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ओशो के कारण टूटी विनोद की पहली शादी, 16 साल छोटी कविता में मिला नया जीवनसाथी

बॉलीवुड का स्टारडम छोड़कर संन्यास की राह पकड़ने वाले अभिनेता विनोद खन्ना 1982 में अमेरिका के ओरेगन राज्य में बने ओशो के आश्रम रजनीशपुरम चले गए और पांच साल तक वहां रहे. इस दौरान उन्होंने ध्यान अध्यात्म के साथ माली का काम संभाला. आश्रम में उनका नामकरण विनोद भारती के रूप में हुआ था. लेकिन जिस मन की शांति के लिए वो अध्यात्म की शरण में गए, वो उन्हें हासिल नहीं हुई. इधर मुंबई में इसके चलते उनका परिवार बिखर गया.

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विनोद खन्ना ने खुद कहा था कि संन्यास का वो फैसला बिल्कुल मेरे अपने लिए था. इसलिए वो फैसला मेरे परिवार को बुरा लगा. मुझे भी दोनों बच्चों के परवरिश की चिंता होती, लेकिन मैं मन से मजबूर था.

संन्यास का फैसला विनोद खन्ना की मजबूरी थी या मन की कोई उलझन, संन्यास के साथ विनोद खन्ना का करियर तो वहीं का वहीं ठप हो गया, परिवार भी ऐसे बिखरा कि फिर कभी जुड़ नहीं पाया. अमेरिका के ओशो आश्रम में रहते हुए ही पत्नी गीतांजलि से अलगाव हुआ. 1985 में तलाक के साथ ये बात तो खत्म हो गई, लेकिन विनोद खन्ना का मन संन्यास में भी नहीं रमा. वो अक्सर भारत वापस लौटने की बात करते रहते थे.

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मुंबई लौटकर आने के बाद एक तरफ सिनेमा की दुनिया में खुद को दोबारा साबित करने का संघर्ष और दूसरी तरफ बिखरे हुए परिवार का दर्द. विनोद इस दौर को भी बदल देना चाहते थे. वो साथ उन्हें कविता दफ्तरी में मिला, जिनसे मिलना बड़े ही संयोग से हुआ था.

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कविता अमेरिका और यूरोप से पढ़ाई पूरी करने के बाद इंडस्ट्रियलिस्ट पिता सरयू दफ्तरी का बिजनेस संभाल रही थी. विनोद खन्ना से पहली मुलाकात एक पार्टी में हुई, जिसमें कविता बिना किसी बुलावे के दोस्तों के साथ आई थी. कविता की तरफ से वो मुलाकात तो औपचारिक थी, लेकिन विनोद खन्ना उस पहली मुलाकात में ही कविता के मुरीद हो गए. एक साल की मेल मुलाकात के बाद विनोद खन्ना ने एक और चौंकाने वाला ऐलान किया- वो अपने से 16 साल छोटी कविता से शादी करने जा रहे हैं.

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कविता के साथ विनोद खन्ना की जिंदगी नए सिरे से बस रही थी. फिल्में भी इस दौर में उन्हें उम्र के मुताबिक मिल रही थी. जेपी दत्ता की बंटवारा और क्षत्रिय जैसी फिल्म विनोद खन्ना के उस दौर की गवाह हैं. हालांकि 90 के दशक में क्रेज आमिर, सलमान और शाहरुख जैसे नई उम्र के सितारों का बन चुका था. लिहाजा विनोद खन्ना के पास विकल्प गिने चुने ही थें.

इसी दौरान उन्होंने हिमालयपुत्र नाम की फिल्म का निर्माण किया. अपने बड़े बेटे अक्षय खन्ना को लॉन्च करने के लिए. वर्ष 1997 में विनोद खन्ना ने पिता के तौर पर भी अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली, लेकिन निजी तौर पर सिनेमा से अलग रुख दोबारा किया. वो रास्ता था सियासत का. विनोद खन्ना राजनीति में चले गए.

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