उप चुनाव के बीच किसान सरकार से नाराज, किसान संघ ने कहा...
मध्य प्रदेश में जैसे-जैसे विधानसभा उपचुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे राजनीतिक दलों की चिंताएं भी बढ़ती जा रही हैं। पहले ही भाजपा में टिकट वितरण को लेकर कार्यकर्ताओं का विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा था और अब किसान संघ ने चेतावनी दी है कि जब सरकार ने हमारी मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया तो किसान भी अब सरकार की बात नहीं सुनेंगे।किसान संघ की प्रमुख मांगों में सोयाबीन का एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) 6000 रुपये करना, मक्का की एमएसपी पर खरीदी, और एमएसपी गारंटी कानून लागू करने की लंबे समय से चली आ रही मांगें शामिल हैं। इसके बावजूद, सरकार ने किसानों की मांगों पर कोई नीतिगत निर्णय नहीं लिया है, जिससे किसान सरकार के खिलाफ संगठित होते दिख रहे हैं। बुधवार को किसान संघ ने सोशल मीडिया पर चेतावनी दी कि क्षेत्र के किसान गांव-गांव में बैनर-पोस्टर लगाकर विधानसभा उपचुनाव का बहिष्कार करेंगे। इसलिए राजनीतिक दलों से अपील की गई है कि वे किसानों से वोट मांगने का प्रयास न करें।गौरतलब है कि प्रदेश किसान संगठन के आह्वान पर 23 सितंबर को नगर में 2500 से अधिक ट्रैक्टरों की ऐतिहासिक रैली निकाली गई थी। इसमें सरकार से सोयाबीन का एमएसपी 6000 रुपये, मक्का का एमएसपी 2500 रुपये, धान की खरीदी 3100 रुपये एमएसपी पर करने और एमएसपी गारंटी कानून लागू करने की मांग की गई थी। इसके बाद भी सरकार ने किसानों के आंदोलन को नजरअंदाज कर दिया। किसान संघ ने शांतिपूर्वक मशाल रैली निकालकर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया, लेकिन उसका भी कोई परिणाम नहीं निकला। अब किसान संघ ने सरकार को खुली चेतावनी दी है कि बार-बार आंदोलन करने के बाद भी जब सरकार ने ध्यान नहीं दिया, तो अब किसान भी सरकार की बात नहीं सुनेंगे। इस वजह से बुधवार को किसान संघ ने सोशल मीडिया के माध्यम से सभी किसानों से अपील की है कि वे अपने-अपने गांव में फ्लैक्स लगाकर विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करें।
किसानों की चेतावनी, सुनवाई नहीं तो वोट नहीं
इंदौर-बुधनी रेलवे लाइन के लिए भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों ने आवेदन देने के बावजूद चार गुना मुआवजा न मिलने पर भी चुनाव का बहिष्कार करने का फैसला किया है। इस फैसले से प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों में चिंता बढ़ गई है। यदि किसानों के इस निर्णय पर अमल होता है, तो इस बार विधानसभा चुनाव काफी दिलचस्प हो सकता है। किसानों के इस कदम से किस राजनीतिक दल को कितना नुकसान होगा, यह 23 नवंबर को चुनाव परिणामों के दौरान ही पता चलेगा।
अक्तूबर महीने में रुक-रुककर हुई तेज बारिश ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। किसानों की लागत भी नहीं निकल सकी। ऐसी स्थिति के बावजूद प्रशासन ने बर्बाद फसलों का सर्वे शुरू नहीं किया है, जिससे किसानों में आक्रोश पनप रहा है। किसानों का कहना है कि सरकार तानाशाह हो चुकी है और प्रशासनिक तंत्र भी उनकी सुध नहीं ले रहा है। किसान स्वराज संगठन के प्रदेश अध्यक्ष गजेन्द्र सिंह जाट ने बताया कि बर्बाद फसलों के सर्वे के लिए प्रशासन को आवेदन दिया जा चुका है, लेकिन उस पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। दूसरी ओर, प्रशासन उपचुनाव की तैयारियों का बहाना बना रहा है। ऐसी स्थिति में किसान के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। मंडी में भी किसानों को उनकी उपज का उचित दाम नहीं मिल पा रहा है, जिसका कारण बारिश से फसल का दाना खराब होना बताया जा रहा है।