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आलू का दाम नहीं, अब यहां तय होगी नेताजी की किस्मत

एशिया की सबसे बड़ी आलू की मंडी फर्रुखाबाद में है जो हर सीजन आलू के बोरों से भरी रहती है लेकिन सीजन में मंडी खाली पड़ी है. मंडी में किसानों की जगह चुनाव आयोग के कर्मचारी नजर आ रहे हैं. बीते सालों में इन दिनों यहां खेतों से खुदाई के बाद आलू भरा जाता था ताकि उसे बीज के लिए इस्तेमान किया जा सके या फिर दाम बढ़ने पर बेचा जा सके.

 à¤«à¤°à¥à¤°à¥à¤–ाबाद की जिन दुकानों में 17 फरवरी से पहले आलू की बोरियां रखी जाती थीं अब वहां यूपी चुनाव के नजीते आने तक ईवीएम मशीनें रखी जाएंगी.

आलू मंडी में आलू के मोलभाव के लिए बहुत बड़ी जगह हुआ करती है उस जगह आजकल चुनाव आयोग के कर्मचारी चुनावी गणित पर चर्चा कर रहे हैं. चुनाव आयोग ने 17 फरवरी को ही आलू मंडी को अपने कब्जे में ले लिया और यहां पर अपना कंट्रोल रूम बना लिया है. यूपी पुलिस से लेकर, CISF के जवानों को यहां 24 घंटों के लिए तैनात कर दिया गया है.

आलू व्यापारियों ने आयोग के इस कदम का काफी विरोध किया. उनका कहना है कि सरकार और चुनाव आयोग के सामने वो लाचार और बेबस हैं. आलू मंडी किसान संगठन के चेयरमैन सतीश वर्मा का कहना है कि किसानों पर दोहरी मार पड़ी है. पहले नोटबंदी की वजह से काफी नुकसान हुआ और उसके बाद अब चुनावी दंगल ने इस मंडी पर अपना गहरा प्रभाव छोड़ा है. हमने बहुत विरोध किया कि हमारे आलू और अन्य सब्जियों से लदे हुए ट्रक यहां से बाहर निकाल दिए गए और हमें इस जगह का किराया भी देना पड़ रहा है.

फर्रुखाबाद की इस आलू मंडी में कन्नौज, एटा, हरदोई, मैनपुरी और फर्रुखाबाद जिलों के किसान आलू लेकर आते हैं और पूरे एशिया में इसका निर्यात किया जाता है. आलू विक्रेताओं का कहना है कि नोटबंदी ने उनकी बिक्री पर खासा बुरा प्रभाव डाला है किसान यह भी कहते हैं कि क्या केंद्र और क्या राज्य सरकार सब ने उनको उनके हाल पर ही छोड़ दिया है.

फर्रुखाबाद से सांसद और बीजेपी नेता मुकेश राजपूत ने सारा ठीकरा राज्य सरकार पर फोड़ते हुए कहा कि बंगाल के तर्ज पर उत्तर प्रदेश के किसानों को राज्य सरकार से किसी भी तरह की सुविधा नहीं मिल रही है

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