परंपरा से निकला है ये गà¥à¤°à¤‚थ: रमाशंकर सिंह
आईटीà¤à¤® विशà¥à¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ आयोजित 28 वे मीटिंग ऑफ माइंड के अंतरà¥à¤—त आयोजित लोकारà¥à¤ªà¤£ व विमरà¥à¤¶ कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® में आईटीà¤à¤® यूनिवरà¥à¤¸à¤¿à¤Ÿà¥€ के फाउंडर चांसलर रमाशंकर सिंह ने परिचयातà¥à¤®à¤• उदà¥à¤¬à¥‹à¤§à¤¨ दिया। किसान किसानी व देहात के बारे में जो 900 पनà¥à¤¨à¥‹à¤‚ का बड़ा शोध गà¥à¤°à¤‚थ ’ठरूरल मेनीफेसà¥à¤Ÿà¥‹’ के रूप में लिखा है, वो à¤à¤• परंपरा से निकला है, वो परंपरा आज से 102 साल पहले उस इंसान ने सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ की, जो अपने राजनैतिक गà¥à¤°à¥‚ के कहने पर राजनीति करने से पहले हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ को देखने निकला। उसका नाम मोहनदास गांधी था। कलकतà¥à¤¤à¤¾ में बिहार के चंपारण का à¤à¤• किसान जबरà¥à¤¦à¤¸à¥à¤¤à¥€ गांधीजी को पकडक़र ले गया कि आप चंपारण में देखिठकिसानों की कà¥à¤¯à¤¾ हालत है और वो अकेले बिहार आ गà¤à¥¤ उस समय के किसानों की अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ की कà¥à¤¯à¤¾ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ थी वह इलाका नील की खेती का इलाका था। अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ कारखानों व कोठियों के मालिक थे। जबरà¥à¤¦à¤¸à¥à¤¤à¥€ किसानों को मजबूर किया जाता था, अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ सरकार की मरà¥à¤œà¥€ में टैकà¥à¤¸ à¤à¥€ थे कà¥à¤ या तालाब का इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² में पयन ककà¥à¤·, अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ को लेटकर सलामी नहीं की तो सलामी टैकà¥à¤¸, किसान या रैयत अपना हल नहीं दे तो बेठमाफी टैकà¥à¤¸, पिता मरे तो बपही, बेटा के नाम जमीन होने पर पà¥à¤¤à¤¹à¥€, लडक़ी की शादी के मंडप लगाने पर टैकà¥à¤¸ था मंडपचà¥à¤› जैसे टैकà¥à¤¸ लगाठजाते थे। अब उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ के वंशज ने ये किताब निकाली है जो बहà¥à¤¤ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ है, इसमें वाटर à¤à¤¬à¤¿à¤²à¤¿à¤Ÿà¥€, à¤à¤—à¥à¤°à¥€à¤•à¤²à¥à¤šà¤° मारà¥à¤•à¥‡à¤Ÿà¤¿à¤‚ग, इंकम, हैंडीकà¥à¤°à¤¾à¤«à¥à¤Ÿà¥à¤¸, रूरल केडिट आदि विषय à¤à¥€ समेट हैं। आप सà¤à¥€ इसे पढक़र दोबारा रिसरà¥à¤š करें और नठसमाधान निकालें।