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फिल्म समीक्षा: प्यार और बेवफाई की कहानी है 'रंगून'

प्रेम कहानियां सबसे बेहतरीन कहानियां होती हैं और प्रेम में तड़प, जलन और बेवफाई सभी कुछ होता है. फिल्म 'रंगून' की कहानी भी ऐसा ही एक प्रेम त्रिकोण है, जो ग़ुलाम भारत के दौर में और विश्वयुद्ध के बैकड्रॉप में चलती है.

फिल्म 'रंगून' की कहानी बॉलीवुड की एक खूबसूरत एक्शन स्टार जूलिया यानि कंगना रनौत की है, जिसे बर्मा की सीमा पर सैनिकों का मनोरंजन करने के लिए भेजा जाता है. यहां जूलिया को एक भारतीय सिपाही नवाब मलिक (शाहिद कपूर) से इश्क हो जाता है.

जूलिया वापस मुंबई लौटती है, अपने पहले प्रेमी रूसी बिलिमोरिया (सैफ़ अली खान) के पास. रूसी एक फिल्म प्रोड्यूसर है और जूलिया के लिए फ़िल्में बनाता है. जूलिया के प्यार में रूसी अपनी बीवी को तलाक भी दे चुका है.

प्यार की तड़प, जलन और छल की इमोशनल कहानी तब शुरू होती है, जब रूसी को जूलिया और नवाब के अफेयर का पता चलता है. आखिर में फिल्म प्रेम और देशप्रेम के लिए बलिदान की दास्तां बनकर ख़त्म होती है.

इंटरवल तक फिल्म की कहानी को पकड़े रखना मुश्किल लगता है, लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म की कहानी, किरदारों का इमोशन, प्यार का दर्द और प्रेमियों की दुनिया में टकराव बेहतरीन है. रंगून की सबसे बड़ी खासियत है इसका लाजवाब फिल्मांकन, स्पेशल इफेक्ट्स, युद्ध के बेहतरीन दृष्य, और जानदार संवाद. पहली बार किसी हिंदी फिल्म को देखकर आपको लगेगा कि आप हॉलीवुड में बना कोई पीरियड ड्रामा देख रहे हैं. वैसे भी यह फ़िल्म 2-3 अंग्रेज़ी फिल्मों से प्रभावित है.

अदाकारी के लिहाज से कंगना सबपर भारी हैं, वहीं शाहिद और सैफ की जितनी तारीफ की जाए कम है. तारीफ के पूरे हकदार तो फिल्म के डायरेक्टर विशाल भरद्वाज भी हैं. हालांकि फिल्म में कई नादान सी गलतियां हैं, फिर भी बीटीडीडी फिल्म रिव्यू फॉर्मूले पर फिल्म की तमाम अच्छाइयों और कमियों परखने के बाद हम रंगून को पांच में साढ़े तीन स्टार देते हैं. जिसमें एक स्टार सिर्फ फिल्म की भव्यता और सिनेमेटोग्राफी के लिए है.

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