जानिठकौन था दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ का पहला कांवडि़या
शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ का पवितà¥à¤° माह शà¥à¤°à¥‚ होते ही आपको हजारों शिवà¤à¤•à¥à¤¤ कांवडि़यों के रूप में सड़कों पर नजर आ जाà¤à¤‚गे। वो अपने कंधे पर कांवड़ लिठऔर उसके दोनों छोरों पर जल कलश बांधे à¤à¥‹à¤²à¥‡ बम का नारा लगाते हà¥à¤ à¤à¤•à¥à¤¤à¥€ में लीन दिखते हैं। उतà¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ में इस यातà¥à¤°à¤¾ को विशेष महतà¥à¤µ माना जाता है और चाहे वह महिला हो या बचà¥à¤šà¤¾ सà¤à¥€ इस यातà¥à¤°à¤¾ में नजर आ जाते हैं।à¤à¤¸à¤¾ माना जाता है कि यह यातà¥à¤°à¤¾ à¤à¤—वान शिव को पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ करने का सबसे सरल तरीका है। कांवड़ से जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚गों पर गंगाजल चढ़ाने से à¤à¥‹à¤²à¥‡à¤¨à¤¾à¤¥ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर आपकी हर मनोकामना को पूरा कर देते हैं। इसके पीछे की कथा इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° है कि जब समà¥à¤¦à¥à¤° मंथन के बाद 14 रतà¥à¤¨à¥‹à¤‚ में विष à¤à¥€ निकला, तो à¤à¤—वान शिव ने उस विष को पीकर सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रकà¥à¤·à¤¾ की। विष के पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ को कम करने के लिठà¤à¤—वान शिव ने दरांती चांद को अपने शीरà¥à¤· पर धारण कर लिया। उसी समय से ये मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि अगर गंगाजल को शिवलिंग पर चढ़ाने से विष का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ कम होता है जिससे à¤à¤—वान शिव पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होते हैं।इस बात का कई जगह उलà¥à¤²à¥‡à¤– मिलता है कि रावण à¤à¤—वान शिव का बहà¥à¤¤ बड़ा à¤à¤•à¥à¤¤ था और उसने कई बार à¤à¤—वान शिव को पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ कर वरदान पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किठथे। पहले कावडि़या के रूप में जल चढ़ाने वाला शखà¥à¤¸ रावण ही था। उस दौरान à¤à¤—वान राम ने à¤à¥€ कांवडि़ये का रूप धारण किया था और बैदà¥à¤¯à¤¨à¤¾à¤¥ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग पर गंगाजल को अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ किया था।माना जाता है कि कंधे पर कांवड़ रखकर शिव नाम लेते हà¥à¤¯à¥‡ चलने से काफी पà¥à¤£à¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤œà¤¨ होता है और हर पग के साथ à¤à¤• अशà¥à¤µà¤®à¥‡à¤˜ यजà¥à¤ž के समतà¥à¤²à¥à¤¯ फल की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। यह यातà¥à¤°à¤¾ मन को शांति पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ कर हमें जीवन की हर कठिन परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ का सामना करने की शकà¥à¤¤à¤¿ देती है।