कोई गायक बनना चाहता था, तो कोई खिलाड़ी। परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के चलते पà¥à¤²à¤¿à¤¸ अफसर और पà¥à¤°à¥‹à¤«à¥‡à¤¸à¤° बनने की तमनà¥à¤¨à¤¾ à¤à¥€ अधूरी रह गई, लेकिन इन पिताओं ने अपने सपने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ में रोप दिà¤à¥¤ इनका संकलà¥à¤ª और बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की मेहनत रंग लाई। आज फादरà¥à¤¸ डे के मौके पर कà¥à¤› à¤à¤¸à¥‡ ही पिताओं की कहानी...
सिपाही ने बेटी को आईपीà¤à¤¸ बनाया
मोनिका à¤à¤¾à¤°à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤œ दिलà¥à¤²à¥€ पà¥à¤²à¤¿à¤¸ में बतौर डीसीपी के तौर पर तैनात हैं। वहीं, उनके पिता देवी दतà¥à¤¤ à¤à¤¾à¤°à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤œ दिलà¥à¤²à¥€ पà¥à¤²à¤¿à¤¸ की थरà¥à¤¡ बटालियन में इंसà¥à¤ªà¥‡à¤•à¥à¤Ÿà¤° हैं। हरियाणा निवासी देवी दतà¥à¤¤ बताते हैं वे दिलà¥à¤²à¥€ पà¥à¤²à¤¿à¤¸ में सिपाही के तौर पर à¤à¤°à¥à¤¤à¥€ हà¥à¤ थे। शादी के बाद तीन बेटियां और दो बेटे का परिवार जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ बन गया। उस दौरान अफसरों को देख बहà¥à¤¤ आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ हà¥à¤†à¥¤ तà¤à¥€ मन ही मन ठान लिया कि बेटियों को अधिकारी जरूर बनाऊंगा। जब मोनिका यूपीà¤à¤¸à¤¸à¥€ में चयनित हà¥à¤ˆ तो छोटी बेटी इंदू à¤à¤¾à¤°à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤œ को à¤à¥€ पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ किया। आज वह à¤à¥€ à¤à¤•à¥à¤¸à¤¾à¤‡à¤œ विà¤à¤¾à¤— में अधिकारी है। मेरी सबसे छोटी बेटी à¤à¥€ रेल मंतà¥à¤°à¤¾à¤²à¤¯ में अचà¥à¤›à¥‡ पद पर है। मोनिका कहती हैं कि पापा ने मेरे लिठहिमालय का रोल निà¤à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤ आज à¤à¥€ वह दिन याद है जब पापा अपनी 7000 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ की तनखà¥à¤µà¤¾à¤¹ में से 3000 मà¥à¤à¥‡ पà¥à¤¾à¤ˆ के लिठदे देते थे।
दिवà¥à¤¯à¤¾à¤‚ग बेटी जेà¤à¤¨à¤¯à¥‚ की पà¥à¤°à¥‹à¤«à¥‡à¤¸à¤° बनी
जेà¤à¤¨à¤¯à¥‚ में अमेरिकन साहितà¥à¤¯ की पà¥à¤°à¥‹à¤«à¥‡à¤¸à¤° नवनीत सेठी पैदाइशी दिवà¥à¤¯à¤¾à¤‚ग हैं। वह 52 साल की हैं और उनके पिता केसर सिंह सेठी 83 साल के। वे कहती हैं कि हमारे समाज में सामानà¥à¤¯ बेटियों के लिठà¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ सपना देख पाना मà¥à¤¶à¥à¤•à¤¿à¤² होता है जो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शारीरिक रूप से अकà¥à¤·à¤® बेटी के लिठदेखा। पापा इंडियन ऑयल कॉरà¥à¤ªà¥‹à¤°à¥‡à¤¶à¤¨ से कई साल पहले रिटायर हो गठथे लेकिन मेरी खातिर वह आज à¤à¥€ जॉब पर हैं। मà¥à¤à¥‡ याद है à¤à¤• बार 1983 में मैं पापा के साथ हवाई जहाज से मà¥à¤‚बई से लौट रही थी। दिलà¥à¤²à¥€ à¤à¤¯à¤°à¤ªà¥‹à¤°à¥à¤Ÿ में वà¥à¤¹à¥€à¤²à¤šà¥‡à¤¯à¤° नहीं मिली। कई बार कहने पर à¤à¥€ वà¥à¤¹à¥€à¤²à¤šà¥‡à¤¯à¤° नहीं आई तो पापा हवाई जहाज के गेट पर अड़कर खड़े हो गà¤à¥¤ कहा कि जब तक मेरी बेटी के लिठवà¥à¤¹à¥€à¤²à¤šà¥‡à¤¯à¤° नहीं आती, मैं किसी को नहीं निकलने दूंगा। आखिर में वà¥à¤¹à¥€à¤²à¤šà¥‡à¤¯à¤° आने पर ही वह गेट से हटे। तब मेरी आंखों से आंसू निकल आठथे।
पिता के कारण ही खेल पाया विशà¥à¤µà¤•à¤ª
