पहले 17 दिसंबर को ही फांसी दे दी गई।

कोठरी नंबर सात में रहे थे बिस्मिल
पं. राम प्रसाद बिस्मिल को जिला कारागार लखनऊ से 10 अगस्त 1927 को गोरखपुर जेल लाया गया था। उन्हें कोठरी संख्या सात में रखा गया था। उस समय इसे 'तन्हाई बैरक' कहा जाता था। बिस्मिल ने चार महीने 10 दिन तक इस कोठरी को साधना केंद्र के रूप में इस्तेमाल किया। इस कोठरी को अब बिस्मिल कक्ष और शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल बैरक के नाम से संरक्षित किया गया है।

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