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1935 के एक फैसले ने कैसे भोजशाला को बना दिया एमपी की 'अयोध्या'

मध्य प्रदेश के धार शहर में वसंत पंचमी के मौके ऐतिहासिक भोजशाला में पूजा-अर्चना के लिए हजारों लोग पहुंच रहे हैं. भोजशाल में हिंदू समाज को केवल साल में एक दिन बसंत पंचमी के मौके पर पूरे दिन हवन-पूजन की अनुमति रहती है.

भोजशाला में हजारों लोगों के जुटने की संभावना के चलते सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजार किए गए है. पुलिस ने एक दिन पहले शहर में फ्लैग मार्च किया. वहीं, शहर के सभी संवेदनशील इलाकों में ऐहतियात बरती जा रही है.

एमपी की इस 'अयोध्या' में तनाव की वजह हिंदू और मुस्लिम समाज का भोजशाला पर अपना-अपना दावा जताना है.

भारतीय पुरात्तव विभाग के प्रावधान के मुताबिक हिंदुओं को हर मंगलवार को पूजा और मुस्लिमों को हर शुक्रवार को नमाज अता करने की अनुमति मिली हुई है. वहीं, वसंत पंचमी पर भोजशाला में सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त  à¤¤à¤• पूजा-अर्चना करने का प्रावधान है

1935 में मिली नमाज की अनुमति

भोजशाल में नमाज और पूजा की व्यवस्था आजादी से पहले शुरू हुई थी. धार स्टेट दरबार के दीवान नाडकर ने 1935 में शुक्रवार को जुमे की नमाज अदा करने की अनुमति दी थीं.

इस ऑर्डर में भोजशाला को कमाल मौला की मस्जिद बताते हुए शुक्रवार को नमाज पढ़ने की अनुमति दी थी. इसके बाद पूजा और नमाज होना शुरू हुआ था.

1989 के बाद से 'सुलग' रहा धार

धार में भोजशाला विवाद को अयोध्या आंदोलन के बाद हवा मिलने लगी. दोनों समाज के लोग इस पर अपना एकाधिकार दिखाने लगे. इस वजह से पिछले दो दशक से भोजशाला की वजह से धार में कई बार वसंत तनाव लेकर आया.

वसंत पंचमी और शुक्रवार एक दिन होने की वजह से कई बार शहर फसाद की आग में झुलसा. 2013 में भी पूजा और नमाज को लेकर दोनों पक्षों में विवाद हुआ था. इसके चलते पथराव, आगजनी, तोड़फोड़ के चलते हालात बिगड़ गए थे. पुलिस ने लाठीचार्ज और अश्रुगैस के गोले दागकर हालात पर काबू पाया था.

1456 में हुआ था निर्माण

धार में महमूद खिलजी ने भोजशाला के भीतर मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण कराया था. दरगाह बनने के कई सदियों तक यह जगह गैर-विवादित रही. दोनों पक्षों के लोग अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूजा और नमाज की की परंपरा का निर्वाह करते थे.

सरस्वती सदन से मशहूर हुआ था भोजशाला

धार को राजा भोज के शासनकाल में पहचान मिली. परमार वंश से ताल्लुक रखने वाले राजा भोज ने 1034 ईस्वी में एक महाविद्यालय के रूप में सरस्वती सदन की स्थापना की थी. राजा भोज की रियासत के दौरान यहां देवी सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की गई थी. वाग्देवी की यह प्रतिमा अभी लंदन में है.

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