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सांसद निधि के भविष्य को लेकर दुविधा में मोदी सरकार!

प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी की सरकार सांसदों को मिलने वाली सांसद नीधि को बंद करने पर गंभीरता से विचार कर रही है. सूत्रों की मानें तो दरअसल कालाधान खत्म करने और पारदर्शिता लाने के लिए ऐसी कोशिश की जा रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार सांसद निधि काला धन पैदा करने के स्रोत के साथ ही राजनीति की शुचिता पर दाग लगाने का जरिया भी बनती दिखाई दी है.

गौरतलब है कि पीवी नरसिम्हा राव सरकार और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान मनमोहन सिंह ने सांसद फंड का विरोध किया था. लेकिन सत्ता में आने के बाद मनमोहन सिंह ने सांसद नीधि को दो करोड़ रुपये से बढ़ाकर पांच करोड़ किया. सांसद फंड के दुरुपयोग के खिलाफ लगातार शिकायतें सरकार के पास आती रही हैं. केन्द्र सरकार के पास पहुंची रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि लगभग 60 प्रतिशत सांसदों के फंड में अनियमितता होती है.

 

अब तक सीएजी से लेकर अदालत और अनेक कानून विशेषज्ञ इसके खिलाफ अपनी राय दे चुके हैं. फंड के दुरुपयोग के कारण बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधायक फंड को बंद कर दिया था. सांसद फंड को खत्म करने के पक्ष में प्रशासनिक सुधार आयोग अपनी सिफारिश पहले ही सरकार को दे चुका है.

संसदीय समिति की फंड बढ़ाने की मांग
प्रधानमंत्री कार्यालय भले ही सांसद नीधि को समाप्त करने पर विचार कर रहा है. वहीं दूसरी तरफ सांसदों के फंड को लेकर बनी संसदीय समिति की राय कुछ और ही है. समिति ने सालाना सांसद निधि को 5 करोड़ से बढ़ाकर 25 करोड़ करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है. हालांकि वित्त मंत्रालय ने इस पर अभी तक सहमति नहीं दी है. मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद सांसद निधिपर निगरानी रखने के लिए थर्ड पार्टी निगरानी रखने का फैसला किया था. लेकिन उसके बाद भी सरकार का आंकलन है कि सांसद फंड के इस्तेमाल में पारदर्शिता नहीं है.

कमेटी बनाने पर विचार
सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार सांसद फंड को इस्तेमाल करने के लिए एक समिति भी बना सकती है. सरकार इस फॉर्मूले पर भी मंथन कर रही है कि क्यों न हर संसदीय क्षेत्र में विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाय. जो फंड के इस्तेमाल पर निगरानी रखे. इस समिति में जिला कलेक्टर के साथ स्थानीय प्रतिनिधियों का एक समूह रहे जिसकी अध्यक्षता सांसद करें.

सांसदों की नाराजगी का डर
सूत्र बताते हैं कि केंद्र सरकार को सांसद निधि को बंद करने पर सांसदों की नाराजगी का डर भी सता रहा है. सरकार सांसदों की निधि पर कैची चलाने से पहले सभी पहलुओं पर व्यापक विमर्श करना चाहती है. सरकार सांसदों को तैयार करने के लिए आम सहमति बनाने की ओर भी कदम बढ़ा सकती है.

मंत्रालय ने अधिकारियों को दिए थे निर्देश
इससे पहले केंद्रीय सांख्यिकीय एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने सभी जिलों के अधिकारियों से योजना के नियमों का पालन करते हुए सांसद निधि की अनियमितताओं को दूर करने को कहा था. मंत्रालय ने यह कदम इस योजना में गड़बडि़यों की शिकायतें मिलने के बाद उठाया था.

सरकार ने एमपीलैड योजना की शुरुआत दिसंबर 1993 में की थी. उस समय इसके तहत 5 लाख रुपये आवंटित किए जाते थे. इसके बाद 1994-95 में यह धनराशि बढ़ाकर सालाना एक करोड़ रुपये कर दी गई. 1998-99 में यह धनराशि बढ़ाकर दो करोड़ रुपये सालाना और फिर 2011-12 में बढ़ाकर पांच करोड़ रुपये सालाना की गई.

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