ओरछा महोतà¥à¤¸à¤¬ :आइठजानते हैं ओरछा के इतिहास और आकरà¥à¤·à¤£ के बारे में..
ओरछा महोतà¥à¤¸à¤¬ की राजà¥à¤¯ सरकार ने तयारी शà¥à¤°à¥‚ करदी है. ओरछा महोतà¥à¤¸à¤¬ के माधà¥à¤¯à¤® से सरकार ओरछा को बड़े सà¥à¤¤à¤° पर परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• सà¥à¤¥à¤² के रूप में विकसित करने की तयारी कर रही है.. आइठजानते हैं ओरछा के इतिहास .. और आकरà¥à¤·à¤£ के बारे में ..
इसका इतिहास 15वीं शताबà¥à¤¦à¥€ से शà¥à¤°à¥‚ होता है, जब इसकी सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ रà¥à¤¦à¥à¤° पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª सिंह जू बà¥à¤¨à¥à¤¦à¥‡à¤²à¤¾ ने की थी जो सिकनà¥à¤¦à¤° लोदी से à¤à¥€ लड़ा था . इस जगह की पहली और सबसे रोचक कहानी à¤à¤• मंदिर की है। दरअसल, यह मंदिर à¤à¤—वान राम की मूरà¥à¤¤à¤¿ के लिठबनवाया गया था, लेकिन मूरà¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ के वकà¥à¤¤ यह अपने सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से हिली नहीं। इस मूरà¥à¤¤à¤¿ को मधà¥à¤•à¤° शाह बà¥à¤¨à¥à¤¦à¥‡à¤²à¤¾ के राजà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤² (1554-92) के दौरान उनकी रानी गनेश कà¥à¤‚वर अयोधà¥à¤¯à¤¾ से लाई थीं। रानी गनेश कà¥à¤‚वर वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° जिले के करहिया गांव की परमार राजपूत थीं। चतà¥à¤°à¥à¤à¥à¤œ मंदिर बनने से पहले रानी पà¥à¤–à¥à¤¯ नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤° में अयोधà¥à¤¯à¤¾ से पैदल चल कर बाल सà¥à¤µà¤°à¥‚प à¤à¤—वान राम(राम लला)को ओरछा लाईं परंतॠरातà¥à¤°à¤¿ हो जाने के कारण à¤à¤—वान राम को कà¥à¤› समय के लिठमहल के à¤à¥‹à¤œà¤¨ ककà¥à¤· में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किया गया। लेकिन मंदिर बनने के बाद कोई à¤à¥€ मूरà¥à¤¤à¤¿ को उसके सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से हिला नहीं पाया। इसे ईशà¥à¤µà¤° का चमतà¥à¤•à¤¾à¤° मानते हà¥à¤ महल को ही मंदिर का रूप दे दिया गया और इसका नाम रखा गया राम राजा मंदिर। आज इस महल के चारों ओर शहर बसा है और राम नवमी पर यहां हजारों शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ इकटà¥à¤ ा होते हैं। वैसे, à¤à¤—वान राम को यहां à¤à¤—वान मानने के साथ यहां का राजा à¤à¥€ माना जाता है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उस मूरà¥à¤¤à¤¿ का चेहरा मंदिर की ओर न होकर महल की ओर है।आज à¤à¥€ à¤à¤—वान राम को राजा के रूप में(राम राजा सरकार) ओरछा के इस मंदिर में पूजा जाता है और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गारà¥à¤¡ सलामी देते हैं।मंदिर में चमड़े से बनी वसà¥à¤¤à¥à¤“ं का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ निषिदà¥à¤§ हैं।
आकरà¥à¤·à¤£
