अरबपति बांकेबिहारी लेकिन रसोई में नहीं है à¤à¤• à¤à¥€ निवाला
मथà¥à¤°à¤¾à¥¤ ठाकà¥à¤° बांकेबिहारी जी के दरà¥à¤¶à¤¨ का समय बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ के विवाद के बीच किसी को इस बात की चिंता ही नहीं है कि पà¥à¤°à¤¬à¤‚धन की ओर से चलने वाली उनकी रसोई डेॠसाल से सूनी पड़ी है। करीब 135 करोड़ के मालिक बांके बिहारी अपने खाते से à¤à¤• लडà¥à¤¡à¥‚ à¤à¥€ नहीं खरीद सकते। रसोई में बनने वाली à¤à¥‹à¤— परंपरा का पालन दानदाता की रसोई से आने वाले à¤à¥‹à¤— से या फिर सेवा गà¥à¤¸à¤¾à¤ˆà¤‚ की ओर से होता है।
बांके बिहारी मंदिर में पà¥à¤°à¤¬à¤‚ध कमेटी ने 2013 में ठाकà¥à¤°à¤œà¥€ की रसोई शà¥à¤°à¥‚ की थी। विवाद खड़ा होने से à¤à¤‚ग हà¥à¤ˆ पà¥à¤°à¤¬à¤‚ध कमेटी के कारण लगà¤à¤— तीन साल चलने के बाद यह रसोई जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ 2016 में बंद हो गई। तब से डेॠसाल हो गठमंदिर का पà¥à¤°à¤¬à¤‚धन सदर मà¥à¤‚सिफ के पास है और ठाकà¥à¤°à¤œà¥€ के à¤à¥‹à¤— को à¤à¥‹à¤œà¤¨ की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ दूसरे ही तरीकों से की जा रही है।
यह है à¤à¥‹à¤— की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾
मंदिर के à¤à¤• सेवायत ने बताया कि ठाकà¥à¤° जी को चौबीस घंटे में आठà¤à¥‹à¤— लगाठजाते हैं। चार à¤à¥‹à¤— सà¥à¤¬à¤¹ और चार शाम को। सà¥à¤¬à¤¹ बाल à¤à¥‹à¤—, उतà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨, शà¥à¤°à¥ƒà¤‚गार और राजà¤à¥‹à¤— कराया जाता है। शाम को फिर जब लाला गोचारण कर वापस लौटते हैं तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बाल à¤à¥‹à¤—, उतà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨ à¤à¥‹à¤— लगाया जाता है। रात में शयनà¤à¥‹à¤— और दूधà¤à¥‹à¤— दिया जाता है।
पà¥à¤°à¤¬à¤‚ध कमेटी के पूरà¥à¤µ पà¥à¤°à¤µà¤•à¥à¤¤à¤¾ गोपेश गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ के मà¥à¤¤à¤¾à¤¬à¤¿à¤•, बांके बिहारी के वृंदावन की कई बैंकों में à¤à¤• दरà¥à¤œà¤¨ से à¤à¥€ अधिक खाते हैं। दूसरी बार जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ 2016 में कमेटी à¤à¤‚ग होने के समय तक इन खातों में करीब 120 करोड़ रà¥à¤ªà¤ की धनराशि थी। ठाकà¥à¤°à¤œà¥€ की à¤à¥‡à¤‚ट आदि से पà¥à¤°à¤¤à¤¿ माह लगà¤à¤— à¤à¤• करोड़ की आमदनी होती है। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° अब उनके खातों में करीब 135 करोड़ की धनराशि होने का अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ है।
ठाकà¥à¤°à¤œà¥€ की रसोई पà¥à¤°à¤¬à¤‚ध कमेटी ने शà¥à¤°à¥‚ कराई थी। इसके लिठà¤à¥‹à¤— की रसीद कटती थी और इससे रसोई चलती थी। यह à¤à¥‹à¤— की रसीद तो आज à¤à¥€ कट रही है लेकिन ठाकà¥à¤°à¤œà¥€ की रसोई बंद है। अà¤à¥€ à¤à¤¸à¥‡ लग रहा à¤à¥‹à¤— मंदिर में गà¥à¤¸à¤¾à¤ˆà¤‚ परिवारों की सेवा है और उनका à¤à¤• कà¥à¤°à¤® है। वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में जिस परिवार की सेवा होती है, उस सेवायत के ऊपर à¤à¥‹à¤— तैयार करने की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ होती है।
दूसरी ओर ठाकà¥à¤°à¤œà¥€ के लिठलाला हरगूलाल बेरीवाल की हवेली की तरफ से à¤à¥‹à¤— आता है। यह परंपरा उनके लिठगठसेवा के संकलà¥à¤ª के चलते सौ साल से चली आ रही है। इसके अलावा अगर किसी à¤à¤•à¥à¤¤ को à¤à¥‹à¤— लगाना होता है तो वह रसीद कटा सकता है लेकिन à¤à¥‹à¤œà¤¨ की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ सेवायत ही करता है।