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‘मोहल्ला अस्सी’ उनके लिए है जो कुछ अलग देखना चाहते हैं

अगर आप भारतीय राजनीति, धर्म, संस्कृति और आस्था के मर्म को समझते हैं और आपकी जानकारी इन सभी विषयों पर है तो ‘मोहल्ला अस्सी’ आपको जरूर पसंद आएगी। अगर आप एक मनोरंजक सिनेमा की तलाश में हैं, ऐसी फिल्मों को देखने के आदी हैं जिस पर बिल्कुल सोचना ना पड़े तो शायद आप ‘मोहल्ला अस्सी’ बिल्कुल ही पसंद ना करें!

प्रसिद्ध साहित्यकार काशीनाथ सिंह के उपन्यास पर आधारित यह फिल्म राजनीति पर करारी चोट करती है। भारतीय समाज के मूल्यों को कैसे बाजारवाद ने प्रभावित किया है इसे संस्कृत भाषा को मेटाफर बना कर बहुत ही मार्मिकता से दर्शाया गया है। फिल्म के पहले ही दृश्य में निर्देशक ‘मोहल्ला अस्सी’ के प्रकृति का वर्णन कर देता है कि- ‘हिंदुस्तान में संसद दो जगह चलती है एक दिल्ली में और दूसरी मोहल्ला अस्सी की चाय की दुकान पर।’ इसीलिए लाज़मी ही फिल्म में दृश्यों से ज्यादा संवाद का सहारा लिया गया है।

हालांकि आज की सिनेमा का फॉर्मेट यह नहीं है मगर फिल्म के उल्लेखित विषयों का विस्तार देखते हुए संवादों का इस्तेमाल ज्यादा जरूरी हो गया था। 6 साल से रिलीज की लड़ाई लड़ रही मोहल्ला अस्सी पर समय का असर तो पड़ा है मगर समाज की आस्था, नैतिक मूल्य ,राजनीतिक गिरावट और धर्म के नाम पाखंड जैसे मुद्दे कभी भी पुराने नहीं हो सकते और यही मोहल्ला अस्सी के लिए 6 साल बाद भी सामयिक बने रहने का कारण है!

अभिनय की बात करें तो सनी देओल एक अलग अवतार में नजर आते हैं। यह उनका अब तक का सर्वश्रेष्ठ अभिनय है। साक्षी तंवर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराती है इसके अलावा रवि किशन अपने किरदार को जी जाते हैं। उपाध्याय बने कला सौरभ शुक्ला और अस्सी घाट के दूसरे सदस्य मुकेश तिवारी ता वी एम बडोला, राजेंद्र मेहता, अखिलेंद्र मिश्रा जैसे कलाकार अपने अपने किरदारों में जचे हैं। सीमा आज़मी ने अपने अभिनय से प्रभावित किया है।

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