मंदिर के पास à¤à¤• बगान है जिसमें सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ काफी ऊंचे दो मीनार (वायू यंतà¥à¤°) लोगों के आकरà¥à¤·à¤£ का केनà¥à¤¦à¥à¤° हैं। जिà¥à¤¨à¥à¤¹à¥‡à¤‚ सावन à¤à¤¾à¤¦à¥‹à¤‚ कहा जाता है कि इनके नीचे बनी सà¥à¤°à¤‚गों को शाही परिवार अपने आने-जाने के रासà¥à¤¤à¥‡ के तौर पर इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² करता था। इन सà¥à¤¤à¤‚à¤à¥‹à¤‚ के बारे में à¤à¤• किंवदंती पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ है कि वरà¥à¤·à¤¾ ऋतॠमें हिंदॠकलेंडर के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° सावन के महीने के खतà¥à¤® होने और à¤à¤¾à¤¦à¥‹à¤‚ मास के शà¥à¤à¤¾à¤°à¤‚ठके समय ये दोनों सà¥à¤¤à¤‚ठआपस में जà¥à¤¡à¤¼ जाते थे। हालांकि इसके बारे में पà¥à¤–à¥à¤¤à¤¾ सबूत नहीं हैं। इन मीनारों के नीचे जाने के रासà¥à¤¤à¥‡ बंद कर दिये गये हैं à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤¸à¤‚धान का कोई रासà¥à¤¤à¤¾ नहीं है।
इन मंदिरों को दशकों पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ पà¥à¤² से पार कर शहर के बाहरी इलाके में 'रॉयल à¤à¤‚कà¥à¤²à¥‡à¤µ' (राजनिवासà¥) है। यहां चार महल, जहांगीर महल, राज महल, शीश महल और इनसे कà¥à¤› दूरी पर बना राय परवीन महल हैं। इनमें से जहांगीर महल के किसà¥à¤¸à¥‡ सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ मशहूर हैं, जो मà¥à¤—ल बà¥à¤‚देला दोसà¥à¤¤à¥€ का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• है। कहा जाता है कि बादशाह अकबर ने अबà¥à¤² फज़ल को शहजादे सलीम (जहांगीर) को काबू करने के लिठà¤à¥‡à¤œà¤¾ था, लेकिन सलीम ने बीर सिंह की मदद से उसका कतà¥à¤² करवा दिया। इससे खà¥à¤¶ होकर सलीम ने ओरछा की कमान बीर सिंह को सौंप दी थी। वैसे, ये महल बà¥à¤‚देलाओं की वासà¥à¤¤à¥à¤¶à¤¿à¤²à¥à¤ª के पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ हैं। खà¥à¤²à¥‡ गलियारे, पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ वाली जाली का काम, जानवरों की मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚, बेलबूटे जैसी तमाम बà¥à¤‚देला वासà¥à¤¤à¥à¤¶à¤¿à¤²à¥à¤ª की विशेषताà¤à¤‚ यहां साफ देखी जा सकती हैं।
अब बेहद शांत दिखने वाले ये महल अपने जमाने में à¤à¤¸à¥‡ नहीं थे। यहां रोजाना होने वाली नई हलचल से उपजी कहानियां आज à¤à¥€ लोगों की जà¥à¤¬à¤¾à¤¨ पर हैं। इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ में से à¤à¤• है हरदौल की कहानी, जो जà¥à¤à¤¾à¤° सिंह (1627-34) के राजà¥à¤¯ काल की है। दरअसल, मà¥à¤—ल जासूसों की साजिशà¤à¤°à¥€ कथाओं के कारणॠइस राजा का शक हो गया था कि उसकी रानी से उसके à¤à¤¾à¤ˆ हरदौल के साथ संबंध हैं। लिहाजा उसने रानी से हरदौल को ज़हर देने को कहा। रानी के à¤à¤¸à¤¾ न कर पाने पर खà¥à¤¦ को निरà¥à¤¦à¥‹à¤· साबित करने के लिठहरदौल ने खà¥à¤¦ ही जहर पी लिया और तà¥à¤¯à¤¾à¤— की नई मिसाल कायम की।
बà¥à¤‚देलाओं का राजकाल 1783 में खतà¥à¤® होने के साथ ही ओरछा à¤à¥€ गà¥à¤®à¤¨à¤¾à¤®à¥€ के घने जंगलों में खो गया और फिर यह सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ संगà¥à¤°à¤¾à¤® के समय सà¥à¤°à¥à¤–ियों में आया। दरअसल, सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ सेनानी चंदà¥à¤°à¤¶à¥‡à¤–र आजाद यहां के à¤à¤• गांव में आकर छिपे थे। आज उनके ठहरने की जगह पर à¤à¤• सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ चिनà¥à¤¹ à¤à¥€ बना है।
आकरà¥à¤·à¤£-
जहांगीर महल
