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फिल्म समीक्षा: 'रईस' में शाहरुख शानदार, तो नवाज हैं दमदार

रईस’ की शुरुआत में एक सीन है, जिसमें 10-12 साल का रईस अपनी कमजोर आंखों के लिये गांधी जी के स्टेच्यू से चश्मा उतार लेता है. शराबबंदी के नाम पर गुजरात में आज तक जो कुछ हो रहा है, यह सीन उस पूरे तंत्र पर एक टिप्पणी है. तो जी खैर, विवादित कहानी, पाकिस्तानी कलाकार, मनसे की धमकी, ट्रेन में सफर, इतने सारे हो-हल्ले के बाद आखिरकार ‘रईस’ आ ही गया. लेकिन इस रईस को देखने के बाद मुंह से निकला- 'मियांभाई, जितने रईस दिखते हो उतने हो नहीं!'

90 के दशक की कहानी

‘रईस’ कहानी है अस्सी और नब्बे के दशक की, जिसमें रईस आलम (बेशक शाहरुख़! ये तो अब मंगल ग्रह वाले भी जान गये होंगे), अपनी मां के साथ बदहाल जिंदगी गुजार रहा है. वो बचपन से ही अवैध शराब के कारोबारी जयराज के लिए काम करने लगता है. इस काम में उसका दोस्त सादिक़ (मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब) हर कदम पर उसके साथ है. धीरे-धीरे वो अवैध शराब के धंधे का बड़ा खिलाड़ी बन जाता है. इतना बड़ा कि चीफ मिनिस्टर के यहां भी उसकी सीधी पहुंच है.

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