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ग्वालियर के सत्येंद्र की कामयाबी, इंग्लिश चैनल पार करने वाले पहले भारतीय दिव्‍यांग बने

ग्वालियर। à¤•à¤¹à¤¤à¥‡ हैं जोश, जज्बा और जुनून हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं है। ग्वालियर के पैरा स्विमर सत्येंद्र लोहिया पर यह बात सटीक बैठती है। सत्येन्द्र ने इंग्लिश चैनल को पार करके अनूठी कामयाबी हासिल की है। स्विमर सत्येन्द्र लोहिया ने 12 घंटे और 26 मिनट में 36 किलोमीटर की इंग्लिश चैनल पार की है।

रिले की तर्ज पर सत्येन्द्र ने अपने 3 साथियों के साथ यह उपलब्धि हासिल की है। महाराष्ट्र के चेतन राउत, बंगाल के रीमो शाह और राजस्थान के जगदीश चन्द्र ने तैराकी की। यही नहीं, सत्येन्द्र इंग्लिश चैनल पार करने वाले रिले में एशिया के पहले पैरा स्विमर भी बन गए है। उल्लेखनीय है कि विक्रम अवार्डी सत्येन्द्र लोहिया ने तैराकी स्पर्धाओं में अब तक 16 मैडल जीते हैं।

12 घंटे 26 मिनट में पार की 36 किलोमीटर लंबी इंग्लिश चैनल

सत्येंद्र 12 घंटे और 26 मिनट में 36 किलोमीटर लंबी इंग्लिश चैनल पार करने वाले रिले में पहले भारतीय दिव्यांग बन गए हैं। यही नहीं पूरे एशिया में भी रिले में यह खिताब हासिल करने वाले वह पहले दिव्यांग तैराक बन गए हैं। सत्येंद्र ने नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर कई खिताब हासिल किए हैं।

 

बचपन में ही खराब हो गए थे पैर

 

गौरतलब है कि सत्येंद्र बचपन से ही दिव्यांग हैं। जब वह 15 दिन के थे, तभी ग्लूकोज ड्रिप के रिएक्शन के चलते उन्होंने अपने पैर खो दिए थे। सत्‍येंद्र को बचपन से ही तैराकी का शौक था, लेकिन दिव्यांगता के चलते शुरुआत में उन्हें खासी समस्याओं का सामना करना पड़ा, लेकिन दिव्यांगता को उन्होंने अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया और भिंड जिले के अंतर्गत बैसली नदी में तैराकी करने लगे। इसके बाद तैराकी उनका पैशन बन गया और आज उसी तैराकी ने उन्हें यह मुकाम दिलाया।

 

2009 में मिला पहला मेडल

सत्येंद्र के कोच प्रो.वीके डबास ने बताया कि सत्येंद्र सन 2007 में उनके पास प्रशिक्षण के लिए आए थे। धुन के पक्के सत्येंद्र ने कोलकाता में 2009 में पहला मेडल हासिल किया। सत्येंद्र को इंग्लैंड छोड़कर हाल ही में ग्वालियर लौटकर आए प्रो. डबास ने बताया कि बचपन से ही सत्येंद्र को कई तरह के तानों का सामना करना पडा था। लोग हमेशा उन्हें इसी बात का एहसास दिलाते रहते थे कि वह परिवार पर बोझ हैं और अपने जीवन में कुछ नहीं कर सकते। इसी बात को चुनौती मानकर उन्होंने तैराकी के शौक को पैशन में बदल दिया।

 

वर्तमान में ग्वालियर के मुरार में रह रहे सत्येंद्र के पिता गया प्रसाद लोहिया ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि उन्हें अपने बेटे पर नाज है। उन्होंने लोगों को संदेश देते हुए कहा कि दिव्यांग बच्चों को बोझ नहीं समझें। उनकी जिस खेल या अन्य किसी विधा में रुचि हो, उन्हें उसमें प्रेरित करना चाहिए। दिव्यांग बच्चा क्या कर पाएगा, जैसे समाज के तानों से उसे निराश न होने दें।

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