बà¥à¤¨à¥à¤¦à¥‡à¤²à¥‹à¤‚ और मà¥à¤—ल शासक जहांगीर की दोसà¥à¤¤à¥€ की यह निशानी ओरछा का मà¥à¤–à¥à¤¯ आकरà¥à¤·à¤£ है। महल के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर दो à¤à¥à¤•à¥‡ हà¥à¤ हाथी बने हà¥à¤ हैं। तीन मंजिला यह महल जहांगीर के सà¥à¤µà¤¾à¤—त में राजा बीरसिंह देव ने बनवाया था। वासà¥à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤°à¥€ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से यह अपने जमाने का उतà¥à¤•à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿ उदाहरण है।
राज महल
यह महल ओरछा के सबसे पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤•à¥‹à¤‚ में à¤à¤• है। इसका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ मधà¥à¤•à¤° शाह ने 17 वीं शताबà¥à¤¦à¥€ में करवाया था। राजा बीरसिंह देव उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ के उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤§à¤¿à¤•à¤¾à¤°à¥€ थे। यह महल छतरियों और बेहतरीन आंतरिक à¤à¤¿à¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤šà¤¿à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के लिठपà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है। महल में धरà¥à¤® गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ से जà¥à¤¡à¤¼à¥€ तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‡à¤‚ à¤à¥€ देखी जा सकती हैं।
रामराजा मनà¥à¤¦à¤¿à¤°
à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® का ओरछा में ४०० वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• हà¥à¤† था और उसके बाद से आज तक यहां à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® को राजा के रà¥à¤ª में पूजा जाता है। यह पूरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ का à¤à¤•à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° à¤à¤¸à¤¾ मंदिर है जहां à¤à¤—वान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है।
रामराजा के अयोधà¥à¤¯à¤¾ से ओरछा आने की à¤à¤• मनोहारी कथा
à¤à¤• दिन ओरछा नरेश मधà¥à¤•à¤°à¤¶à¤¾à¤¹ ने अपनी पतà¥à¤¨à¥€ गणेशकà¥à¤‚वरि से कृषà¥à¤£ उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा। लेकिन रानी राम à¤à¤•à¥à¤¤ थीं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वृंदावन जाने से मना कर दिया। कà¥à¤°à¥‹à¤§ में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तà¥à¤® इतनी राम à¤à¤•à¥à¤¤ हो तो जाकर अपनेराम को ओरछा ले आओ। रानी ने अयोधà¥à¤¯à¤¾ पहà¥à¤‚चकर सरयू नदी के किनारे लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ किले के पास अपनी कà¥à¤Ÿà¥€ बनाकर साधना आरंठकी। इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ दिनों संत शिरोमणि तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ à¤à¥€ अयोधà¥à¤¯à¤¾ में साधना रत थे। संत से आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ पाकर रानी की आराधना दृढ से दृढतर होती गई। लेकिन रानी को कई महीनों तक रामराजा के दरà¥à¤¶à¤¨ नहीं हà¥à¤à¥¤ अंतत: वह निराश होकर अपने पà¥à¤°à¤¾à¤£ तà¥à¤¯à¤¾à¤—ने