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स्पेस की रेस में दुनिया से होड़ लेने के काबिल बना भारत, 11 साल की जीतोड़ मेहनत

हम होंगे कामयाब...जरूर होंगे कामयाब...चंद्रमा की सतह पर एक दिन जरूर उतरेगा चंद्रयान. ये आवाज और बुलंद इरादे देश के हैं. जिस मिशन को पूरा करने के लिए वैज्ञानिकों ने न जाने कितनी रातें कुर्बान कर दीं वो मिशन भले ही कामयाब नहीं हो सका लेकिन इरादे कमजोर नहीं हुए हैं. देश आज अपने वैज्ञानिकों को सलाम कर रहा है.

धरती से 3 लाख 84 हजार 400 किलोमीटर दूर चमकते चांद को छूने का सपना, चांद की जमीन पर उतरने का मकसद और अपने बलबूते इस मकसद को हासिल करने की लगन. पिछले 11 सालों से इसरो के वैज्ञानिक दिन-रात इसी सपने को हकीकत में बदलने की कोशिश में जुटे थे.

2008 में चंद्रयान-1 की कामयाबी के बाद वैज्ञानिकों ने नई चुनौतियों और नए लक्ष्यों के साथ मिशन चंद्रयान-2 की रूपरेखा तैयार की थी. भारत के पहले चंद्रयान ने चांद की कक्षा तक पहुंचने में कामयाबी हासिल की तो चंद्रयान-2 के लिए रोवर की सॉफ्ट लैंडिंग कराने की तैयारी हुई थी.

वैज्ञानिक परीक्षण के लिए कई उपकरणों के साथ रोवर 14 दिन तक चांद की जमीन पर सैर करने वाला था लेकिन लैंडर और रोवर के साथ चांद के दक्षिणी ध्रुव तक पहंचने की तैयारी का ये सफर इतना आसान भी नहीं था. चंद्रयान-2 के लिए इसरो के वैज्ञानिकों को 2008 में मंजूरी मिल गई थी. तब भारतीय वैज्ञानिकों के पास अपना लैंडर नहीं था.

रूसी अंतरिक्ष एजेंसी से उन्हें लैंडर मिलने वाला था. 2009 में चंद्रयान-2 का डिजाइन तैयार हुआ और जनवरी 2013 में लॉन्चिंग तय की गई. किसी वजह से रूसी अंतरिक्ष एजेंसी लैंडर नहीं दे पाई. अब इसरो के वैज्ञानिकों ने खुद इसकी तैयारी शुरू की. करीब 960 करोड़ की लागत से चंद्रयान-2 का पूरा प्रोजेक्ट तैयार हुआ था.

कुछ और तारीखों के टलने के बाद 16 जुलाई को चंद्रयान-2 लॉन्च का ऐलान किया गया लेकिन तकनीकी खामियों की वजह से कुछ घंटे पहले इस पर रोक लगा दी गई. आखिरकार 22 जुलाई को चंद्रयान-2 अपने सफर पर निकल गया.

पूरी तरह स्वदेशी लॉन्चर

- GSLV MK-III चंद्रयान 2 को लेकर चांद के सफर पर निकल पड़ा.

- वैज्ञानिकों ने परीक्षण के लिए प्रज्ञान रोवर में कई स्वदेशी उपकरण लगाए थे.

22 जुलाई से लेकर 7 सितंबर तक सबकुछ ठीक चलता रहा. 48 दिनों के सफर में चंद्रयान- 2 हर पड़ाव को कामयाबी से पार करता रहा लेकिन चांद के अनजाने और अनछुए हिस्से पर कदम रखने की चुनौती के करीब पहुंच कर वैज्ञानिकों के 11 साल का सपना अचानक ही गुम हो गया.

जिसके एक-एक लम्हे की खबर रखने के लिए वैज्ञानिकों की लंबी चौड़ी टीम लगातार इसरो के कंट्रोल रूम में दिन रात जुटी थी वो लैंडर एक झटके में खो गया. अब वैज्ञानिकों को ऑर्बिटर की तस्वीरों का इंतजार है. भले ही चंद्रयान-2 चांद की जमीन पर सॉफ्ट लैंडिंग नहीं कर सका लेकिन इतने बड़े प्रोजेक्ट को अपने ही देश में और अपनी ही तकनीक से तैयार कर चांद तक पहंचाने की क्षमता ने साबित कर दिया कि भारत अंतरिक्ष की दौड़ में दुनिया से होड़ लेने के काबिल बन चुका है.

 

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