शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ को उतà¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ में रंकà¥à¤·à¤¾à¤¬à¤‚धन के तौर पर मनाया जाता है। इसे à¤à¤¾à¤ˆ-बहन के पà¥à¤°à¥‡à¤® और सदà¥à¤à¤¾à¤µ के तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° के रूप में मनाया जाता है। हालांकि शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ के दिन और à¤à¥€ कई उतà¥à¤¸à¤µ मनाठजाते हैं, फिर à¤à¥€ यह मà¥à¤–à¥à¤¯ रूप से रकà¥à¤·à¤¾à¤¬à¤‚धन के रूप से ही मनाई जाती है। यह परà¥à¤µ १५ अगसà¥à¤¤ को मनाया जायेगा .बाजारों में राखी की दà¥à¤•à¤¾à¤¨à¥‡à¤‚ सजीं हैं और खूब खरीददारी हो रही है .
अपने à¤à¤¾à¤ˆ की कलाई पर राखी बांधने के लिये हर बहन रकà¥à¤·à¤¾ बंधन के दिन का इंतजार करती है। आज हम इसे à¤à¤¾à¤ˆ-बहन के पà¥à¤°à¥‡à¤® के पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• के रूप में मनाते हैं, लेकिन इसका पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठइस रूप में नहीं हà¥à¤† था। इसकी शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ के बारे में देखें तो यह à¤à¤¾à¤ˆ-बहन का तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° नहीं बलà¥à¤•à¤¿ विजय पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के किया गया रकà¥à¤·à¤¾ बंधन है।
à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤£ की कथा के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° - बहà¥à¤¤ समय पहले की बाद है देवताओं और असà¥à¤°à¥‹à¤‚ में यà¥à¤¦à¥à¤§ छिड़ा हà¥à¤† था लगातार 12 साल तक यà¥à¤¦à¥à¤§ चलता रहा और अंतत: असà¥à¤°à¥‹à¤‚ ने देवताओं पर विजय पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर देवराज इंदà¥à¤° के सिंहासन सहित तीनों लोकों को जीत लिया। इसके बाद इंदà¥à¤° देवताओं के गà¥à¤°à¥, गà¥à¤°à¤¹ बृहसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ के पास गये और सलाह मांगी। बृहसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ ने इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मंतà¥à¤°à¥‹à¤šà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ के साथ रकà¥à¤·à¤¾ विधान करने को कहा।
शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ मास की पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ के दिन गà¥à¤°à¥ बृहसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ ने रकà¥à¤·à¤¾ विधान संसà¥à¤•à¤¾à¤° आरंठकिया। इस रकà¥à¤·à¤¾ विधान के दौरान मंतà¥à¤°à¥‹à¤šà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ से रकà¥à¤·à¤¾ पोटली को मजबूत किया गया। पूजा के बाद इस पोटली को देवराज इंदà¥à¤° की पतà¥à¤¨à¥€ शचि जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ इंदà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ à¤à¥€ कहा जाता है ने इस रकà¥à¤·à¤¾ पोटली के देवराज इंदà¥à¤° के दाहिने हाथ पर बांधा। इसकी ताकत से ही देवराज इंदà¥à¤° असà¥à¤°à¥‹à¤‚ को हराने और अपना खोया राजà¥à¤¯ वापस पाने में कामयाब हà¥à¤à¥¤
वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में यह तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° बहन-à¤à¤¾à¤ˆ के पà¥à¤¯à¤¾à¤° का परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ बन चà¥à¤•à¤¾ है, कहा जा सकता है कि यह à¤à¤¾à¤ˆ-बहन के पवितà¥à¤° रिशà¥à¤¤à¥‡ को और गहरा करने वाला परà¥à¤µ है। à¤à¤• ओर जहां à¤à¤¾à¤ˆ-बहन के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अपने दायितà¥à¤µ निà¤à¤¾à¤¨à¥‡ का वचन बहन को देता है, तो दूसरी ओर बहन à¤à¥€ à¤à¤¾à¤ˆ की लंबी उमà¥à¤° के लिठउपवास रखती है।
