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पूर्व मुख्यमंत्रियों से एक माह में खाली कराएं शासकीय आवास : हाईकोर्ट

जबलपुर। à¤®à¤§à¥à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ हाईकोर्ट ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, उमा भारती और कैलाश जोशी सहित अन्य से एक माह के भीतर शासकीय आवास खाली कराए जाने का सख्त आदेश पारित कर दिया। यह आदेश मध्यप्रदेश मंत्री वेतनभत्ता अधिनियम के नियम 5 (1) को असंवैधानिक करार देते हुए सुनाया।

मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश हेमंत गुप्ता व जस्टिस अखिल कुमार श्रीवास्तव की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी विधि छात्र रौनक यादव की ओर से अधिवक्ता विपिन यादव ने पक्ष रखा।

उन्होंने दलील दी कि हाईकोर्ट में शासकीय आवासों में पूर्व मंत्रियों व मुख्यमंत्रियों के काबिज होने के रवैये के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की गई थी। उस पर सुनवाई के बाद राज्य शासन को नोटिस जारी किए गए। इसी मामले की सुनवाई के बीच राज्य ने मध्यप्रदेश मंत्री वेतनभत्ता अधिनियम के नियम 5 (1) में संशोधन की जानकारी पेश कर दी। जिसके तहत मौजूदा मंत्रियों के साथ-साथ पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी शासकीय आवास धारित करने की व्यवस्था दे दी गई। इसी संशोधन को अलग से एक याचिका के जरिए कठघरे में रखा गया।

 

इसके जरिए मांग की गई कि संशोधित प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्रियों को वित्तीय दृष्टि से पेंशन सहित अन्य भत्तों संबंधी लाभ मिलते हैं और उनके पास खुद के निजी आवास भी हैं।

यदि निजी आवास न हों, तो शासकीय आवास पर काबिज होने की बात समझ में आती है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री खुद के आवास होने के बावजूद शासकीय आवासों पर काबिज हैं। ऐसे में उनसे शासकीय आवास खाली कराना न्यायहित का तकाजा है। कार्यकाल खत्म होने के बाद पूर्व मुख्यमंत्रियों का शासकीय बंगलों में जमे रहना गैरकानूनी करार दिया जाए।

 

सुप्रीम कोर्ट के यूपी संबंधी आदेश का हवाला

जबलपुर के विधि छात्र रौनक यादव की ओर से अपनी याचिका को बल प्रदान करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा उत्तर प्रदेश शासन के खिलाफ पारित आदेश का हवाला दिया गया। उत्तरप्रदेश शासन ने भी अधिनियम संशोधित करके मध्यप्रदेश शासन की तरह पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास संबंधी सुविधा प्रदान कर दी थी। जिसके खिलाफ सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश शासन के संशोधन को असंवैधानिक करार दे दिया था। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने इस न्यायदृष्टांत पर गौर करने के बाद मध्यप्रदेश शासन के संशोधन को भी असंवैधानिक करार दे दिया।

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