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आईपीएल में अफगानिस्तान की सर्जिकल स्ट्राइक, सकते में होगा पाकिस्तान!

आर्थिक विषमता और बेकारी के इस दौर में भी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) स्पोर्ट्स वर्ल्ड वो जगमगाता सितारा है, जो अपनी धीमी रोशनी का छोटा सा हिस्सा भी अगर किसी पर भी डाल दे वो रातोंरात कुबेरपति बन सकता है. चाहे वो आतंकवाद और कट्टरपंथियों से जूझ रही अफगान टीम के क्रिकेट सितारे ही क्यों न हों? जी हां, इस टीम के 2 खिलाड़ी आईपीएल में भी अपनी झलक दिखाने को तैयार हैं. उसके प्लेयर्स को ये मौका मिलना वाकई अफगानिस्तान के लिए गर्व की बात होगी. वहीं, ये बात पाकिस्तान के लिए चौंकाने वाली है.

4 करोड़ की बोली पर सनराइजर्स हैदराबाद की टीम में शामिल हुए. राशिज खान ने अचानक ही अपने मुल्क अफगानिस्तान को पल भर में क्रिकेट जगत में और चमका दिया. लेकिन, अफगानिस्तान के लिए इसकी शुरुआत की राशिद के साथी खिलाड़ी मोहम्मद नबी ने. नबी को हैदराबाद ने ही ससबसे पहले 30 लाख की बोली लगाकर टीम में शामिल किया.

बिग ब्रदर बीसीसीआई ने बदल दी अफगानिस्तान की किस्मत

अफगान टीम का बारूदी सुरंगों से क्रिकेट पिच तक का सफर इतना आसान नहीं रहा. देखा जाए तो इसमें सबसे बड़ा रोल बीसीसीआई का रहा है. अब आप सोच रहे होंगे कैसे? तो बता दें कि बीसीसीआई गाहे बगाहे अफगानिस्तान को सपोर्ट करता रहा है. टी-20 वर्ल्ड कप-2016 से ठीक पहले जब अफगान प्लेयर्स ने हौसला को दिखाते हुए मदद की गुहार लगाई तो बीसीसीआई ने भी देरी नहीं की. बिग ब्रदर की तरह दिल्ली के पास नोएडा में टीम का तंबू गड़वा दिया. इससे पहले से वो अफगानिस्तान के कंधार में क्रिकेट स्टेडियम बनाने में भी मदद कर रहा है. जो तैयार होने की कगार पर है.

अब कर रहा खुलकर बैटिंग

बीसीसीआई ने आईपीएल-10 के ऑक्शन से ठीक पहले अफगानिस्तानी प्लेयर्स को शामिल होने का मौका देकर ऐतिहासिक कदम उठाया है. उसके इस कदम को एक मंझे हुए बैट्समैन की तरह फ्रंट फुट पर खेलना भी कहा जा सकता है. क्योंकि अफगान के कई ऐसे खिलाड़ी हैं, जो खुद के दम पर भीड़ जुटाने में सक्षम हैं. दूसरा और सबसे बड़ा पहलू अफगानिस्तानी प्लेयर्स को मेन स्ट्रीम में लाना ही है. हालांकि ये पहला मौका नहीं है, जब बीसीसीआई ने किसी विदेशी क्रिकेट टीम को सपोर्ट किया हो. इससे पहले बीसीसीआई बांग्लादेश और नेपाल की टीम के लिए भी बिग ब्रदर की भूमिका निभा चुकी है.

तालिबान की नाल के नीचे शुरू हुआ क्रिकेट का रोमांच

इस नेक काम की शुरुआत भी तालिबान तोपों के सामने हुई. दरअसल, तालिबान के शासन काल में लाखों अफगानी पाकिस्तान के रिफ्यूजी कैंपों में शरण लिए हुए थे. यहीं से बच्चों के जेहन में बंदूक के अलावा बैट-बॉल ने भी पांव पसारे. अफगानी बच्चों ने पाकिस्तानी बच्चों को क्रिकेट खेलते हुए देखा. शरणार्थी शिविरों में खेलना शुरू कर दिया. यह बात 1990 के आसपास की है. 1995 में अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड का गठन तो हुआ, लेकिन किसी को उम्मीद नहीं थी कि वहां कोई इंटरनेशनल लेवल की टीम में बनाई जा सकेगी.

तालिबानी बंदूकें भी हौसले के आगे हुईं पस्त

दरअसल, बारूद के ढेर पर क्रिकेट खेलने का शौक रखना भी बड़े साहस की बात है. शायद यही वजह है कि खिलाड़ियों के साहस के आगे तालिबान की बंदूकों को भी झुकना पड़ा और 2000 में वहां केवल क्रिकेट को इजाजत दे दी गई. कहते हैं सरकार कैसी भी हो अगर साथ हो तो हर कोशिश को पर लग जाते हैं. एक साल के अंदर ही आईसीसी में अफगानिस्तान क्रिकेट फेडरेशन को संबद्ध सदस्य के रूप में चुन लिया गया और उनकी राष्ट्रीय टीम का गठन हुआ. 2013 में उसे आईसीसी की एसोसिएट टीम का दर्जा भी मिल गया.

2015 में ऐसे परवान चढ़ी अफगान की टीम

आयरलैंड में वर्ल्ड टी-20 क्वालीफिकेशन राउंड में भी अफगानिस्तान क्रिकेट के तमाम सूरमाओं को चौंकाते हुए अपने 7 में 5 मुकाबले जीते. यही नहीं, इसके बाद इस टीम ने आईसीसी की पूर्ण रूप से सदस्य जिम्बाब्वे को वन-डे में 3-2 और टी-20 में 2-0 से क्लीन स्वीप किया. बात यहीं खत्म नहीं होती. इस टीम ने टी-20 वर्ल्ड कप जीतने वाली वेस्टइंडीज को भी 6 विकेट से हराया. सबसे रोचक बात ये है कि क्रिस गेल जैसे प्लेयर के रहते इस टीम को ये इकलौती हार झेलनी पड़ी थी. उस वक्त इस टीम में हेड कोच थे पाकिस्तान के दिग्गज बैट्समैन इंजमाम उल हक. बावजूद इसके अफगानी प्लेयर्स से उनकी सफलता का श्रेय नहीं छीना जा सकता.

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