सरयू की मà¤à¤§à¤¾à¤° में कूद पडी। यहीं जल की अतल गहराइयों में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ रामराजा के दरà¥à¤¶à¤¨ हà¥à¤à¥¤ रानी ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपना मंतवà¥à¤¯ बताया। रामराजा ने ओरछा चलना सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° किया किनà¥à¤¤à¥ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने तीन शरà¥à¤¤à¥‡à¤‚ रखीं- पहली, यह यातà¥à¤°à¤¾ पैदल होगी, दूसरी- यातà¥à¤°à¤¾ केवल पà¥à¤·à¥à¤ª नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤° में होगी, तीसरी- रामराजा की मूरà¥à¤¤à¤¿ जिस जगह रखी जाà¤à¤—ी वहां से पà¥à¤¨: नहीं उठेगी।
रानी ने राजा को संदेश à¤à¥‡à¤œà¤¾ कि वो रामराजा को लेकर ओरछा आ रहीं हैं। राजा मधà¥à¤•à¤°à¤¶à¤¾à¤¹ ने रामराजा के विगà¥à¤°à¤¹ को सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करने के लिठकरोडों की लागत से चतà¥à¤°à¥à¤à¥à¤œ मंदिर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कराया। जब रानी ओरछा पहà¥à¤‚ची तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यह मूरà¥à¤¤à¤¿ अपने महल में रख दी। यह निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ हà¥à¤† कि शà¥à¤ मà¥à¤°à¥à¤¹à¥‚त में मूरà¥à¤¤à¤¿ को चतà¥à¤°à¥à¤à¥à¤œ मंदिर में रखकर इसकी पà¥à¤°à¤¾à¤£ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ा की जाà¤à¤—ी। लेकिन राम के इस विगà¥à¤°à¤¹ ने चतà¥à¤°à¥à¤à¥à¤œ जाने से मना कर दिया। कहते हैं कि राम यहां बाल रूप में आठऔर अपनी मां का महल छोडकर वो मंदिर में कैसे जा सकते थे। राम आज à¤à¥€ इसी महल में विराजमान हैं और उनके लिठबना करोडों का चतà¥à¤°à¥à¤à¥à¤œ मंदिर आज à¤à¥€ वीरान पडा है। यह मंदिर आज à¤à¥€ मूरà¥à¤¤à¤¿ विहीन है।
यह à¤à¥€ à¤à¤• संयोग है कि जिस संवत 1631 को रामराजा का ओरछा में आगमन हà¥à¤†, उसी दिन रामचरित मानस का लेखन à¤à¥€ पूरà¥à¤£ हà¥à¤†à¥¤ जो मूरà¥à¤¤à¤¿ ओरछा में विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है उसके बारे में बताया जाता है कि जब राम वनवास जा रहे थे तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी à¤à¤• बाल मूरà¥à¤¤à¤¿ मां कौशलà¥à¤¯à¤¾ को दी थी। मां कौशलà¥à¤¯à¤¾ उसी को बाल à¤à¥‹à¤— लगाया करती थीं। जब राम अयोधà¥à¤¯à¤¾ लौटे तो कौशलà¥à¤¯à¤¾ ने यह मूरà¥à¤¤à¤¿ सरयू नदी में विसरà¥à¤œà¤¿à¤¤ कर दी। यही मूरà¥à¤¤à¤¿ गणेशकà¥à¤‚वरि को सरयू की मà¤à¤§à¤¾à¤° में मिली थी। यह विशà¥à¤µ का अकेला मंदिर है जहां राम की पूजा राजा के रूप में होती है और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सूरà¥à¤¯à¥‹à¤¦à¤¯ के पूरà¥à¤µ और सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ सलामी दी जाती है। यहां राम ओरछाधीश के रूप में मानà¥à¤¯ हैं। रामराजा मंदिर के चारों तरफ हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी के मंदिर हैं। छडदारी हनà¥à¤®à¤¾à¤¨, बजरिया के हनà¥à¤®à¤¾à¤¨, लंका हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ के मंदिर à¤à¤• सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ चकà¥à¤° के रूप में चारों तरफ हैं। ओरछा की अनà¥à¤¯ बहà¥à¤®à¥‚लà¥à¤¯ धरोहरों में लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ मंदिर, पंचमà¥à¤–ी महादेव, राधिका बिहारी मंदिर , राजामहल, रायपà¥à¤°à¤µà¥€à¤£ महल, हरदौल की बैठक, हरदौल की समाधि, जहांगीर महल और उसकी चितà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤®à¥à¤– है। ओरछा à¤à¤¾à¤‚सी से मातà¥à¤° 15 किमी. की दूरी पर है। à¤à¤¾à¤‚सी देश की पà¥à¤°à¤®à¥à¤– रेलवे लाइनों से जà¥à¤¡à¤¾ है। परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•à¥‹à¤‚ के लिठà¤à¤¾à¤‚सी और ओरछा में शानदार आवासगृह बने हैं।
राय पà¥à¤°à¤µà¥€à¤¨ महल
यह महल राजा इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤®à¤£à¤¿ की खूबसूरत गणिका राय पà¥à¤°à¤µà¥€à¤£ की याद में बनवाया गया था। वह à¤à¤• कवयितà¥à¤°à¥€ और संगीतकारा थीं। मà¥à¤—ल समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ अकबर को जब उनकी सà¥à¤‚दरता के बार पता चला तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दिलà¥à¤²à¥€ लाने का आदेश दिया गया। इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤®à¤£à¤¿ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤µà¥€à¤¨ के सचà¥à¤šà¥‡ पà¥à¤°à¥‡à¤® को देखकर अकबर ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वापस ओरछा à¤à¥‡à¤œ दिया। यह दो मंजिला महल पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• बगीचों और पेड़-पौधों से घिरा है। राय पà¥à¤°à¤µà¥€à¤¨ महल में à¤à¤• लघॠहाल और चेमà¥à¤¬à¤° है।
लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¤¨à¤¾à¤°à¤¾à¤¯à¤£ मंदिर
यह मंदिर 1622 ई. में वीर सिंह देव दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनवाया गया था। मंदिर ओरछा गांव के पशà¥à¤šà¤¿à¤® में à¤à¤• पहाड़ी पर बना है। मंदिर में सतà¥à¤°à¤¹à¤µà¥€à¤‚ और उनà¥à¤¨à¥€à¤¸à¤µà¥€à¤‚ शताबà¥à¤¦à¥€ के चितà¥à¤° बने हà¥à¤ हैं। चितà¥à¤°à¥‹à¤‚ के चटकीले रंग इतने जीवंत लगते हैं जैसे वह हाल ही में बने हों। मंदिर में à¤à¤¾à¤‚सी की लड़ाई के दृशà¥à¤¯ और à¤à¤—वान कृषà¥à¤£ की आकृतियां बनी हà¥à¤ˆ हैं।
चतà¥à¤°à¥à¤à¥à¤œ मंदिर
राज महल के समीप सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ चतà¥à¤à¤°à¥à¤œ मंदिर ओरछा का मà¥à¤–à¥à¤¯ आकरà¥à¤·à¤£ है। यह मंदिर चार à¤à¥à¤œà¤¾à¤§à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤—वान विषà¥à¤£à¥ को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ है। इस मंदिर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ 1558 से 1573 के बीच राजा मधà¥à¤•à¤° ने करवाया था। अपने समय की यह उतà¥à¤•à¥ƒà¤·à¥à¤ रचना यूरोपीय कैथोडà¥à¤°à¤² से समान है। मंदिर में पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ के लिठविसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ हॉल है जहां कृषà¥à¤£ à¤à¤•à¥à¤¤ à¤à¤•à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¤ होते हैं। ओरछा में यह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ à¤à¥à¤°à¤®à¤£ के लिठबहà¥à¤¤ शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ है।
