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आज से शुरू होंगे कामाख्या देवी के दर्शन, इसलिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है यह मंदिर

भारत के 10 प्रमुख रहस्यमयी मंदिरों में से एक और 51 शक्तिपीठों में प्रमुख कामाख्या देवी मंदिर असम राज्य की राजधारी दिसपुर के समीप गुवाहाटी से 8 किलोटिर दूर स्थित है। इस मंदिर से काफी रहस्य जुड़े हैं। यहां हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। मान्यता है कि सती देवी का योनि भाग गिरा था। इस मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है, यहां पर देवी के योनि भाग की ही पूजा की जाती है। मंदिर में साल में एक बार लगने वाला अंबुवाची मेला 22 जून से शुरू हो गया था और उसके साथ ही मंदिर के कपाट भी बंद कर दिए गए थे। अब 26 जून को कपाट फिर खुल जाएंगे और श्रद्धालु फिर से देवी कामाख्या के दर्शन कर सकेंगे। मंदिर के कपाट बंद होने की वजह यह है कि इन दिनों में देवी रजस्वला रहती हैं। इस मेले में दुनिया भर के तांत्रिक तंत्र साधना और सिद्धियों के लिए यहां मौजूद रहते हैं।

मान्यता है कि मेले के दौरान कामाख्या देवी के मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं। तीन दिन तक माता रजस्वला रहती हैं। चौथे दिन देवी के स्नान पूजा के बाद मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और भक्तों को प्रसाद वितरण होता है। भक्तों को प्रसाद स्वरूप गीला कपड़ा मिलता है, जो अंबुबाची वस्त्र कहलाता है। माता जब रजस्वला होती हैं तो मंदिर के अंदर श्वेत वस्त्र बिछाते हैं और मान्यता है कि तीन दिन बाद वह वस्त्र लाल हो जाता है। उसे ही भक्तों को प्रसाद स्वरूप बांटा जाता है। यह प्रसाद जिसे मिलता है, उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

सती के किए थे 51 टुकड़े 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सती ने भगवान शिव से क्रोधित होकर विनाशकारी तांडव नृत्य किया था। सती ने धरती को नष्ट करने की चेतावनी दी थी जिससे क्रोध में आकर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के 51 टुकड़े कर दिए थे। ये टुकड़े पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों में जाकर गिरे। सती का योनि भाग यहां गिरा था। यहां पर मंदिर में चट्टान के बीच बनी आकृति देवी की योनि को दर्शाता है, जिसके पास में एक झरना मौजूद है। योनि भाग से जल धार हल्की बहती रहती है। श्रद्धालुओं की मानें तो इस जल का पान करने से हर प्रकार के रोग एवं बीमारी दूर होती है।जिस तरह से माता वैष्णव देवी के दर्शन के बाद काल भैरव का दर्शन जरूरी है, वैसे ही कामाख्या देवी के दर्शन के बाद उमानंद भैरव का दर्शन अनिवार्य माना जाता है। उमानंद भैरव के दर्शन के बिना कामाख्या देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है।

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