गांव के छोटे से मैदान से विशà¥à¤µà¤•à¤ª खेलने का सपना मेरे पिता ने ही मà¥à¤à¥‡ दिखाया था। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हर मà¥à¤¶à¥à¤•à¤¿à¤² में मेरा साथ दिया। यह कहना है à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ कबडà¥à¤¡à¥€ टीम के पूरà¥à¤µ कपà¥à¤¤à¤¾à¤¨ राकेश कà¥à¤®à¤¾à¤° का। राकेश ने बताया कि 2004 में पहले विशà¥à¤µà¤•à¤ª से कà¥à¤› दिन पहले ही उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ चोट लग गई थी। तब लगा था कि करियर आगे नहीं बॠनहीं पाà¤à¤—ा, लेकिन पिता होशियार सिंह लगातार समà¤à¤¾à¤¤à¥‡ रहे और फिटनेस पर काम करने के लिठकहा। इसी का नतीजा था कि मैं विशà¥à¤µà¤•à¤ª खेल पाया। राकेश दिलà¥à¤²à¥€ में निजामपà¥à¤° गांव से तालà¥à¤²à¥à¤• रखते हैं। राकेश ने बताया कि उनके पिता à¤à¥€ बचपन में कबडà¥à¤¡à¥€ खेलते थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कबडà¥à¤¡à¥€ की बारीकियां पिता से ही सीखीं। राकेश ने कहा कि पिता यही सीख देते हैं कि बेहतर इंसान बनो, विवाद में मत पड़ो और जिस खेल से पहचान मिली है उसके पà¥à¤°à¤¤à¤¿ हमेशा ईमानदार रहो।
पिता का बैंड था, बेटा मà¥à¤¯à¥‚जिक डायरेकà¥à¤Ÿà¤°
पारà¥à¤¶à¥à¤µ गायक और मà¥à¤¯à¥‚जिक डायरेकà¥à¤Ÿà¤° अंकित तिवारी का नाम आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है। आशिकी-2 फिलà¥à¤® के लिठफिलà¥à¤® फेयर पà¥à¤°à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤° जीतने वाले अंकित तिवारी का कानà¥à¤ªà¤° की गलियों से दिलà¥à¤²à¥€ और फिर मà¥à¤‚बई तक का सफर बेहद कठिन रहा। अंकित कहते हैं कि उनकी सफलता के पीछे पिता आर के तिवारी का बहà¥à¤¤ बड़ा योगदान रहा है। उनके पिता à¤à¥€ मà¥à¤¯à¥‚जिशियन हैं। छोटे शहर में लोग अपने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को डॉकà¥à¤Ÿà¤° या इंजीनियर बनाने का सपना संजोते हैं, लेकिन अंकित के पिता ने बेटे को संगीत सीखने और उसमें बेहतर करने के लिठपà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ किया। अंकित ने कहा कि शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ में पता नहीं संगीत की दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में मेरा कà¥à¤¯à¤¾ होगा, लेकिन पिता की हौसला अफजाई की वजह से आज मैं इस मà¥à¤•à¤¾à¤® पर खड़ा हूं। पिता की शिकà¥à¤·à¤¾ की बदौलत ही वह बेहतर मà¥à¤¯à¥‚जिक डायरेकà¥à¤Ÿà¤° बन पाà¤à¥¤
बेटे को डॉकà¥à¤Ÿà¤° बना सपना पूरा किया
वेदपà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ बजाज गाजियाबाद के मà¥à¤°à¤¾à¤¦à¤¨à¤—र के à¤à¤• छोटे से गांव में पले-बà¥à¥‡à¥¤ उनका सपना डॉकà¥à¤Ÿà¤° बनकर देश की सेवा करना था। गांव में उचित सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं और मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ के अà¤à¤¾à¤µ में वे खà¥à¤¦ तो डॉकà¥à¤Ÿà¤° तो नहीं बन सके, लेकिन उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बेटे अनà¥à¤°à¤¾à¤— बजाज को डॉकà¥à¤Ÿà¤° बना अपना सपना पूरा किया। वेदपà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ बताते हैं कि वे 12वीं में पांच किलोमीटर पैदल चलकर सà¥à¤•à¥‚ल जाते थे। 12वीं के बाद मेडिकल की परीकà¥à¤·à¤¾ देना चाहते थे, लेकिन उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यह जानकारी नहीं मिल पाई कि इसके लिठआवेदन कब और कैसे करना होगा। बाद में अनà¥à¤°à¤¾à¤— बड़ा हà¥à¤† तो वह इंजीनियर बनना चाहता था, लेकिन मां ने जब पिता के डॉकà¥à¤Ÿà¤° बनने के सपने के बारे में बताया तो इरादा बदल दिया। अनà¥à¤°à¤¾à¤— ने दिलà¥à¤²à¥€ से à¤à¤®à¤¬à¥€à¤¬à¥€à¤à¤¸ की और फिर अमेरिका चले गà¤à¥¤ फिलहाल अनà¥à¤°à¤¾à¤— पेनसà¥à¤²à¤µà¤¾à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में बतौर डॉकà¥à¤Ÿà¤° काम कर रहे हैं।