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निर्भया के दोषियों को कैसे दी जाएगी फांसी? जानिए इस प्रक्रिया से जुड़ी हर बात

निर्भया गैंगरेप केस के चार दोषियों को 22 जनवरी को सुबह 7 बजे फांसी दिए जाना तय है. अतिरिक्त सेशंस जज सतीश कुमार अरोड़ा ने मुकेश (32 वर्ष), पवन गुप्ता (25 वर्ष), विनय शर्मा (26 वर्ष) और अक्षय कुमार सिंह (31 वर्ष) के ख़िलाफ़ मंगलवार को डेथ वारंट जारी किया. चारों को फांसी तिहाड़ की जेल नंबर 3 में दी जाएगी.

ट्रायल कोर्ट की ओर से डेथ वारंट जारी होने के बाद फांसी के लिए क्या क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है, इस बारे में इंडिया टुडे ने तिहाड़ जेल प्रशासन के अधिकारियों से बात की. फांसी से पहले दोषी कैदियों के परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों और दोस्तों को जेल सुपरिटेंडेंट की आज्ञा से उनसे मिलने की इजाज़त दी जाती है.

फांसी के वक्त ये अधिकारी रहते हैं मौजूद

फांसी दिए जाते वक्त सुपरिटेंडेंट, डिप्टी सुपरिटेंडेंट, मेडिकल ऑफिसर इन्चार्ज और रेज़ीडेंट मेडिकल ऑफिसर को मौजूद रहना होता है. डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट का भी वहां रहना ज़रूरी है. लेकिन अपरिहार्य स्थिति में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की उपस्थिति संभव नहीं हो तो एडीशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट उपस्थित होकर वारंट पर काउंटर साइन करता है.

अगर कैदी इच्छा जताए तो फांसी के वक्त उसके धर्म का पुजारी/मौलवी/पादरी/ग्रंथी भी उपस्थित हो सकता है. लेकिन ये फ़ैसला लेना जेल सुपरिटेंडेंट के विवेक पर निर्भर करता है. ऐसा करते वक्त सुरक्षा की ज़रूरतों और जेल के अनुशासन को ध्यान में रखा जाता है.

फांसी की सज़ा दिए जाते वक्त कैदी के रिश्तेदारों को वहां उपस्थित रहने की इजाज़त नहीं दी जाती. हालांकि सरकार से ली गई पूर्व अनुमति के बाद सुपरिटेंडेंट समाज विज्ञानियों, मनोचिकित्सक या मनोविज्ञानियों को उनके शोध के मुताबिक फांसी के वक्त उपस्थित रहने की इजाज़त दे सकता है.

फांसी की सजा के वक्त उपस्थित रहने की अनुमति देने से जुड़े मामलों में सुपरिटेंडेंट का फैसला ही अंतिम होता है. सामान्य नीति यही है कि किसी भी अन्य व्यक्ति को फांसी के वक्त मौजूद रहने की इजाज़त नहीं दी जाती. हर फांसी के वक्त कम से कम 10 कॉन्स्टेबल, वार्डर्स और दो हेड वार्डर्स या इतने ही सशस्त्र जेल गार्ड उपस्थित रहते हैं.

फांसी के वक्त, कैदी के दोनों हाथ पीठ की तरफ बांध दिए जाते हैं. इसके बाद कैदी को डिप्टी सुपरिटेंडेंट फांसी वाली जगह तक ले जाते हैं. इस दौरान हेड वार्डर और 6 वार्डर भी साथ रहते हैं. दो वार्डर कैदी के आगे, दो पीछे और दो साथ में एक एक बाजू पकड़े रहते हैं.

सुपरिटेंडेंट तब वहां उपस्थित मजिस्ट्रेट को सूचित करते हैं और कैदी को वारंट पढ़ कर सुनाते हैं. फांसी के फंदे वाले चैम्बर तक ले जाने से ठीक पहले कैदी का मुंह कपड़े से ढक दिया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है कि उसे फांसी का फंदा ना दिखे. इसके बाद कैदी को चबूतरे तक ले जाया जाता है. वहां उसे रस्सी के फंदे वाली शहतीर के ठीक नीचे खड़ा किया जाता है.

