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पढ़ें क्यों - इंदिरा गांधी आयरन लेडी कही जाने लगीं

1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में आर्मी के जुल्म बढ़ते जा रहे थे, महिलाओं-अल्पसंख्यकों पर बर्बरता जारी थी, अलग बांग्लादेश राष्ट्र की मांग तेज हो रही थी, भारतीय सीमा की ओर भाग कर आ रहे शरणार्थियों की तादाद बढ़ती जा रही थी. उसी बीच जुलाई में अमेरिका के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर हेनरी किसिंजर पाकिस्तान होते हुए भारत की यात्रा पर आए. तब अमेरिका खुले तौर पर पाकिस्तान के साथ था.

मुलाकात के दौरान इंदिरा गांधी ने किसिंजर से बांग्लादेश के लोगों पर पाकिस्तानी आर्मी के जुल्म का जिक्र किया. लेकिन, अमेरिका ने पाकिस्तान के गुनाहों पर जैसे आंखें मूंद रखी हो, आरोपों को मानने से ही इनकार कर दिया.

निक्सन की धमकी

इसके ठीक 4 महीने बाद भारत और पाकिस्तान दोनों पड़ोसी देश युद्ध के मैदान में आमने-सामने खड़े थे. 3 दिसंबर 1971 को जब पाकिस्तानी एयरफोर्स ने भारत पर हमलों की शुरुआत की तो भारत ने भी पलटवार शुरू कर दिया. लेकिन उस समय पाकिस्तान के कूटनीतिक दोस्त अमेरिका ने भारत पर ही दबाव बनाना शुरू कर दिया. ये इंदिरा गांधी के लिए परीक्षा की घड़ी थी.

पाकिस्तान के खिलाफ भारत की जवाबी कार्रवाई को अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने अमेरिका का अपमान माना और पाकिस्तान की मदद के लिए अमेरिकी जहाजी बेड़ा तक भेज दिया. हालांकि, अमेरिकी दबाव के बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पाकिस्तान पर एक्शन के अपने फैसले पर अटल रहीं और भारत के अभिन्न मित्र रूस के आक्रामक रवैये ने अमेरिका का ये दांव भी फेल कर दिया.

13 दिन का युद्ध

3 दिसंबर को युद्ध शुरू हुआ और 16 दिसंबर को पाकिस्तान घुटनों पर था. 13 दिन चले युद्ध में इंडियन आर्मी-नेवी और एयरफोर्स ने पाकिस्तान की कमर तोड़कर रख दी. जनरल सैम मानेकशॉ की अगुवाई वाली इंडियन आर्मी के सामने 16 दिसंबर को पाकिस्तान आर्मी के 93000 सैनिकों ने ढाका में सरेंडर कर दिया. पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंट गया और एक नए देश बांग्लादेश का जन्म हुआ.

कैसे शुरू हुई थी जंग?

बांग्लादेश में आजादी की लहर शुरू हुई 1970 के आम चुनाव से, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान की पार्टी अवामी लीग ने कुल 169 सीटों में से 167 सीटें जीतकर पाकिस्तानी संसद के निचले सदन की 313 सीटों के चुनाव में बहुमत हासिल कर लिया. अवामी लीग के नेता शेख मुजीब-उर रहमान ने पाकिस्तान का राष्ट्रपति बनने और सरकार बनाने का दावा किया. लेकिन पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के जुल्फिकार अली भुट्टो ने मुजीब-उर रहमान का दावा खारिज करते हुए राष्ट्रपति याह्या खान से पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य शासन लागू करने की सिफारिश की. यहीं से बांग्लाभाषी लोगों पर सैनिक जुल्म की कहानी शुरू हुई.

भारत युद्ध में कैसे कूदा?

मुजीब-उर रहमान को गिरफ्तार कर पश्चिमी पाकिस्तान ले जाया गया. इस बीच, मेजर जियाउर्ररहमान ने मुजीब-उर रहमान की ओर से बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी. उन्होंने मुक्ति वाहिनी का गठन किया और पश्चिमी पाकिस्तान की सेना का मुकाबला किया. सैन्य कार्रवाई में बेतहाशा कत्लेआम हुआ. पाक सेना द्वारा अल्पसंख्यक हिन्दुओं और बांग्लाभाषियों पर किए जा रहे जुल्मों के चलते लाखों शरणार्थियों ने भारत की ओर रुख किया.

बढ़ते तनाव के बीच, पाकिस्तान द्वारा पश्चिमी सेक्टर में 3 दिसंबर 1971 को हमला कर दिया गया जिसका जवाब देने के लिए भारतीय सेना पूरी तरह तैयार थी. इंदिरा गांधी ने मौके की नजाकत को भांपते हुए पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य हस्तक्षेप का निर्णय लिया. 13 दिनों तक चली लड़ाई के बाद ढाका में पाकिस्तानी जनरल नियाजी ने पाकिस्तान के समर्पण पत्र पर हस्ताक्षर किए.

इंदिरा का आयरन लेडी अवतार

48 साल पहले हुए इस युद्ध की सफलता का श्रेय पूरी तरह इंदिरा गांधी, भारतीय सेना और बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी को जाता है. अमेरिका और चीन द्वारा भारी दबाव में भी इंदिरा गांधी जरा भी नहीं डरीं और पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए. इस अदम्य संकल्प और साहस के कारण इंदिरा गांधी आयरन लेडी कही जाने लगीं.

 

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