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कांग्रेस सरकार के मंत्रिमंडल में 29 साल बाद इंदौर की वापसी

 à¤•à¤¾à¤‚ग्रेस के लिए प्रदेश की सत्ता में वनवास भले ही 15 वर्ष में खत्म हुआ लेकिन कांग्रेस सरकार के मंत्रिमंडल में इंदौर के लिए वनवास की अवधि करीब तीन दशक लंबी रही। 29 साल बाद कांग्रेस सरकार के मंत्रिमंडल में इंदौर के विधायकों को जगह मिल सकी है। इससे पहले ललित जैन कांग्रेस की सरकार में मंत्री बनने वाले इंदौर से अंतिम विधायक थे। 1989 में कांग्रेस की सरकार में जैन शिक्षा मंत्री बने थे। पहली बार ऐसा हो रहा जब इंदौर के दो विधायक कैबिनेट मंत्री बन रहे हैं।

ललित जैन के बाद भी शहर से कांग्रेस के विधायक के तौर पर रामलाल यादव, सत्यनारायण पटेल, अश्विन जोशी, तुलसी सिलावट, अंतरसिंह दरबार आदि कांग्रेस विधायक चुने गए। दिग्विजयसिंह के 10 वर्ष के शासनकाल में इंदौर के किसी भी विधायक को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। सिंह की सत्ता में इंदौर के रहने वाले सज्जनसिंह वर्मा जरूर नगरीय प्रशासन मंत्री रहे लेकिन कैबिनेट में उन्हें जगह सोनकच्छ के विधायक के रूप में दी गई थी। सज्जन इंदौर के होते हुए भी देवास जिले के कोटे से मंत्री बने थे। ताजा चुनावों में कांग्रेस ने प्रचार से लेकर चुनावी रणनीति में मालवा निमाड़ पर फोकस किया तो मंत्रिमंडल में भी क्षेत्र को वरीयता मिलती नजर आई।

 à¤‡à¤¸ बार देवास के कोटे से सज्जन वर्मा फिर मंत्री तो हैं ही, पहली बार इंदौर से एक साथ दो विधायकों तुलसी सिलावट को सिर्फ मंत्री नहीं बल्कि कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। जिले में कुल चार कांग्रेसी विधायक हैं, इनमें से दो मंत्री बन गए हैं। शेष दो पहली बार ही विधायक बने हैं लिहाजा पहली बार सदन में पहुंचे इन विधायकों के मंत्रिमंडल में जाने की उम्मीद भी नहीं थी। सिलावट को वरिष्ठता के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया की पसंद की वजह से मंत्रिमंडल में जाने का मौका मिला।

पटवारी के मंत्री पद के पीछे सीधे दिल्ली की भूमिका मानी जा रही है। पिछला चुनाव जीतने के बाद से पटवारी ने राहुल गांधी की पसंद बनकर प्रदेश की राजनीति में जड़ें गहरी कर ली थीं। इसी का नतीजा था कि चुनाव से पहले कमलनाथ की प्रदेश अध्यक्ष के तौर ताजपोशी के साथ पटवारी की कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी हो गई थी।

 

 

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