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राफेल डील केस पर फिर टिकी सबकी नजर, जानिए अब तक की पूरी कहानी

नई दिल्ली। राफेल विमान सौदे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लगी पुनर्विचार याचिका पर जल्द फैसला आने की संभावना है। जनहित याचिका में शीर्ष कोर्ट से क्लीन चिट मिलने के बाद मोदी सरकार के खिलाफ यह पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी। इस फैसले पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं। भारतीय वायुसेना को मजबूती देने के लिए अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल के दौरान एनडीए सरकार में विमान खरीदी का प्रस्ताव आया था, लेकिन 2007 में यूपीए सरकार ने विमान खरीदी प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। उस दौरान रक्षा मंत्री एके एंटोनी थे। हालांकि इस सौदे पर की कुछ शर्तों पर सहमति ना बन पाने की वजह से यूपीए सरकार में विमानों की खरीदी नहीं की गई थी। इसके बाद साल 2015 में एनडीए की सरकार आते ही पीएम मोदी ने 36 राफेल विमान खरीदी को मंजूरी दे दी थी। इस विमान खरीदी में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कांग्रेस मोदी सरकार पर हमलावर हुई थी और शीर्ष कोर्ट में PIL दाखिल हुई थी।

यूपीए सरकार में विमान खरीदी का मामला ठंडे बस्ते में जाने के बाद पीएम मोदी ने साल 2015 में फ्रांस से पूरी तरह से तैयार 36 राफेल विमानों के नए सौदे की घोषणा की थी। इसके बाद 26 जनवरी 2016 को भारत और फ्रांस ने 26 राफेल लड़ाकू विमानों के लिए एग्रीमेंट साइन किए थे। इसके पूर्व डील की राशि को लेकर भी दोनों देशों के बीच कई बार बैठक हुई थी।

मोदी सरकार द्वारा फ्रांस के साथ 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने को लेकर सौदा हुआ। संसद में मोदी सरकार की ओर से एक राफेल विमान की कीमत को 570 करोड़ बताया गया। लेकिन बाद में कांग्रेस ने इसकी कीमत पर सवाल उठाते हुए मोदी सरकार को जमकर घेरा। तत्कालीन कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक विमान की कीमत 15 सौ करोड़ से ज्यादा की बताई। वहीं कांग्रेस की ओर से दावा तक किया गया कि इस सौदे में देश को 12 हजार करोड़ से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ा है।

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