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FIR दर्ज होने पर जिलाबदर का आदेश देना हाईकोर्ट ने माना अवैध, 50 हजार का दंड

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने बुधवार को बुरहानपुर से जुड़े एक मामले में बड़ा फैसला देते हुए केवल एफआईआर दर्ज होने के आधार पर जिलाबदर का आदेश पारित करने को अवैध करार दिया है। इसको लेकर की गई अपनी टिप्पणी में कोर्ट ने राज्य सुरक्षा अधिनियम 1990 के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए ऐसे अपराधों में दोष सिद्धि हुए बिना, इस तरह का आदेश पारित करना भी विधि के विरुद्ध बताया है। यही नहीं, इसको लेकर हाईकोर्ट ने बुरहानपुर के जिला मजिस्ट्रेट को फटकार लगाते हुए राज्य सरकार को याचिकाकर्ता को 50 हजार रुपए की क्षतिपूर्ति तक देने का भी आदेश जारी किया है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि राज्य सरकार यह 50 हजार रुपए की क्षतिपूर्ति की राशि संबंधित जिलाबदर का आदेश जारी करने वाले जिला मजिस्ट्रेट से वसूल सकती है।

बुरहानपुर जिले में अक्टूबर 2022 से लेकर अप्रैल 2023 तक बड़े पैमाने पर अवैध कटाई के आरोप लगाते हुए सरकार को इसकी जानकारी सामाजिक कार्यकर्ता और जागृत आदिवासी दलित संगठन के सदस्य अंतराम अवासे ने दी थी। हालांकि उनके खिलाफ जिला कलेक्टर ने 23 जनवरी 2024 को जिलाबदर का आदेश पारित कर दिया था। इस दौरान संगठन का आरोप था कि अवैध जंगल कटाई में शासन प्रशासन की मिलीभगत और मौन सहमति थी, जिस पर सैकड़ों आदिवासियों ने आंदोलन किया था। उससे चिढ़कर ही उनके संगठन के सदस्य अंतराम अवासे पर कई बेबुनियाद और झूठे आरोप लगाकर जिला कलेक्टर बुरहानपुर ने जिलाबदर का आदेश पारित किया था।

जिलाबदर बना अधिकारियों के लिए राजनीतिक औजार
संगठन सदस्यों ने बताया कि इसके खिलाफ की गई अपील में, संभाग आयुक्त इंदौर ने भी जिला कलेक्टर के आदेश को जारी रखा था। वहीं अब मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने दोनों ही अधिकारियों के आदेश को अनुचित व अवैध बताया है। कोर्ट ने कहा कि जिला मजिस्ट्रेट एवं संभाग आयुक्त ने बिना विवेक का उपयोग किए आदेश पारित किए हैं। इसके बाद इस आदेश को खारिज कर अंतराम अवासे को जिला बदर कर प्रताड़ित करने के लिए सरकार पर उल्टा 50 हज़ार का दंड लगाया गया है। उन्होंने बताया कि कोर्ट ने यह भी मौखिक टिप्पणी की है कि हम देख रहे हैं कि जिलाबदर अब अधिकारियों के लिए एक राजनीतिक औजार बन गया है। साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में लिखित निर्देश भी दिए हैं कि मुख्य सचिव कलेक्टरों की एक मीटिंग बुलाकर उन्हें राजनीतिक दबाव में आकर ऐसे आदेश पारित न करने को भी कहें।

जिला कलेक्टर ने किया अधिकारों का दुरुपयोग
न्यायालय ने कहा कि विधि के शिष्य होने के नाते हम जानते हैं कि सिर्फ एफ़आईआर के आधार पर कोई दोषी नहीं होता। बिना दोष सिद्ध किए अंतराम के खिलाफ जिलाबदर आदेश करने में जिला कलेक्टर ने अपने पद और उसके अधिकारों का दुरुपयोग किया है। संभाग आयुक्त इंदौर, एक वरिष्ठ अधिकारी होते हुए भी बुद्धि रहित रूप में अपना आदेश पारित किया। उधर सरकार ने अंतराम पर आदिवासियों को भड़काने का आरोप लगाया था, जिस पर न्यायालय ने सरकार से पूछा कि किन-किन भोले भाले आदिवासियों को भड़काया गया है? इसका कोई सबूत न होने के लिए न्यायालय ने सरकार से पूछा, आप इन गरीब आदिवासियों को सिर्फ वोट बैंक कि तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, ऐसा मैं लिखूं क्या?

कोर्ट ने अधिकारियों को दी नसीहत
इस मामले में जिलाबदर आदेश के दुरुपयोग के बारे में न्यायालय ने कड़ी निंदा करते हुए मौखिक टिप्पणी की है कि हम लगातार देख रहे हैं कि जिला बदर को एक राजनीतिक औज़ार बनाया जा चुका है। वे भी संवैधानिक प्राधिकारी हैं। सरकार के अधिकारियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि उनका दायित्व संविधान के प्रति होना चाहिए, किसी पद के लालच में राजनेताओं के प्रति नहीं।

 

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