इस दिन à¤à¤¾à¤ˆ की कलाई पर जो राखी बहन बांधती है वह सिरà¥à¤« रेशम की डोर या धागा मातà¥à¤° नहीं होती बलà¥à¤•à¤¿ वह बहन-à¤à¤¾à¤ˆ के अटूट और पवितà¥à¤° पà¥à¤°à¥‡à¤® का बंधन और रकà¥à¤·à¤¾ पोटली जैसी शकà¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ उस साधारण से नजर आने वाले धागे में निहित होती है।रकà¥à¤·à¤¾à¤¬à¤‚धन का तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° हर साल शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ के दिन मनाया जाता है। इसके पहली वाली पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ गà¥à¤°à¥-पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ थी, जो गà¥à¤°à¥ और शिकà¥à¤·à¤•à¥‹à¤‚ को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ थी। उसके पहले बà¥à¤¦à¥à¤§ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ और उसके à¤à¥€ पहले चैतà¥à¤°-पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ थी। तो इस पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ को शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£-पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ कहते हैं, रकà¥à¤·à¤¾-बंधन का यह तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° à¤à¤¾à¤ˆ-बहन के पà¥à¤°à¥‡à¤® और करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ के समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ है।
रकà¥à¤·à¤¾à¤¬à¤‚धन पर बहन अपने à¤à¤¾à¤ˆ को राखी बांधती हैं। à¤à¤¾à¤ˆ अपनी बहन को सदैव साथ निà¤à¤¾à¤¨à¥‡ और उसकी रकà¥à¤·à¤¾ के लिठआशà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤ करता है। यह परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ हमारे à¤à¤¾à¤°à¤¤ में काफी पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ है, और ये शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ का बहà¥à¤¤ बड़ा तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° है। आज ही के दिन यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤ बदला जाता है।
रकà¥à¤·à¤¾à¤¬à¤‚धन अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ संरकà¥à¤·à¤£ का à¤à¤• अनूठा रिशà¥à¤¤à¤¾, जिसमें बहनें अपने à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ को राखी का धागा बांधती है, लेकिन मितà¥à¤°à¤¤à¤¾ की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से à¤à¥€ यह धागा बांधा जाता है, जिसे हम दोसà¥à¤¤à¥€ का धागा à¤à¥€ कहते हैं। यह नाम तो अंगà¥à¤°à¥‡à¥›à¥€ में अà¤à¥€ रखा गया है, लेकिन रकà¥à¤·à¤¾ बंधन तो पहले से ही था, यह रकà¥à¤·à¤¾ का à¤à¤• रिशà¥à¤¤à¤¾ है।
इसलिà¤, रकà¥à¤·à¤¾ बंधन à¤à¤¸à¤¾ तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° है, जब सà¤à¥€ बहनें अपने à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ के घर जाती हैं,और अपने à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ को राखी बांधती हैं, और कहती हैं 'मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ रकà¥à¤·à¤¾ करूंगी और तà¥à¤® मेरी रकà¥à¤·à¤¾ करो"। और ये कोई ज़रूरी नहीं है, कि वे उनके अपने सगे à¤à¤¾à¤ˆ ही हों, वह अनà¥à¤¯ किसी को à¤à¥€ राखी बांधकर बहन का रिशà¥à¤¤à¤¾ निà¤à¤¾à¤¤à¥€ हैं। तो ये पà¥à¤°à¤¥à¤¾ इस देश में काफी पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ है, और ये शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ का बहà¥à¤¤ बड़ा तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° है।
आज ही के दिन यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤ बदला जाता है।
रकà¥à¤·à¤¾à¤¬à¤‚धन पर राखी बांधने की हमारी सदियों पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ परंपरा रही है। पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ किसी न किसी उतà¥à¤¸à¤µ के लिठसमरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ है। सबसे महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ है कि आप जीवन का उतà¥à¤¸à¤µ मनाये। सà¤à¥€ à¤à¤¾à¤ˆà¤¯à¥‹à¤‚ और बहनों को à¤à¤• दूसरे के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¥‡à¤® और करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ का पालन और रकà¥à¤·à¤¾ का दायितà¥à¤µ लेते हà¥à¤ ढेर सारी शà¥à¤à¤•à¤¾à¤®à¤¨à¤¾ के साथ रकà¥à¤·à¤¾à¤¬à¤‚धन का तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° मनाना चाहिà¤à¥¤
रकà¥à¤·à¤¾ बंधन का इतिहास
राखी से कई कहानियां जà¥à¥œà¥€ हैं। कई लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯ कथाओं में कà¥à¤› चà¥à¤¨à¤¿à¤‚दा इस तरह है:
पौराणिक गà¥à¤°à¤‚थ महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ के मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• à¤à¤• बार à¤à¤—वान कृषà¥à¤£, पांडवों के साथ पतंग उड़ा रहे थे। उस समय धागे की वजह से उनकी अंगà¥à¤²à¥€ कट गई। तब दà¥à¤°à¥‹à¤ªà¤¦à¥€ ने बहते खून को रोकने के लिठअपनी साड़ी का कपड़ा फाड़कर उनकी अंगà¥à¤²à¥€ पर बांधा था। à¤à¤—वान कृषà¥à¤£ दà¥à¤°à¥‹à¤ªà¤¦à¥€ के इस पà¥à¤°à¥‡à¤® से à¤à¤¾à¤µà¥à¤• हो गठऔर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आजीवन सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ का वचन दिया। यह माना जाता है कि चीर हरण के वकà¥à¤¤ जब कौरव राजसà¤à¤¾ में दà¥à¤°à¥‹à¤ªà¤¦à¥€ की साड़ी उतार रहे थे, तब कृषà¥à¤£ ने उस छोटे से कपड़े को इतना बड़ा बना दिया था कि कौरव उसे खोल नहीं पाà¤à¥¤
à¤à¤¾à¤ˆ और बहन के पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• रकà¥à¤·à¤¾ बंधन से जà¥à¥œà¥€ à¤à¤• अनà¥à¤¯ रोचक कहानी है, मृतà¥à¤¯à¥ के देवता à¤à¤—वान यम और यमà¥à¤¨à¤¾ नदी की। पौराणिक कथाओं के मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤• यमà¥à¤¨à¤¾ ने à¤à¤• बार à¤à¤—वान यम की कलाई पर धागा बांधा था। वह बहन के तौर पर à¤à¤¾à¤ˆ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अपने पà¥à¤°à¥‡à¤® का इजहार करना चाहती थी। à¤à¤—वान यम इस बात से इतने पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ हà¥à¤ कि यमà¥à¤¨à¤¾ की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ का वचन देने के साथ ही उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अमरता का वरदान à¤à¥€ दे दिया। साथ ही उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यह à¤à¥€ वचन दिया कि जो à¤à¤¾à¤ˆ अपनी बहन की मदद करेगा, उसे वह लंबी आयॠका वरदान देंगे।
यह à¤à¥€ माना जाता है कि à¤à¤—वान गणेश के बेटे शà¥à¤ और लाठà¤à¤• बहन चाहते थे। तब à¤à¤—वान गणेश ने यजà¥à¤ž वेदी से संतोषी मां का आहà¥à¤µà¤¾à¤¨ किया। रकà¥à¤·à¤¾ बंधन को शà¥à¤, लाठऔर संतोषी मां के दिवà¥à¤¯ रिशà¥à¤¤à¥‡ की याद में à¤à¥€ मनाया जाता है।
कजरी पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾
शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ के दिन ही कजरी पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ का परà¥à¤µ मनाया जाता है। यह परà¥à¤µ विशेषत: मधà¥à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶, छतà¥à¤¤à¥€à¤¸à¤—ॠऔर उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में कà¥à¤› जगहों में मनाया जाता है। शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ अमावसà¥à¤¯à¤¾ के नौंवे दिन से इस उतà¥à¤¸à¤µ तैयारियां आरंठहो जाती हैं। कजरी नवमी के दिन महिलाà¤à¤‚ पेड़ के पतà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ में मिटà¥à¤Ÿà¥€ à¤à¤°à¤•à¤° लाती हैं जिसमें जौ बोया जाता है।
