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सदियों बाद गूजरी महल की पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤° से गूंजीं सà¥à¤µà¤° लहरियाà¤
गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤°à¥¤ गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¿à¤¯à¤° दà¥à¤°à¥à¤— सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ जिस गूजरी महल में कà¤à¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ संगीत के महान पोषक राजा मानसिंह तोमर, उनकी पà¥à¤°à¥‡à¤¯à¤¸à¥€ मृगनयनी और सà¥à¤° समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ तानसेन व बैजू बाबरा जैसे नाद वà¥à¤°à¤¹à¥à¤® के अमर साधकों की संगीत महफिल जमती थी, उसी गूजरी महल परिसर में लगà¤à¤— 550 साल बाद फिर से सà¥à¤µà¤° लहरियाठगूà¤à¤œà¥€à¥¤ मौका था इस साल के तानसेन संगीत समारोह के तहत सजी आखिरी à¤à¤µà¤‚ सांयकालीन सà¤à¤¾ का। तानसेन समारोह में इस साल नवाचार के रूप में अंतिम सà¤à¤¾ गूजरी महल में आयोजित की गई।
राजा मानसिंह तोमर के दरबार में सजने वाली संगीत महफिलो में संगीत मनीषियों की राग दरबारी में सà¥à¤°à¥€à¤²à¥€ तानें गूà¤à¤œà¤¾ करती थीं। तानसेन समारोह की अंतिम सà¤à¤¾ में इसी राग में विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ सरोद वादक बसंत काबरा ने बेजोड़ धà¥à¤¨ बजाई। सà¥à¤° समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ तानसेन दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सृजित इस राग में काबरा के सरोद से à¤à¤¸à¥€ सà¥à¤° लरहरियाठà¤à¤°à¥€à¤‚ कि रसिक à¤à¥‚म उठे। उनके सरोद वादन में मैहर सेनिया घराने की पारंपरिकता परिलकà¥à¤·à¤¿à¤¤ हो रही थी।
गूजरी महल में सजी संगीत सà¤à¤¾ में à¤à¥‹à¤ªà¤¾à¤² से पधारे मनोज कà¥à¤®à¤¾à¤° ने राग जोग को अपने गायन के लिठचà¥à¤¨à¤¾à¥¤ मनोज कà¥à¤®à¤¾à¤° ने पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ à¤à¤œà¤¨ दरिया à¤à¥€à¤¨à¥€ रे à¤à¥€à¤¨à¥€ सà¥à¤¨à¤¾à¤•à¤° अपने गायन का समापन किया। उनके गायन में सà¥à¤‚दर और सिलसिलेदार अलापचारी सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही बनी।
संगीत à¤à¤µà¤‚ कला विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के धूà¥à¤°à¤ªà¤¦ गायन से हà¥à¤ˆ सà¤à¤¾ की शà¥à¤°à¥‚आत
सà¤à¤¾ का आगाज राजा मानसिंह तोमर संगीत à¤à¤µà¤‚ कला विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के धà¥à¤°à¥à¤ªà¤¦ गायन से हà¥à¤†à¥¤ ताल चौताल और राग यमन में निबदà¥à¤§ बंदिश के बोल थे षà¥à¤šà¤°à¤¨à¤¨ सà¥à¤– चिरंजीव। यह वही धà¥à¤°à¥‚पद रचना है जिसे गान मनीषी तानसेन ने रीवा महाराज रामचंदà¥à¤° के दरबार में गाया था। यह पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ की आचारà¥à¤¯ रंजना टोंणपे के निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤¨ में हà¥à¤ˆà¥¤