फूलबाग
बà¥à¤¨à¥à¤¦à¥‡à¤²à¤¾ राजाओं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनवाया गया यह फूलों का बगीचा चारों ओर से दीवारों से घिरा है। पालकी महल के निकट सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ यह बाग बà¥à¤¨à¥à¤¦à¥‡à¤² राजाओं का आरामगाह था। वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में यह पिकनिक सà¥à¤¥à¤² के रूप में जाना जाता है। फूलबाग में à¤à¤• à¤à¥‚मिगत महल और आठसà¥à¤¤à¤®à¥à¤à¥‹à¤‚ वाला मंडप है। यहां के चंदन कटोर से गिरता पानी à¤à¤°à¤¨à¥‡ के समान पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है।
सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° महल
इस महल को राजा जà¥à¤à¤¾à¤° सिंह के पà¥à¤¤à¥à¤° धà¥à¤°à¤à¤œà¤¨ के बनवाया था। राजकà¥à¤®à¤¾à¤° धà¥à¤°à¤à¤œà¤¨ को à¤à¤• मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® लड़की से पà¥à¤°à¥‡à¤® था। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उससे विवाह कर इसà¥à¤²à¤¾à¤® धरà¥à¤® अंगीकार कर लिया। धीर-धीर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शाही जीवन तà¥à¤¯à¤¾à¤— दिया और सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ और à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ में लीन कर लिया। विवाह के बाद उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° महल तà¥à¤¯à¤¾à¤— दिया। धà¥à¤°à¤à¤œà¤¨ की मृतà¥à¤¯à¥ के बाद उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ संत से रूप में जाना गया। वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में यह महल काफी कà¥à¤·à¤¤à¤¿à¤—à¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ हो चà¥à¤•à¤¾ है।
आवागमन
ओरछा à¤à¤¾à¤‚सी से तकरीबन 15 किलोमीटर दूर है और दिलà¥à¤²à¥€ से यहां à¤à¥‹à¤ªà¤¾à¤² शताबà¥à¤¦à¥€-à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ के जरिठआसानी से पहà¥à¤‚चा जा सकता है।
वायॠमारà¥à¤—[
ओरछा का नजदीकी हवाई अडà¥à¤¡à¤¾ खजà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥‹ है जो 163 किलोमीटर की दूरी पर है। यह à¤à¤¯à¤°à¤ªà¥‹à¤°à¥à¤Ÿ दिलà¥à¤²à¥€, वाराणसी और आगरा से नियमित फà¥à¤²à¤¾à¤‡à¤Ÿà¥‹à¤‚ से जà¥à¤¡à¤¼à¤¾ है।
रेल मारà¥à¤—
à¤à¤¾à¤‚सी ओरछा का नजदीकी रेल मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ है। दिलà¥à¤²à¥€, आगरा, à¤à¥‹à¤ªà¤¾à¤², मà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ, गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° आदि पà¥à¤°à¤®à¥à¤– शहरों से à¤à¤¾à¤‚सी के लिठअनेक रेलगाड़ियां हैं। वैसे ओरछा तक à¤à¥€ रेलवे लाइन है जहां पैसेनà¥à¤œà¤° टà¥à¤°à¥ˆà¤¨ से पहà¥à¤‚चा जा सकता है।
सड़क मारà¥à¤—
ओरछा à¤à¤¾à¤‚सी-खजà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥‹ मारà¥à¤— पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। नियमित बस सेवाà¤à¤‚ ओरछा और à¤à¤¾à¤‚सी को जोड़ती हैं। दिलà¥à¤²à¥€, आगरा, à¤à¥‹à¤ªà¤¾à¤², गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° और वाराणसी से यहां से लिठनियमित बसें चलती हैं। रिपोरà¥à¤Ÿ- विनय शरà¥à¤®à¤¾ .