कजरी पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ के दिन महिलाà¤à¤‚ इन जौ पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ को सिर पर रखकर पास के किसी तालाब या नदी में विसरà¥à¤œà¤¿à¤¤ करने के लिठले जाती हैं। इस नवमी की पूजा करके सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ कजरी बोती है। गीत गाती है तथा कथा कहती है। महिलाà¤à¤‚ इस दिन वà¥à¤°à¤¤ रखकर अपने पà¥à¤¤à¥à¤° की लंबी आयॠऔर उसके सà¥à¤– की कामना करती हैं।
शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¥€ उपाकरà¥à¤®
इसके अतिरिकà¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤®à¤£à¥‹à¤‚, गà¥à¤°à¥à¤“ं और परिवार में छोटी लड़कियों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ संबंधियों को जैसे पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पिता को à¤à¥€ रकà¥à¤·à¤¾à¤¸à¥‚तà¥à¤° या राखी बांधी जाती है। इस दिन यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦à¥€ दà¥à¤µà¤¿à¤œà¥‹à¤‚ का उपकरà¥à¤® होता है, उतà¥à¤¸à¤°à¥à¤œà¤¨, सà¥à¤¨à¤¾à¤¨-विधि, तरà¥à¤ªà¤£à¤¾à¤¦à¤¿ करके नवीन यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤ धारण किया जाता है. वृतà¥à¤¤à¤¿à¤µà¤¾à¤¨ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ अपने यजमानों को यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤ तथा राखी देकर दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ लेते हैं।
शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¥€ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ पर अमरनाथ यातà¥à¤°à¤¾ का समापन
पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° गà¥à¤°à¥ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ के पावन अवसर पर शà¥à¤°à¥€ अमरनाथ की पवितà¥à¤° छडी यातà¥à¤°à¤¾ का शà¥à¤à¤¾à¤°à¤‚ठहोता है और यह यातà¥à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ को संपनà¥à¤¨à¤¾ होती है। कांवडियों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ के दिन ही शिवलिंग पर जल चà¥à¤¾à¤¯à¤¾ जाता है और उनकी कांवड़ यातà¥à¤°à¤¾ संपनà¥à¤¨à¤¾ होती है।
शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ के दिन रकà¥à¤·à¤¾ बंधन कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ मनाया जाता है, कà¤à¥€ सोचा है ?
शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¥€ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ के दिन ही रकà¥à¤·à¤¾ बंधन का पवितà¥à¤° तà¥à¤¯à¥Œà¤¹à¤¾à¤° मनाया जाता है। इस दिन शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ शà¥à¤•à¥à¤² पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ का आरमà¥à¤ à¤à¥€ होता है। सावन महीने की पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ का दिन शà¥à¤ व पवितà¥à¤° माना जाता है। सावन पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ की तिथि धारà¥à¤®à¤¿à¤• दृषà¥à¤Ÿà¤¿ के साथ ही साथ वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤• रूप से à¤à¥€ बहà¥à¤¤ ही महतà¥à¤µ रखती है। सावन माह à¤à¤—वान शिव की पूजा का महीना माना जाता है।
सावन में हर दिन à¤à¤—वान शिव की विशेष पूजा करने का विधान है। इस माह की पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ तिथि इस मास का अंतिम दिन माना जाता है। अत: इस दिन शिव पूजा व जल अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• से पूरे माह की शिव à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ का पà¥à¤£à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है।
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