सुपरिटेंडेंट के इशारे पर जल्लाद बोल्ट हटा लेता है

वार्डर उस वक्त तक कैदी के हाथ पकड़े रहते हैं. फिर फांसी देने वाला शख्स (जल्लाद) कैदी की टांगों को हल्के से साथ बांध देता है. फिर गले में रस्सी की गांठ को सतर्कता से कसा जाता है. इसके बाद वार्डर कैदी का हाथ छोड़ देते हैं. जैसे ही सुपरिटेंडेंट इशारा देते हैं जल्लाद बोल्ट हटा लेता है. ये सब प्रक्रिया पूरी होने के बाद सुपरिटेंडेंट संकेत देता है, तो जल्लाद लिवर खींच देता है.

कैदी का शरीर करीब आधे घंटे तक लटका रहता है. फिर मेडिकल ऑफिसर्स की ओर से प्रमाणित किया जाता है कि कैदी की मौत हो चुकी है. इसके बाद शव का कैदी के धर्म के हिसाब से अंतिम संस्कार किया जाता है. अगर कैदी के परिवार की ओर से अंतिम संस्कार के लिए लिखित आवेदन दिया गया हो तो शव उनके हवाले कर दिया जाता है.

हालांकि निर्भया केस के चारों दोषियों को फांसी दिए जाने से पहले तिहाड़ जेल ने फांसी के इंतज़ाम को परखने के लिए डमी फांसी की तैयारी की है. तिहाड़ जेल प्रशासन से जुड़े सूत्रों ने इंडिया टुडे को बताया कि जेल मैनुअल के मुताबिक डमी फांसी के लिए रेत के बोरों का इस्तेमाल किया जाता है. इस वक्त पीडब्लूडी के एक एग्जीक्यूटिव इंजीनियर और मेडिकल ऑफिसर भी उपस्थित रहते हैं.

जेल मैनुअल के मुताबिक एग्जीक्यूटिव इंजीनियर (पीडब्लूडी) फंदे का निरीक्षण करता है और रस्सी को सुपरिटेंडेंट की उपस्थिति में चेक करता है. ऐसा सुपरिटेंडेंट की ओर से सूचना दिए जाने के बाद फांसी की तारीख की पूर्वसंध्या पर किया जाता है. सारे इंतज़ाम सही तरीके से हों, ये देखना सुपरिटेंडेंट की ही जिम्मेदारी होती है. हर फांसी के वक्त नई रस्सी का इस्तेमाल किया जाए ये आवश्यक नहीं है लेकिन सुपरिटेंडेंट की ओर से ये तय करना ज़रूरी होता है कि रस्सी को भलीभांति परख लिया गया है.

नियम के मुताबिक, डमी फांसी में कैदी के वजन से डेढ़ गुणा वजन के रेत के बोरे का इस्तेमाल किया जाता है. हर कैदी के लिए दो रस्सियों को अतिरिक्त रखा जाता है. जिससे कि रस्सी टूटने जैसी कोई आकस्मिक स्थिति आए तो उससे निपटा जा सके.

कैदी के वजन के मुताबिक ड्रॉप

कैदी के वजन के हिसाब से 1.830 मीटर से लेकर 2.440 मीटर तक ड्रॉप यानी नीचे रस्सी से लटकाया जाना होता है. मेडिकल ऑफिसर की ओर से फांसी की तारीख से चार दिन पहले अपनी मेडिकल रिपोर्ट में बताया जाना जरूरी होता है कि कैदी को कितना ड्राप देना है यानी रस्सी से कितना नीचे लटकाया जाना है.

कैदियों के 45 किलो से नीचे से लेकर 90 किलो से ज्यादा के वजन के हिसाब से ड्रॉप 1.830 मीटर से लेकर 2.440 मीटर तक तय किया जाता है. ड्रॉप के बारे में अंतिम फैसला मेडिकल ऑफिसर की ओर से ही किया जाता है. रस्सी के फंदे मक्खन से नर्म किया जाता है. रस्सी और अन्य उपकरण को परखने के बाद स्टील बॉक्स में ताला बंद करके सुरक्षित रखा जाता है. इस बक्से की ज़िम्मेदारी डिप्टी सुपरिटेंडेंट के पास रहती है.

 

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