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यहां देवी सती और शिव का एक दूसरे से होता है मिलन, पढ़ें इस सिद्ध शक्तिपीठ की महिमा

51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ देवघर में स्थित है। इसे 'जय दुर्गा शक्तिपीठ' या 'हृदय पीठ' के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान शिव देवी सती का शरीर लेकर शोक में इधर -उधर भटक रहे थे। तो देवघर में माता का हृदय गिरा था जिसके वजह से इसे 'हृदयपीठ' भी कहते हैं।

शिव पुराण के अनुसार एक बार रावण ने घोर तप कर भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया। रावण ,भगवान शिव का परम भक्त था और वह चाहता था कि भगवान शिव उसके साथ लंका चले। देवलोक में इस बात की भनक लगते ही हाहाकार मच गया। शिव ने लंकापति रावण की तप से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि मैं इस शिवलिंग में विराजमान हो जाता हूं और तुम मुझे अपने साथ जहां भी लेकर चलोगे मैं जाने के लिए तैयार हूं। तुम मेरे इस शिवलिंग को जहां रख दोंगे, मैं हमेशा के लिए वहीं स्थापित हो जाऊंगा। रावण अपनी लघुशंका दूर करने के जाते वक्त एक ब्राह्मण को शिवलिंग की देख -रेख करने की जिम्मेदारी देकर चला गया। वापस आकर देखा तो भगवान शिव हमेशा के लिए वहीं विराजमान हो गए थे। जिसे आज बैद्यनाथ धाम के नाम से जाना जाता है।देवघर में स्थित जय दुर्गा और बैद्यनाथ धाम मंदिर के शीर्ष को लाल रेशमी धागों से आपस में बंधा गया है। कहा जाता है कि जो भी शादीशुदा जोड़ा इस मंदिर पर लाल धागा बांधता है उसका प्रेम संबंध शिव और सती के तरह हमेशा बना रहता है। जय देवी मंदिर के गर्भगृह में देवी दुर्गा और देवी पार्वती दोनों की प्रतिमा विराजमान है।

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