नागराज तकà¥à¤·à¤• रहते हैं यहां
देश में 12 जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚गों में से à¤à¤• उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ के राजा महाकाल का मंदिर कई विशेषताओं के कारण देश-दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में खà¥à¤¯à¤¾à¤¤ है। à¤à¤• मातà¥à¤° दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤®à¥à¤–ी मंदिर होने के कारण यह तंतà¥à¤°-मंतà¥à¤° साधना के लिठजहां पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है, वहीं इस मंदिर की à¤à¤• और विशेषता है। वह है मंदिर के ऊपर तीसरी मंजिल पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ नामचंदà¥à¤°à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° का मंदिर, जिसे साल में सिरà¥à¤« à¤à¤• बार नाग पंचमी के दिन खोला जाता है।मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि नागराज तकà¥à¤·à¤• सà¥à¤µà¤¯à¤‚ मंदिर में रहते हैं। à¤à¤—वान à¤à¥‹à¤²à¥‡à¤¨à¤¾à¤¥ की कठोर तपसà¥à¤¯à¤¾ कर अमरतà¥à¤µ का वरदान पाने के बाद तकà¥à¤·à¤• ने महाकाल के सानिधà¥à¤¯ में रहने का वर मांगा था। हालांकि, वह चाहते थे कि उनका à¤à¤•à¤¾à¤‚त à¤à¤‚ग नहीं हो, इसलिठउनके मंदिर के पट साल में à¤à¤• बार ही खोले जाते हैं। नागचंदà¥à¤°à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° मंदिर की पूजा और वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ महानिरà¥à¤µà¤¾à¤£à¥€ अखाड़े के संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ करते हैं। नागचंदà¥à¤°à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° के दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठ26 जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ की रात 12 बजे मंदिर के पट खà¥à¤²à¥‡à¤‚गे, जो पूरी नागपंचमी के दिन और रात 12 बजे तक खà¥à¤²à¥‡ रहेंगे।नागचंदà¥à¤°à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° मंदिर में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ के बारे में कहा जाता है कि यह 11वीं में नेपाल से लाई गई थी। इसमें फन फैलाठशेषनाग के आसन पर शिव-पारà¥à¤µà¤¤à¥€ और गजानन बैठे हैं, जबकि दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤à¤° में हर कहीं शेषनाग पर विषà¥à¤£à¥ à¤à¤—वान को ही लेटे हà¥à¤ दिखाया गया है। दशमà¥à¤–ी सरà¥à¤ª शयà¥à¤¯à¤¾ पर बैठे à¤à¥‹à¤²à¥‡à¤¨à¤¾à¤¥ के गले और हाथ में सांप लिपटे हà¥à¤ हैं। à¤à¤—वान शिव के गले में लिपटे नाग का नाम वासà¥à¤•à¥€ है, जिनसे आगे कई नागवंश आरंठहà¥à¤ˆà¥¤ वासà¥à¤•à¥€ नाग को शेषनाग के बाद नागों का दूसरा राजा माना जाता है। इनके बाद तकà¥à¤·à¤• तथा पिंगला हà¥à¤à¥¤ तकà¥à¤·à¤• ने ही पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ नगर तकà¥à¤·à¤•à¤¶à¤¿à¤²à¤¾ (तकà¥à¤·à¤¶à¤¿à¤²à¤¾) की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की थी।सरà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤œ तकà¥à¤·à¤• ने à¤à¥‹à¤²à¥‡à¤¨à¤¾à¤¥ को पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ करने के लिठघोर तपसà¥à¤¯à¤¾ की थी और अमरतà¥à¤µ का वरदान हासिल किया था। कहा जाता है कि उसके बाद से तकà¥à¤·à¤• ने पà¥à¤°à¤à¥ के सानà¥à¤¨à¤¿à¤§à¥à¤¯ में ही रहना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया।इस मंदिर में दरà¥à¤¶à¤¨ करने के बाद वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ हर तरह के सरà¥à¤ªà¤¦à¥‹à¤· से मà¥à¤•à¥à¤¤ हो जाता है। इसीलिठनागपंचमी के दिन खà¥à¤²à¤¨à¥‡ वाले इस मंदिर के बाहर à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ की लंबी कतार लगी रहती है। कालसरà¥à¤ª दोष, सांप के काटने का à¤à¤¯ आदि यहां दरà¥à¤¶à¤¨ करने के बाद नहीं रहता। नागपूजन करते समय इन 12 पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ नागों के नाम लिठजाते हैं – धृतराषà¥à¤Ÿà¤¡à¥à¤¢, करà¥à¤•à¥‹à¤Ÿà¤•, अशà¥à¤µà¤¤à¤°, शंखपाल, पदà¥à¤®, कंबल, अनंत, शेष, वासà¥à¤•à¤¿, पिंगला, तकà¥à¤·à¤• और कालिया। इसके साथ ही इन नागों को अपने परिवार की रकà¥à¤·à¤¾ हेतॠपà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की जाती है।कहते हैं कि शेषनाग के सहसà¥à¤° फनों पर पृथà¥à¤µà¥€ टिकी है। à¤à¤—वान विषà¥à¤£à¥ कà¥à¤·à¥€à¤°à¤¸à¤¾à¤—र में शेषनाग की शयà¥à¤¯à¤¾ पर सोते हैं। शिवजी के गले में सरà¥à¤ªà¥‹à¤‚ के हार हैं। कृषà¥à¤£-जनà¥à¤® पर नाग की सहायता से ही वसà¥à¤¦à¥‡à¤µà¤œà¥€ ने यमà¥à¤¨à¤¾ पार की थी। जनमेजय ने पिता परीकà¥à¤·à¤¿à¤¤ की मृतà¥à¤¯à¥ का बदला लेने के लिठसरà¥à¤ªà¥‹à¤‚ का नाश करने वाले सरà¥à¤ªà¤¯à¤œà¥à¤ž का आरंठकिया था, लेकिन आसà¥à¤¤à¤¿à¤• मà¥à¤¨à¤¿ के कहने पर शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ पंचमी (नाग पंचमी) को यजà¥à¤ž को बंद किया था। समà¥à¤¦à¥à¤°-मंथन के समय वासà¥à¤•à¤¿ नाग ने देवताओं की à¤à¥€ मदद थी। इसलिठनागपंचमी नाग देवता के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ कृतजà¥à¤žà¤¤à¤¾ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करने का दिन है।