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सिंधिया राजपरिवार में कई बार बदली पार्टियां, लेकिन दबदबा रहा कायम; इस बार गुना में फिर ज्योतिरादित्य

कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में गुना से अप्रत्याशित रूप से हारने के पांच साल बाद मध्य प्रदेश की राजनीति में परिवार की वर्तमान पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया वापस मैदान में हैं, लेकिन इस बार  ईवीएम पर उनके नाम के आगे चुनाव चिन्ह कमल का होगा। 53 वर्षीय ज्योतिरादित्य सिंधिया विजया राजे सिंधिया के पोते और पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत माधवराव सिंधिया के बेटे हैं। गुना लोकसभा सीट जोकि सिंधिया के गृह क्षेत्र का हिस्सा है, जिसमें ग्वालियर भी शामिल है, इसके साथ ही शिवपुरी और अशोक नगर जिलों की आठ विधानसभा सीटों में फैली हुई है।ठीक चार साल पहले मध्य प्रदेश में अपनी सरकार गंवाने के बाद कांग्रेस चुनाव मैदान में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ हिसाब-किताब बराबर करने की कोशिश कर रही है, लेकिन कांग्रेस ने अभी तक गुना से अपने उम्मीदवार का नाम घोषित नहीं किया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया को 2019 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था, जब उनके पुराने वफादार केपी यादव ने उन्हें लगभग 1.26 लाख वोटों के अंतर से हरा दिया था।अब 2024 के लोकसभा चुनाव में सिंधिया फिर से चुनावी मैदान में हैं, लेकिन एक अलग पार्टी (भाजपा) के बैनर तले। माधवराव सिंधिया राजनीती के अपराजय योध्या रहे ,वे कभी चुनाव नहीं हारे |

माधवराव सिंधिया ग्वालियर से पांच बार चुने गए
गुना संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व राजमाता सिंधिया ने 6 बार किया, जबकि उनके बेटे माधवराव सिंधिया ने चार बार यहां से जीत हासिल की। गुना के अलावा राजमाता सिंधिया ने ग्वालियर लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया था। माधवराव सिंधिया ग्वालियर से पांच बार चुने गए। राजमाता सिंधिया की बेटी यशोधरा राजे ने भी भाजपा के लिए दो बार लोकसभा में ग्वालियर सीट का प्रतिनिधित्व किया।

 जब ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में हुए थे शामिल
2002 से 2014 के बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया ने चार बार गुना सीट का प्रतिनिधित्व किया है, जिसमें उपचुनाव में जीत भी शामिल है। अपनी हार के एक साल बाद वह मार्च 2020 में 22 कांग्रेस विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए, जिससे मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई।

1984 में भिंड से हारी थी पूर्व सीएम वसुंधरा राजे
2019 में लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार सिंधिया परिवार के लिए दूसरा झटका थी। 1984 में केंद्रीय मंत्री की बुआ और राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को भिंड लोकसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर हार का सामना करना पड़ा था। वह कांग्रेस उम्मीदवार कृष्णा सिंह जूदेव से हार गईं, जो दतिया के पूर्व शाही परिवार से हैं।

गुना लोकसभा क्षेत्र का इतिहास बताता है कि सिंधिया परिवार ने अपना पहला और आखिरी चुनाव कभी एक ही पार्टी से नहीं लड़ा है। केंद्रीय मंत्री की दादी राजमाता विजया राजे सिंधिया ने अपना पहला चुनाव 1957 में कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से लड़ा और जीत हासिल की। उन्होंने 1967 में स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और फिर 1989 में भाजपा से चुनाव लड़ा। उनके पिता माधवराव सिंधिया ने अपना पहला चुनाव 1971 में भारतीय जनसंघ (बीजेएस) के टिकट पर गुना से लड़ा था | 

 
 
 
 
 

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