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पीएम मोदी की इस बात के प्रशंसक हैं सिंधिया

यूपी में सपा-बसपा के साथ गठबंधन न करके और गठबंधन की मजबूत स्थिति वाली सीटों पर प्रत्याशी उतारकर क्या कांग्रेस 'सेकुलर' वोट काट रही है?

लोकसभा चुनाव में मुकाबले कुछ ज्यादा ही जटिल होते हैं और यूपी में मैंने तीन किस्म के मुकाबले देखे हैं. एक, जहां हमारा उम्मीदवार बहुत मजबूत है, वह जीत सकता है और गठबंधन का उम्मीदवार आखिर में भाजपा को मदद पहुंचा सकता है. दो, जहां हमारे उम्मीदवार मजूबत हैं, उन्हें खासे वोट मिलेंगे, और जहां हम भविष्य का आधार तैयार करना चाहते हैं. तीसरे, जहां हमारी मजूबत मौजूदगी नहीं है. इन सीटों पर नतीजे अलग-अलग हो सकते हैं—आप जो कह रहे हैं वह भी हो सकता है और उसका उलटा भी हो सकता है.

वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रियंका गांधी के न खड़े होने के बारे में आप क्या कहेंगे?

मुझे नहीं लगता, इस पर किसी को कोई राय रखनी चाहिए. यह उनका निजी फैसला था, जो पार्टी से राय-मशविरे के साथ लिया गया था. हमें उसका सम्मान करना चाहिए.

इस चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा कौन-सा है—मोदी, राष्ट्रवाद या कुछ और?

सबसे बड़ा मुद्दा है किसान, नौकरियां और जीवन की सुरक्षा, जीवनमूल्य और आजादी. भाजपा राष्ट्रीय सुरक्षा का झूठा का परदा इसलिए खड़ा कर रही है क्योंकि जिन मुद्दों का मैंने जिक्र किया, उनके बारे में कहने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं है.

अपने राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी मोदी की किस एक खूबी के आप प्रशंसक हैं?

लगातार काम करने की उनकी क्षमता.

दूसरी पार्टियों में आपके दोस्त कौन-कौन हैं?

मैं नहीं समझता कि दोस्त राजनैतिक विचारधारा के आधार पर बनाए जाते हैं, दोस्ती तो विचारों का मिलन है. जहां तक प्रधानमंत्री की बात है, तो उनकी पार्टी के बाहर दोस्तों को तो भूल ही जाइए, भाजपा के भीतर हालत देखिए—आडवाणी जी, जोशी जी, सुमित्रा जी आज कहां हैं? जिन लोगों ने भाजपा को खड़ा किया, उन्हें या तो किनारे कर दिया गया या छोड़ दिया गया.

दिल्ली में अगर एनडीए की सरकार लौटती है, तो क्या मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को खतरा है?

भाजपा लोकतंत्र की हत्या करने में माहिर है, पर हिंदुस्तान के लोग भाजपा से कहीं ज्यादा समझदार हैं.

चुनाव से पहले गठजोड़ बनाने में कांग्रेस ने सुस्ती दिखाई. जरूरत पड़ी तो कांग्रेस दूसरी पार्टियों को जोडऩे की स्थिति में है?

राजनीति में दरवाजे कभी बंद नहीं होते. मगर मैं आपकी बात से इत्तफाक नहीं रखता, कुछ राज्यों में हमारी सहयोगी पार्टियां हैं और कुछ अन्य राज्यों में हम गठबंधन नहीं बना सके. मैं निजी तौर पर मानता हूं कि मूल्यों के लिहाज से कोई साझा लक्ष्य होना चाहिए और तभी सीटों की साझेदारी पर बात की जा सकती है. पहली बार किसी को नुक्सान उठाना पड़ सकता है, दोनों पार्टियां बराबर से खुश नहीं हो सकतीं.

आपकी पत्नी प्रियदर्शिनी राजे इस चुनाव में बेहद सक्रिय हैं. कांग्रेस का महासचिव होने के नाते भविष्य में उनकी उम्मीदवारी को आप कैसे देखते हैं? उनकी ताकत क्या है?

मैं काल्पनिक स्थिति के बारे में बात नहीं कर सकता. यह निजी फैसला होता है. वे अपने ढंग से मजबूत शख्सियत हैं और खुद अपने फैसले लेने में पूरी तरह समर्थ हैं. अगर हम महिलाओं को ताकतवर बनाने के बारे में बात कर रहे हैं, तो कम से कम पति या पत्नी को इस बारे में बात नहीं करनी चाहिए कि उसका जीवनसाथी राजनीति के लिए फिट है या नहीं. कांग्रेस महासचिव होने के नाते मैं ऐसे किसी भी शख्स का स्वागत करूंगा जिसमें जनसेवा की भूख हो. हिंदुस्तान में आज बहुत सारी राजनीति सत्ता को लेकर है. मेरी राजनीति सत्ता की राजनीति नहीं है—मैं 17 साल से राजनीति में हूं और मध्य प्रदेश के चुनाव नतीजों के बाद के महीनों में तो और भी पक्के तौर पर इस बात को दिखा चुका हूं.

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