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जय माँ पीताम्बरा माई क़ी

कांचनपीठ निविष्ठाम सादर मुनिवरवर्णित प्रभावाम। करुणापूरित नयनाम श्रीबगलाम पीतांबराम वंदे।। मां पीतांबरा अर्थात बगलामुखी का स्वरूप ऐसा ही बताया गया है जिनके नेत्र करुणा से भरे हुए हैं । वे अपने भक्तों और साधकों की शत्रुओं से रक्षा कर उसे हर तरह से संपन्न बनाती हैं इसीलिए माई को राज राजेश्वरी भी कहा गया है। जिस तरह हर देवी देवता को कुछ खास द्रव्य और रंग पसंद होते हैं उसी तरह माई को पीला रंग पसंद है। उनकी पूजा,साधना और उपासना में पीले वस्त्रों, द्रव्यों का विशेष महत्व है।

यहां हैं माई के दरबारमध्यप्रदेश में पीतांबरा या बगलामुखी माई के दरबार दतिया,नलखेड़ा,छतरपुर,जबलपुर,सागर और हटा में हैं इनमें दतिया स्थित श्रीपीतांबरा पीठ स्थित बगलामुखी मंदिर को विशेष सिद्ध पीठों का दर्जा प्राप्त है। इसका कारण यह है कि दतिया में वनखंडी आश्रम में ब्रह्मलीन हो चुके राष्ट्रगुरु अनंत विभूषित श्रीस्वामीजी महाराज ने माई की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कराई थी जबकि नलखेड़ा का बगलामुखी मंदिर महाभारत कालीन माना जाता है और यहां माई की प्रतिमा स्वयंभू मानी जाती है। छतरपुर में श्रीस्वामीजी महाराज के शिष्य शिवनारायण खरे ने श्रीस्वामीजी महाराज के सूक्ष्म दैवीय मार्गदर्शन में मंदिर का निर्माण कराया।जबलपुर में सिविक सेंटर में ज्योतिष एवं द्वारका पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने बगलामुखी माई का मंदिर बनवाया।
पीला रंग पसंद है माई को पीतांबरा माई को पीला रंग पसंद है इसीलिए उनकी साधना में पीले रंग के वस्त्रों और द्रव्यों का विशेष महत्व है। माई की साधना पीत परिधानों में की जाती है। माई को अर्पित किए जाने वाले द्रव्य भी पीले रंग के ही होते हैं। विशेष प्रयोजन में हवन में पीली सरसों की आहुतियां दी जाती हैं और माई का जाप भी कुछ साधक हरिद्रा अर्थात पीली हल्दी की बनी माला से करते हैं। ज्यादातर साधक जाप के लिए कमलगटा से बनी माला का उपयोग करते हैं।
36 अक्षरों का मंत्र करता है चमत्कारमाई का मंत्र 36 अक्षरों का है जो नियम,संयम,श्रद्धा और विश्वास से जाप करने वाले साधक को मनोवांछित फल देता है। आचार्यों के अनुसार माई के मंत्र का सवा लाख जाप करने पर सिद्ध हो जाता है। पुरश्चरण सवा लाख का बताया गया है। आचार्यों के अनुसार माई शत्रुओं का नाश करती हैं इसका आशय है कि माई साधक को भौतिक, दैहिक और दैविक संताप देने वाले शत्रुओं से रक्षा करती हैं। माई का प्रकटन सौराष्ट्र के हरिद्रा सरोवर से हुआ था। भगवान विष्णु द्वारा किए गए आह्वान पर माई ने प्रकट होकर भयंकर वातक्षोभ से पृथ्वी की रक्षा की थी। भगवान विष्णु पीतांबरा माई के प्रथम उपासक माने जाते हैं।

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